जरा सोचिए शादी से पहले सुहागरात मनाने की आजादी मिले तो कैसा हो. सुनने में अजीब लगता है पर है बिल्कुल सच. हमारे समाज में इसकी इजाजत नहीं है. शादी से पहले लोगों को एक साथ बैठने यहां तक कि बात करने में भी सोचना पड़ता है. जबकि विदेशों में ये आम बात है लोग इसे लाइफस्टाइल का हिस्सा मानते है. अगर हम कहें ये भारत में भी ऐसा होता है तो. चौंक गए ना. भारत के छत्तीसगढ़ के बस्तर में ऐसी जगह है जहां इसकी आजादी मिलती है
जी हां बस्तर में एक जनजाति ऐसी है, जहां शादी से पहले न केवल प्यार करना जरूरी होता है, बल्कि शादी से पहले सुहागरात भी मनाई जाती है. लेकिन इस परंपरा को कोई गलत न समझें यह प्रथा गोंड जनजाति की पवित्र और एजुकेशनल प्रथा है.यह परंपरा है घोटुल. गोंड जनजाति छत्तीसगढ़ से झारखंड तक के जंगलों में पाई जाती है. इसका एक समुदाय है मुरिया. मुरिया के लोगों की एक परंपरा है, जिसे घोटुल नाम दिया गया है. यह परंपरा दरअसल इस जनजाति के किशोरों को शिक्षा देने के उद्देश्य से शुरू किया गया अनूठा अभियान है। इसमें दिन में बच्चे शिक्षा से लेकर घर–गृहस्थी तक के पाठ पढ़ते हैं तो शाम के समय मनोरंजन करते हैं घोंटुल में आने वाले लड़के को चेलिक और लड़की को मोटियार कहा जाता है.
इस प्रथा को लिंगो पेन यानी लिंगो देव ने शुरू किया था. लिंगो देव को गोंड जनजाति का देवता माना जाता है. सदियों पहले जब लिंगो देव ने देखा कि गोंड जाति में किसी भी तरह की शिक्षा का कोई स्थान नहीं है तो उन्होंने एक अनोखी प्रथा शुरू की थी. उन्होंने बस्ती के बाहर बांस की कुछ झोंपडि़यां बनवाई और बच्चों को वहां पढ़ाना शुरू कर दिया. यही झोंपड़ियां बाद में घोंटुल के नाम से मशहूर हुई. इस जनजाति को करीब से जानने वालों का दावा है कि सिर्फ इसी प्रथा के कारण मुरिया जाति में आज तक बलात्कार का एक भी मामला सामने नहीं आया है.
इस प्रथा में प्रेमी-प्रेमिका जो बाद में जीवनसाथी भी बनते हैं, उनके चयन का तरीका भी अनोखा होता है. दरअसल, जैसे ही कोई लड़का घोंटुल में आता है और उसे लगता है कि वह शारीरिक रूप से मेच्योर हो गया है, उसे बांस की एक कंघी बनानी होती है. यह कंघी बनाने में वह अपनी पूरी ताकत और कला का इस्तेमाल करता है क्योंकि यही कंघी तय करती है कि वह किस लड़की को पसंद आएगा. जितनी खूबसूरत कंघी उतनी खूबसूरत लड़की.