इनके एक दूर के सगे रिश्तेदार की गाड़ी गंगा किनारे वाले थाने में पकड़ गयी, गाड़ी में कुछ आपत्तिजनक माल भी बरामद हुआ था
तो रिश्तेदार महोदय ने बडके पत्रकार भाई से मदद मांगी। बड़के पत्रकार तो ठहरे ए.एस.एम। मतलब तो बूझ ही गये होंगे आप आदत से मजबूर। तुरन्त रिश्तेदार महोदय को समझा दिया कि रूपया 5 हजार लगेगा और गाड़ी छूट जायेगी। तो बात तय हो गयी और 5 हजार अन्दर हो गया। इसके बाद पत्रकार महोदय अपने रिश्तेदार और 2 चेलों को साथ लेकर पहुंच गये थाने। वहां जा कर पता चला कि एसओ साहब को बुखार आया हुआ है। इतना सुनना था कि पत्रकार महोदय ने तत्काल वहीं जमीन पर एसओ साहब के चरणों में आसन जमा लिया और सिपाही से पानी मंगा कर अपने रूमाल से एसओ की पट्टी करनी शुरू कर दी। इतनी सेवा अगर इन्होंने अपने मां बाप की कर ली होती तो स्वर्ग का टिकट तो पक्का था, पर एसओ की सेवा से जो मेवा मिलती है वो मां बाप की सेवा में थोडी न मिलेगी। करीब बीस मिनट की सेवा के उपरान्त एसओ साहब प्रसन्न भये और पूछा वत्स मांगो क्या मांगते हो, पत्रकार महोदय ने अपनी मंशा बतायी तो जवाब मिला की गाडी की लिखापढी हो चुकी है अब तो कोर्ट से ही छूटेगी। एक वकील है उससे मिल लो काम हो जायेगा। इतना सुन कर पत्रकार महोदय एसओ साहब के गुणगान गाते हुये वापस हो लिये। जिन रिश्तेदार की गाडी थी उनने बाहर आ कर पत्रकार महोदय की जम कर मदर सिस्टर कर दी पर अपने पत्रकार महोदय तो चिकना घडा हैं इनको कोई फर्क नहीं पड़ा। रिश्तेदार के जाने के बाद चेले से बोले कि देखा करवा दिया काम। अपना भक्त है थानेदार।
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