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भीख मंगवाने वाले गिरोह के चंगुल से छूटा मासूम अर्जुन |
आगरा। शीतल सिंह “माया”। भीख मंगवाने वाले गिरोह से छूटने में कामयाब आठ साल के अर्जुन ने दिल दहलाने वाली दास्तान सुनाई। मां-बाप से बिछड़ने के बाद वह चार साल से गिरोह के चंगुल में फंसा था। जब उसने भीख मांगने से इन्कार किया तो गिरोह की संचालिका ने उसके दोनों हाथ जला दिए। तीन दिन पहले सीमा द्वारा भीख मांगने के लिए ग्वालियर से पांच बच्चों को लाया गया था, जिसमें से अर्जुन भाग निकला। पुलिस ने सीमा की तलाश तेज कर दी है।
बुधवार को कैंट रेलवे स्टेशन पर लावारिस हाल में आठ साल का अर्जुन चाइल्ड लाइन सदस्यों को मिला। उसकी बात सुनने के बाद टीम के सदस्य एसपी रेलवे के पास ले गए।
अर्जुन ने बताया कि वह ग्वालियर के रामरच घाटी के रहने वाला है। उसके पिता की मौत हो चुकी थी। लगभग चार साल पहले वह मां के साथ ट्रेन से जाते में बिछड़ गया। वहां से सीमा नाम की एक महिला अपने साथ ले आयी। सीमा के यहां उस जैसे पांच बच्चे थे। कुछ माह बाद उसे भीख मांगने की कहा गया।
मना करने पर कई दिन भूखा रखा, सीमा के साथी युवकों ने बुरी तरह पीटा। छह माह पूर्व उसने भीख मांगने से इन्कार कर दिया। एक सप्ताह तक नहीं गया तो सीमा ने दोनों हाथों पर मिट्टी का तेल डाल जला दिया। सीमा का कहना था कि इससे उसको ज्यादा भीख मिलेगी। वह तीन दिन पूर्व उस समेत पांच बच्चों को आगरा ले आयी। इस दौरान वह भाग निकला।
चाइल्ड लाइन के समन्वयक नरेंद्र परिहार ने बताया सीमा की तलाश के लिए राजकीय रेलवे पुलिस (जीआरपी) की टीम अर्जुन को लेकर ग्वालियर जाएगी। बालक के परिजनों का भी पता लगाया जाएगा। भीख मंगवाने वाले गिरोह के तार ताजनगरी के अलावा भोपाल, ग्वालियर तथा दिल्ली रेलवे स्टेशनों तक जुड़े हैं।
हर दिन कमाओ 100 रुपये
अर्जुन ने बताया सभी बच्चों को भीख मांग रोज कम से कम 100 रुपये रोज सीमा को देने पड़ते थे। ऐसा न होने पर उनको भरपेट खाना नहीं मिलता था।
एक महीने में बदल देते हैं शहर
गिरोह के लोग पकड़े जाने के डर से एक महीने से ज्यादा एक जगह नहीं रुकते हैं। बच्चों को इतनी कम उम्र में अगवा करते हैं कि कुछ साल बाद वह अपने वास्तविक मां-बाप का नाम भूल जाएं।
सिखाते हैं भीख मांगना
अगवा बच्चों को कुछ दिन तक अच्छा खाना और कपड़े दिए जाते हैं जिससे कि वह अपने परिजनों को भूल जाएं। फिर उनको भीख मांगना सिखाया जाता है। पहले से भीख मांग रहे अन्य बच्चों के साथ भेजा जाता है। यह तीन से छह माह तक चलता है। इन्कार करने पर बच्चों को भूखा रखने साथ शारीरिक यातनाएं दी जाती हैं।
नशा देकर मासूमों को सुलाए रखते हैं
दो साल से कम बच्चों को गिरोह की महिलाएं नशा देकर नींद में रखती हैं। यह नशा आठ से दस घंटे तक होता है। रात में नशा कम होने पर बच्चों को खाना दिया जाता है। गिरोह की कोशिश यह रहती है कि बच्चा कमजोर दिखाई दे, जिससे कि तरस खाकर लोग ज्यादा भीख दें।
शहर से लापता हैं दर्जनों बच्चे
शहर से दर्जनों बच्चे लापता हैं। इन बच्चों के भीख मांगने वाले गिरोह के चंगुल में होने की आशंका से इंकार नहीं किया जा सकता। लापता बच्चों में एक दर्जन से अधिक एक से पांच साल तक की उम्र के बताए गए हैं।