Categories: Crime

हजारों लोगों को रोजगार देने वाली भावनगर की बंद हो रही मिलों की कहानी

अहमदाबाद। इद्रीस मेमन। गुजरात के पश्चिमी तट पर बसा है भावनगर शहर। भावनगर एक समय में राज्य की सांस्कृतिक राजधानी कहलाता था। लेकिन पिछले कई सालों से भावनगर दो बातों के लिए सिर्फ गुजरात में ही नहीं लेकिन दुनियाभर में जाना जाता है। भावनगर में ही है अलंग शिपब्रेकिंग यार्ड जहां दुनियाभर के जहाज़ तोड़े जाते हैं। जहाज़ तोड़ने के साथ-साथ उनसे मिलनेवाले स्टील के कारोबार के लिए भी भावनगर जाना जाता है। खासकर भावनगर ज़िले का शहर शिहोर। जहां करीब 130 स्टील रीरोलिंग मिलें हैं। यहां अलंग से जो जहाज़ टूटते हैं, उनसे निकले स्टील को पिघलाकर उससे सरिया, पाइप, छत और खिड़कियां बनाने के लिए आयरन रॉड जैसे कई अन्य सामान बनाये जाते हैं।

एक एक मिल में कुछ समय पहले तक रोजा़ना करीब 150 लोगों को काम मिल रहा था और इस व्यवसाय से परोक्ष रूप से जुड़े लोगों की संख्या तो एक लाख से ज्यादा थी। पूरे गुजरात में यहीं से ज्यादातर लोहा और स्टील जाता था। आखिर अच्छी बात थी कि देश की प्राकृतिक संपदा भी बच रही थी, आयरन ओर वगैरह किसी की ज़रूरत नहीं थी। विदेशों में बना बनाया स्टील प्रोसेस होकर उपयोग में आ रहा था। लेकिन इन फायदों के बावजूद आज यहां की 130 में से बमुश्किल 25 से 30 मिलें ही ठीक से काम कर रही हैं और 80 से ज्यादा तो पूरी तरह से बंद हैं। तो आखिर क्या हुआ कि ये नौबत आ गई। इस व्यवसाय की मुश्किल शुरू हुई 2008 में जब ब्यूरो औफ इंडियन स्टैन्डर्ड्स (बीआईएस) ने कहा कि स्टील के लिए उसके सुझाये मानकों पर खरा उतरना जरूरी है। और चूंकि पुराना स्टील प्रोसेस करके दोबारा उपयोग में लाया जा रहा था। इसलिए यहां के स्टील को कम अच्छा घोषित कर दिया गया। एक तो मंदी, ऊपर से इस तरह के मुश्किल पैमाने – लेकिन फिर भी काम जैसे तैसे चल रहा था। लेकिन पिछले दो सालों ने इस व्यवसाय की कमर तोड़ दी है। धड़ल्ले से चीन से तैयार माल आ रहा है जो इनके माल से बेहद सस्ता है। दूसरा मंदी की वजह से देश में स्टील की मांग कम है, स्टील की कीमतें भी आंतरराष्ट्रीय बाज़ार में बहुत गिरी हुई हैं। ऐसे में देश के बड़े बड़े स्टील उत्पादक या यूं कहें कि बड़ी बड़ी कंपनियां भी अब छोटे शहरों के व्यवसाय में आ गई हैं। क्योंकि वहां भी मांग कम होने की वजह से नये नये बाज़ार तलाशे जा रहे हैं। इन्होंने इस लघु उद्योग की कमर ही तोड़ दी है। इसी वजह से पिछले दो सालों में ही करीब 15000 से ज्यादा मज़दूरों को दूसरे रोजगार की तलाश करनी पड़ी है और पूरे इलाके कि अर्थव्यवस्था टूट रही है। मिल मालिक भी बेहद मुश्किल दौर से गुज़र रहे हैं। वो भी अन्य व्यवसायों में रास्ते ढूंढ रहे हैं – आखिर बड़ी कम्पनियों की तरह उनके पास सस्ता बेचने का ज़रिया नहीं है और न ही मार्केटिंग के लिए ढेरों पैसे। लोगों को डर सताने लगा है कि अगर सरकार ने इस लघु उद्योग को बचाने के लिए जल्द कदम न उठाये तो कहीं इस इलाके में बेरोज़गारी की वजह से लोग कानून व्यवस्था बिगाड़ने जैसे चोरी और अन्य कामों में न लिप्त होने लगें।
pnn24.in

Recent Posts

कैलाश गहलोत के इस्तीफे पर बोले संजय सिंह ‘मोदी वाशिंग पाउडर की देन, उनके पास भाजपा ने जाने के अलावा कोई रास्ता बचा नहीं था’

आदिल अहमद डेस्क: कैलाश गहलोत के आम आदमी पार्टी से इस्तीफ़ा देने पर राज्यसभा सांसद…

1 day ago

रुस ने युक्रेन पर किया अब तक का सबसे बड़ा हमला, रुसी मिसाइलो और ड्रोन से दहला युक्रेन

आफताब फारुकी डेस्क: बीती रात रूस ने यूक्रेन की कई जगहों पर कई मिसाइलों और…

1 day ago

दिल्ली के परिवहन मंत्री कैलाश गहलोत ने दिया अपने पद और पार्टी की सदस्यता से इस्तीफा

तारिक खान डेस्क: दिल्ली सरकार में परिवहन मंत्री कैलाश गहलोत ने मंत्री पद और आम…

1 day ago

मणिपुर हिंसा पर बोले कांग्रेस अध्यक्ष खड्गे ‘मणिपुर न तो एक है और न सेफ है’

फारुख हुसैन डेस्क: मणिपुर में शनिवार को हुई हिंसा पर कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने…

1 day ago