(आचार्य सुधीर जी)
जेष्ठ माह की शुक्ल पक्ष की दशमी को गंगा दशहरा मनाया जाता है। इस वर्ष गंगा दशहरा 14 जून 2016 के दिन मनाया जाएगा। स्कंदपुराण के अनुसार गंगा दशहरे के दिन व्यक्ति को किसी भी पवित्र नदी पर जाकर स्नान, ध्यान तथा दान करना चाहिए. इससे वह अपने सभी पापों से मुक्ति पाता है। यदि कोई मनुष्य पवित्र नदी तक नहीं जा पाता तब वह अपने घर पास की किसी नदी पर स्नान करें।ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष की दशमी को संवत्सर का मुख कहा गया है, इसलिए इस इस दिन दान और स्नान का ही अत्यधिक महत्व है। वराह पुराण के अनुसार ज्येष्ठ शुक्ल दशमी, बुधवार के दिन, हस्त नक्षत्र में गंगा स्वर्ग से धरती पर आई थी। इस पवित्र नदी में स्नान करने से दस प्रकार के पाप नष्ट होते है।
इस बार यह दिन विशेषनारद पुराण के अनुसार ज्येष्ठ मास को मंगलवार के दिन शुक्ल पक्ष में दशमी तिथि को हस्त नक्षत्र में जाह्नवी (मां गंगा) का मृत्युलोक में अवतरण हुआ। इस दिन वह आद्यगंगा स्नान करने पर दस गुने पाप हर लेती हैं। ज्येष्ठे मासि क्षितिसुतदिने शुक्लपक्षे दशम्यां हस्ते शैलादवतरदसौ जाह्नवी मृत्युलोकम्। पापान्यस्यां हरति हि तिथै सा दशैषाद्यगंगा पुण्यं दद्यादपि शतगुणं वाजिमेधक्रतोश्च।इस बार भी गंगा दशहरा पर मंगलवार हस्त नक्षत्र व संक्रांति होने के कारण यह दिन विशेष बन गया है। अत: जानकारों के अनुसार इस दिन गंगा स्नान जरूर करें।
पूजा विधि इस दिन पवित्र नदी गंगा जी में स्नान किया जाता है। यदि कोई मनुष्य वहाँ तक जाने में असमर्थ है तब अपने घर के पास किसी नदी या तालाब में गंगा मैया का ध्यान करते हुए स्नान कर सकता है (गंगा जी का ध्यान करते हुए षोडशोपचार से पूजन करना चाहिए। गंगा जी का पूजन करते हुए निम्न मंत्र पढ़ना चाहिए – ऊँ नम: शिवायै नारायण्यै दशहरायै गंगायै नम:।
इस मंत्र के बाद ऊँ नमो भगवते ऎं ह्रीं श्रीं हिलि हिलि मिलि मिलि गंगे मां पावय पावय स्वाहा मंत्र का पाँच पुष्प अर्पित करते हुए गंगा को धरती पर लाने भगीरथी का नाम मंत्र से पूजन करना चाहिए। इसके साथ ही गंगा के उत्पत्ति स्थल को भी स्मरण करना चाहिए। गंगा जी की पूजा में सभी वस्तुएँ दस प्रकार की होनी चाहिए। जैसे दस प्रकार के फूल, दस गंध, दस दीपक, दस प्रकार का नैवेद्य, दस पान के पत्ते, दस प्रकार के फल होने चाहिए। यदि कोई व्यक्ति पूजन के बाद दान करना चाहता है तब वह भी दस प्रकार की वस्तुओं का करता है तो अच्छा होता है लेकिन जौ और तिल का दान सोलह मुठ्ठी का होना चाहिए। दक्षिणा भी दस ब्राह्मणों को देनी चाहिए. जब गंगा नदी में स्नान करें तब दस बार डुबकी लगानी चाहिए।
गंगा दशहरे का महत्व भगीरथी की तपस्या के बाद जब गंगा माता धरती पर आती हैं उस दिन ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष की दशमी थी। गंगा माता के धरती पर अवतरण के दिन को ही गंगा दशहरा के नाम से पूजा जाना जाने लगा। इस दिन गंगा नदी में खड़े होकर जो गंगा स्तोत्र पढ़ता है वह अपने सभी पापों से मुक्ति पाता है। स्कंद पुराण में दशहरा नाम का गंगा स्तोत्र दिया हुआ है। गंगा दशहरे के दिन श्रद्धालु जन जिस भी वस्तु का दान करें उनकी संख्या दस होनी चाहिए और जिस वस्तु से भी पूजन करें उनकी संख्या भी दस ही होनी चाहिए। ऎसा करने से शुभ फलों में और अधिक वृद्धि होती है।
गंगा दशहरे का फल ज्येष्ठ शुक्ल दशमी के दिन गंगा स्नान करने से व्यक्ति के दस प्रकार के पापों का नाश होता है। इन दस पापों में तीन पाप कायिक, चार पाप वाचिक और तीन पाप मानसिक होते हैं. इन सभी से व्यक्ति को मुक्ति मिलती है।