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ये कैसा वचन जो चंद मिनट में टूट जाये

रक्षा बंधन, सिर्फ एक धागा जो बदल देता है रिश्तों की परिभाषा,एक चुनाव जो जगा देता है एक नयी आशा,एक जिम्मेदारी जो हमारे अपनों के लिए ही नहीं वरन औरों के लिए भी उतनी ही शिद्दत से बनती है,एक एहसास जो दुनिया का सबसे सबल है,एक सानिद्या जो सबसे सुरक्षित है,एक रिश्ता जिसके ना होने से हर रिश्ता होने पर भी सब अधूरा होता है, एक भाव जो पवित्रता की पराकाष्ठा है, एक अनुभूति जो हर दुःख और कष्ट को सहने की शक्ति देती है, एक व्यव्हार जिसमे सिर्फ देने की भावना है, एक अनुबंध जिसमे सिर्फ समर्पण है, एक सम्बन्ध जो मुख से निकलने से पहले दिल में स्थापित होता है।

जीवन में इस रिश्ते की महिमा और गरिमा इतनी भव्य और वृहद है की सीमित शब्दों में इसका वर्णन कर पाना असम्भव है सिर्फ इतना कहना काफी होगा कि भाई-बहन का यह पवित्र बंधन संसार का सबसे सुंदर बंधन है भाई के साथ से जितनी सबल और समृद्ध बहन होती है बहन के साथ से उतना ही स्नेहिल और गर्वित भाई होते हैं।
आज मेरी मुँहबोली बहन हर्षिता के राखी के साथ आये इन शब्दों के साथ राखी के पर्व का महत्व शायद पूर्ण समझ आया था। रोज़ से अलग यह सुबह और रोज़ से अलग इस सुबह का यह सन्देश। एक अलग भावना को जागृत कर गया। आज राखी का पर्व है। कलाइयाँ सभी की राखियो से भरी है। हा उस परिवार की बात नहीं करता हु जो गर्भ में ही बहन को मार देते है। एक भाई बहन के स्नेह से भरा दिन। इस स्नेह की खुशियाँ हर गली मोहल्ले में दिखाई दे रही थी।
कलाई पर इस बहन के स्नेह से भरी राखी बांधे एक भाई निकल पड़ा सड़क पर। आज आस पास से गुजरने वाली हर लड़की में एक बहन नज़र आ रही थी। हर लड़की सिर्फ अपनी खुशियो में सराबोर थी। शहर के सबसे मशहूर चौराहा और वहा की चाय। जब भी शहर में रहता हु इसकी ज़रूरत एक चाहत की तरह महसूस होती है। आज अपना शहर और अपनी ये चाहत। उसी चौराहे की तरफ गाडी का रुख हो गया। वो कल्लू की चाय के बाद अनिल के पान की दूकान का मीठा पान। चाय पीने के बाद अनिल की दूकान पर खड़ा होकर उसके पान का स्वाद लें रहा था। आज जितनी भी महिलाये या लडकिया गुज़र रही थी सभी में एक बहन नज़र आ रही थी।
तभी कुछ शोहदों को भी देखा। उनके हाथो पर राखिया बंधी थी। इन लड़को में एक के हाथ पर कई राखिया थी, जो ये सिद्ध कर रही थी कि उसकी एक नहीं कई बहाने है। ये लड़के रास्ता चलती हुई लड़कियो को बोलिया बोलते हुवे तेज़ रफ़्तार से निकल गए। ये 3 बाइक से थे। हर बाइक के पीछे एक लड़का बैठा था। पीछे बैठे लड़के लड़कियो को पलट के देख रहे थे। उनकी हर हरकते उनके फूहड़ संस्कार को दर्शा रही थी। तभी पास से एक छैल छबीला जैसा लड़का मुह में गुटखा खाये पैदल ही गुज़रा। हर लड़की को पलट कर एक गन्दी निगाह से देखता हुवा।
ये सब देख कर मन बड़ा भारी हो गया। मानता हु हर नुक्कड़ पर पुलिस नहीं हो सकती है। ये हरकते आज लगभग आम सी हो चुकी है। तरस तो मुझको इन लोगो की सोच पर आ रहा था। अभी चद लम्हे पहले इन लड़को ने अपनी बहनो से हाथो पर राखी बंधवा कर सदा रक्षा करने का प्रण लिया होगा। ये प्रण लगभग शाब्दिक ही रहा होगा क्योकि अगर सच्चा प्रण होता तो एक बहन से राखी बंधवाने वाला दूसरी बहन को घिनौनी नज़र से नहीं देखता। पता नहीं ये संस्कार किसने दिए क्योकि कोई माँ बाप ऐसा घिनौना संस्कार नहीं दे सकते। ऐसे घिनौने विचारो के बाद इनको राखिया तो नहीं बंधवाना चाहिए। कम से कम ये पवित्र बंधन तो कलंकित नहीं होता। काश हमारा समाज इस रक्षा बंधन ओअर वचन प्रवचन देने और उपहार देने के बजाए अपनी बहन से ये वादा कर ले कि मैं हर लड़की में तुझको देखूंगा तो समाज कितना सुन्दर हो जायेगा।

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  • Its quite emotional description, people having no sisters can understand how desperate they feel with clear hand, without a trace of a thread Indians call it Rakhi.

    Wonderfully crafted article.

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