रामपुर। रविशंकर व ललित। वर्ष 1987 में शासनादेश जारी कर आयुक्त ग्राम विकास एवं पंचायती राज का पद सृजित कर दोनों विभागों के विलय की कार्रवाई शुरू की गई जो दुर्भाग्य से पूर्ण नहीं हो सकीं, परन्तु इस शासनादेश से ग्राम्य विकास का जन्म हुआ।और प्रदेश में दो विभाग, ग्राम्य विकास एवं पंचायती राज बन गए।वर्ष 1991 में प्रादेशिक सेवा नियमावली का संशोधन कर पंचायती राज विभाग के सहायक विकास अधिकारी (पंचायत) को खण्ड विकास अधिकारी पदों में पदोन्नति के कोटे को समाप्त कर दिया गया तथा इतने से ही संतोष न होने पर वर्ष 1992 में पंचायती राज विभाग को कृषि उत्पादन आयुक्त शाखा से ही हटा दिया।इन विसंगतियों को यद्यपि सभी ने देखा परन्तु दूर करने का प्रयास न किया गया।
परिणाम स्वरूप पंचायती राज विभाग स्वतंत्र विभाग होने के बावजूद पंचायती राज विभाग के कर्मचारी जिला स्तर पर ग्राम्य विभाग के बंधुआ मजदूर हो गये और खण्ड विकास अधिकारी काम तो सहायक विकास अधिकारी ( पंचायत ) से कराता है, पर उसका श्रेय स्वयं लेता रहता है।
उदाहरणार्थः-
● वर्ष 1999 तक ग्राम्य विकास विभाग के बजट में रहने के बावजूद सहायक विकास अधिकारी का खण्ड विकास अधिकारी में पदोन्नति का कोटा वर्ष 1991 में समाप्त कर दिया गया ।
●पंचायत चुनाव के परिसीमन से लेकर वार्डो के निर्धारण तक समस्त कार्य सहायक विकास अधिकारी ( पंचायत ) द्वारा किया जाता है, परन्तु मानदेय खण्ड विकास अधिकारी को मिलता है ।
■ संगठन अतिविनम्रता पूर्वक मांग करता है कि-
●ग्राम पंचायत से लेकर प्रदेश तक प्रत्येक स्तर पर ग्राम्य विकास विभाग के नियंत्रण से पंचायती राज विभाग को मुक्त करना।
●सहायक विकास अधिकारी ( पंचायत ) पर खण्ड विकास अधिकारी के अधिकार को समाप्त किया जाए।