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क्या यही है इंसाफ एक थानेदार का दर्द आया उसकी ज़ुबा पर कहा ‘मेरा लाइन हाजिर होना, मेरी जीत और उनकी हार है- प्रवीण यादव

गाजीपुर। शाहनवाज़ अहमद। सुहवल के एसओ के रूप में बहुचर्चित रहे प्रवीण यादव को लाइन हाजिर करा कर भाजपा के लोग भले अपना कॉलर टाइट कर रहे हों लेकिन खुद श्री यादव इस कार्रवाई को अपनी जीत बता रहे हैं। हालांकि वह यह भी मान रहे हैं कि आयोग की यह कार्रवाई उनकी नौकरी में बड़ा दाग बन गया है लेकिन इसे वह अपने साथ ज्यादती भी मानते हैं। उनका कहना है कि वह अपना फर्ज निभाए लेकिन उन पर एक पार्टी विशेष का झूठा ठप्पा लगा। उन्होंने अपनी बात सोशल मीडिया के जरिये रखी है। मालूम हो कि जंगीपुर उप चुनाव को लेकर भाजपा उनके खिलाफ निर्वाचन आयोग गई। आयोग ने उन्हें तत्काल प्रभाव से सुहवल एसओ के पद से हटाने का आदेश दिया। सोमवार को मतदान से कुछ घंटे पहले पुलिस कप्तान रामकिशोर ने प्रवीण यादव को लाइन हाजिर कर दिया।

यह है उनकी अपनी बात
‘अभी हाल में निर्वाचन आयोग के द्वारा मुझे लाइन हाजिर कर दिया गया।आरोप लगाया गया कि मैं किसी ख़ास पार्टी का समर्थक हूँ, उनके लिए किसी भी हद तक जा सकता हूँ। ये “हद” जो बताई नहीं गई, और जो उनके द्वारा कभी बताई भी नही जा सकती है वो मैं बताता हूँ। वो हद थी उस दायरे को तोड़ देने की जिससे अपराधियों के हौंसले पस्त हो गए थे, वो हद थी एक सामान्य पुलिस अफसर के द्वारा बाहुबलियों की सल्तनत को हिला डालने की, वो हद थी कि आम पुलिस वाला एक आम आदमी को  वो भय मुक्त वातावरण दे सका जिसमें  रह वह  आटा, दाल, चावल खरीद सके, खा सके, चैन से सो सके और सबेरे उठ अपने काम पे जा वापस आ सके। वो हद थी कि एक वर्दी ने अपना कर्तव्य निभाया था चाहे उस राह में शूल आएं थे या फूल। ये मेरे काम करने की हद थी, ये मेरी निष्ठा की हद थी, हद थी समर्पण की, और हद थी कि घर परिवार से दूर रह उस शपथ को निभाए रखने की जिसे हमने वर्दी पहनते समय अशोक की लाट के समक्ष खाई थी। पुलिस महकमा के सारे अधिकारी सुनें, सुने आलाकमान, आप सुनें, और सुने सुहवल की एक एक जनता, कि जिस थानाध्यक्ष के आने से उस क्षेत्र की आपराधिक गतिविधियों में दिनोदिन गिरावट आई थी, जिसने अपने जान की बाजी लगाकर न जाने कितनी घटनाओ का पर्दाफाश किया था आज वही अचानक से निशाने पे क्यों आ गया। निशाने पे लेने वाले ये लोग कही उस आपराधिक गठजोड़ का नतीजा तो नहीं जिसकी मैनें कमर तोड़ दी थी और वो लोग इस लोकतंत्र के पर्व में मुझे बर्दाश्त न कर पा रहे थे।प्रशानिक तामझाम के इंतज़ाम में उलझते उलझते मैं ये भूल ही गया था कि गांधी के इस देश में सत्य को हमेशा परेशान किया जाता है, पर जितना सच ये है …उतना ही सच ये भी है कि सत्य परेशान भले हो, पराजित न कभी हुआ है न होगा। जेठ की दुपहरी से लेकर पूस की ठंडी रात तक बिना उफ़ किये निभाते रहते हैं हम पुलिसवाले अपना फ़र्ज़ और आप कहते हैं कि हद होती है, सैकड़ों के अंतिम संस्कार में सलामी देने वाले हम पुलिसवाले अपनों के अंतिम संस्कार तक में शामिल होने के लिए तरस जाते हैं और आप कहते हैं कि हद होती है….चमचमाती वर्दी के पीछे की फटी बनियान हमारी हक़ीक़त है और आप कहते हैं कि हद होती है…..हाँ साहब, अगर आपकी नज़र में हमने आपकी बनाई हदों को तोडा है तो वो हमें मंज़ूर है, हमें इसी काम के लिए चुना गया था, इसीलिए सजाई गए थे कन्धों पे ये सितारे कि चमक उठना है अपराध की आकाशगंगा में सूरज की तरह और फीकी कर देनी है अपराध की काली स्याह होती रात को। मेरा लाइन हाजिर होना, मेरी जीत है। ये जीत है हर उस पुलिसवाले की जिसने ईमानदारी से काम करने की कसम खाई है। कोयले की खदान से हीरे को निकाल अलग रखना ही होता है साहब, तभी वो चमकेगा’-प्रवीण यादव⁠⁠⁠⁠
साभार- ग़ाज़ीपुर आजकल
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