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मोदी जी, आपके सांसद साप्ताहिक अवकाश पर रहते है।

इब्ने हसन ज़ैदी के कलम से
सांसद का साप्ताहिक अवकाश क्या आपने कभी सुना है ? नहीं न ? लेकिन कानपुर के सांसद डाॅ. मुरली मनोहर जोशी का वीकली आॅफ तय है। उनके काम के घंटे भी तय है। मेहमान भूमिका में कानपुर आने वाले सांसद जी को लेकर तमाम सवाल खड़े हो रहे है। आपको बताते चले कि विगत लोकसभा में वाराणसी के सांसद रहे डॉ जोशी के लिए उनके संसदीय क्षेत्र के कुछ लोगो ने गुमशुदगी तक दर्ज करवाने का प्रयास किया था।
बीजेपी की तीन धरोहरों में से एक डाॅ. मुरली मनोहर जोशी कानपुर नगर से सांसद है। उनका ज्यादातर समय दिल्ली में बीतता है। वीआईपी सिंड्रोम से जूझ रहे सांसद जी कभी कभार कानपुर आते है और जब आते है तो मेहमान भूमिका में। अपने ही संसदीय क्षेत्र में पहुंचने पर  सांसद जी का उनकी पार्टी के नेता व कार्यकर्ता जोशीला स्वागत करते है। जिसे देखकर आम जनता के मन में एक टीस जरूर होती है कि उन लोगों ने ऐसा सांसद चुना है जो अपने क्षेत्र की समस्याओं से अंजान है और उसके दर्शन भी दुर्लभ है। ताज्जुब की बात तो ये है कि सांसद महोदय की शहर में नामौजूदगी जहां विरोधियों के आरोपों को सही साबित करती है वहीं खुद सांसद का कार्यालय इस बात का दर्शाता है कि डाॅ. जोशी जितने वीवीआईपी है उतना ही वीवीआईपी उनका कार्यालय। डाॅ. जोशी से मिलने का समय सुबह 10 बजे से लेकर षाम 5 बजे तक है। उनका साप्ताहिक अवकाष रविवार फिक्स है। उनके कार्यालय में लंच टाइम में कोई काम नहीं होता है। लंच टाइम रोजाना उनके पीए के मुताबिक बदलता रहता है। कुल मिलाकर उंची दुकान फीका पकवान। सांसद जी के पास आम जनता के दुखदर्द को सुनने का समय ही नहीं है। नाम के लिए कानपुर प्रवास के दौरान वो जनता दरबार लगाते है लेकिन उसमें भी गिने-चुने लोगों की समस्याएं सुनी जाती है बाकी सबके सब मायूस लौटते है। यही कारण कि बिजली-पानी जैसी मूलभूत जरूरतों से जूझ रही आम जनता का गुस्सा अब अपने सांसद पर फूट रहा है। उनके विरोध के नारे लग रहे है।
बीजेपी की इस कमजोरी को भांप विरोधी दल खासे सक्रिय हो गए है। उन्हें मालूम है कि अगर वो जनता के इस गुस्से को भुनाने में कामायाब हो गए तो आगे आने वाले विधान सभा चुनाव में उन्हें इसका भरपूर फायदा मिलेगा। यही कारण है कि कांग्रेस ने सांसद पर तंज कसते हुए उन्हें ढूंढकर लाने वाले को ईनाम के तौर एक घड़ा पानी देने जैसी घोषणा वाली होर्डिंग्स जगह-जगह लगाई जो लोगों में चर्चा का विशय रही। अब जब सांसद जी उनके कार्यालय के साप्ताहिक अवकाश की बात सामने आयी है तो विपक्ष जमकर कटाक्ष कर रहा है।
पीड़ित आम जनता से लेकर विरोधी पार्टी के नेता लगातार सांसद महोदय की क्षेत्र में सक्रियता को लेकर उंगली उठा रहे है। खुद सांसद जी की पार्टी के नेता व कार्यकर्ता भी उनसे नाखुश है। लेकिन पार्टी के भीतर उनके कद के चलते कोई भी खुलकर सामने आने को तैयार नहीं है। जनप्रतिनिधि के काम के घंटे और उनके साप्ताहिक अवकाश के सवाल पर सांसद जी की ही पार्टी के तीन बार विधायक सलिल विश्नोई जवाब देते है कि वो और उनका कार्यालय क्षेत्र की जनता के लिए 24 घंटे और साल के 365 दिन उपलब्ध है। लेकिन जब डाॅ. जोशी का मामला सामने आया तो विधायक जी ने उन्हें राष्ट्रीय नेता बताते हुए बात को घुमा दिया और मुस्कराकर चलते बने।
आपको स्मरण करवाते चले कि 2014 में जब डाॅ. जोशी कानपुर से चुनाव लड़ने आए तो दक्षिण क्षेत्र से एक नारा दिया गया था कि नरेन्द्र मोदी जरूरी है, मुरली मनोहर जोशी मजबूरी है। तमाम विवादों के बाद डाॅ. जोशी मोदी के नाम पर लोकसभा चुनाव तो जीत गए लेकिन अपनी ही पार्टी के नेताओं और कार्यकर्ताओं का दिल नहीं जीत पाए। उनकी तुनकमिजाजी जगजाहिर है। उम्र के इस पड़ाव में लोकसभा क्षेत्र में उनकी सक्रियता की अनदेखी तो की जा सकती है लेकिन जनता की समस्याओं की उपेक्षा करना उनको और उनकी पार्टी को काफी भारी पड़ रहा है। आगामी विधानसभा चुनाव में किस मुंह से आम जनता के बीच में जाएंगे, इसको लेकर अभी से बीजेपी विधायकों के पसीने छूट रहे है। किसी तरह से डैमेज कंट्रोल किया जाए, उसमें ही वो जुटे है। ऐसा भी नहीं है कि डाॅ. जोशी जनता के गुस्से से अंजान है लेकिन शायद ये उनका आखिरी चुनाव था और आगे वो चुनाव न लड़े, इस कारण वो बेफ्रिक है। तमाम कमियों से घिरे डाॅ. जोशी मीडिया से हमेशा दूरी बनाए रहते है। यही कारण है कि जब वो सवालों से घिरते है तो उनका गुस्सा सातवें आसमान पर आ जाता है और वो मीडिया से भी बदसलूकी करने से नहीं चूकते। फिर चाहे उन्हें न्यूज चैनलों की माइक-आईडी फेंकनी पड़े या फिर किसी पत्रकार से अभ्रदता। कांग्रेस के विरोध वाले पोस्टर-होर्डिंग्स पर उनका जवाब भी बड़ा अजीब है।
ये बात सच है कि डाॅ. जोशी का बहुत बड़ा कद है लेकिन कानपुर की जनता का क्या कसूर जिसने उनको वोट दिया और सांसद चुना। उसे क्या मालूम था कि उनका सांसद मेहमान भूमिका में होगा और वो कभी-कभी दर्शन देगा। चलो ये भी जनता को मंजूर है लेकिन उसकी समस्याओं की अनदेखी किसी भी सूरत-ए-हाल बर्दाश्त के बाहर है। अब यह बात भाजपा के स्थानीय नेता भी कहते नज़र आ जाते है कि सांसद जी का कद जितना बड़ा हो, सबसे बड़ा कद आम जनता का है।
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