ज्यों-ज्यों दवा की, त्यों-त्यों मर्ज बढ़ता गया। यह कहावत राजस्थान में शिक्षा विभाग पर लागू हो रही है। सरकार ने स्कूलों की दशा सुधारने के लिए स्टाफिंग पेटर्न लागू करने का निर्णय लिया था। सरकार के इस निर्णय के अंतर्गत ही 13 जून को प्राथमिक शिक्षा के निदेशक जगदीश पुरोहित ने ब्लॉक वार पदों का विवरण जारी कर दिया है। इस प्रदेश स्तरीय विवरण में जिन स्कूलों में विद्यार्थियों की संख्या 120 से कम हैं उन प्राथमिक स्कूलों में शारारिक शिक्षक की नियुक्ति नहीं बताई गई है। ऐसी समिति में प्रदेशभर के शारारिक शिक्षकों में सरकार के प्रति भारी नाराजगी है। जानकारी के अनुसार प्रदेशभर में इस स्तर के स्कूलों में कोई 15 हजार पीटीआई कार्यरत हैं। जब 120 से कम नामांकन वाले स्कूलों में पीटीआई रहेंगे ही नहीं तो फिर इन हजारों पीटीआई का सरकार क्या करेगी?
सरकार ने हाल ही में जो पदोन्नति और काउंसलिंग की, उसके माध्यम से इन शारीरिक शिक्षकों ने बड़ी मुश्किल से स्कूलों में पद ग्रहण किया था, लेकिन अब ऐसे शिक्षकों को एक बार फिर इधर-उधर होना पड़ेगा। यानि जब-जब सरकार व्यवस्था में सुधार करती है तब-तब हालात बिगड़ते हैं। शारीरिक शिक्षकों के मामले में तो व्यवस्था का भट्टा ही बैठ गया है। जानकारी के अनुसार अजमेर शहर में 48 प्राथमिक विद्यालयोंं में से मात्र 15 विद्यालयों में ही 120 से अधिक का नामांकन है। ऐसे में अंदाज लगाया जा सकता है कि प्रदेश भर में कितनी अफरा-तफरी मचेगी। शारीरिक शिक्षकों के प्रतिनिधि जयप्रकाश, राकेश शर्मा, सुरेन्द्र सिंह चौहान आदि ने कहा कि जब सरकार स्कूलों में प्रार्थना और योग की कक्षाए अनिवार्य कर रही है तो फिर स्कूलों में शारीरिक शिक्षकों को क्यों हटाया जा रहा है। प्रार्थना और योग के लिए शारारिक शिक्षक का होना जरूरी है। इससे प्रतीत होता है कि सरकार की कथनी व करनी में फर्क है। सरकार वाह वाही लूटने के लिए प्रार्थना और योग की घोषणा करती है और दूसरी ओर स्कूलों से शारीरिक शिक्षकों को ही हटाया जा रहा है। शिक्षक प्रतिनिधियों ने सरकार से आग्रह किया हैं कि जिस प्रकार सभी स्कूलों में एक प्रधानाध्यापक, तीन लेवल दो तथा दो लेवल एक के शिक्षकों की नियुक्ति अनिवार्य की गई है। उसी प्रकार सभी स्कूलों में शारारिक शिक्षक की नियुक्ति को भी बरकरार रखा जाए। यदि स्कूलों में शारीरिक शिक्षक ही नहीं होगा तो विद्यार्थियों का शारीरिक विकास कैसे होगा।