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दाल के दामो के बढ़ने का राज़

दाल के दाम क्यों ज़्यादा हैं जबकि केंद्र सरकार, राज्यों को 65 रूपये प्रति किलो के हिसाब से देती है. हम आपको बताते हैं कि ऐसा इसलिए होता है क्योंकि केंद्र सरकार जो दाल राज्यों को देती है वो कच्ची होती है यानि कि दाल का पूरा दाना होता है. वहीं दुकानों पर जो खाने लायक दाल होती है वो पूरी तरह प्रोसेस होकर मिलती है यानी पूरी तरह खाने लायक तैयार दाल होती है.

दाल की बढ़ती कीमतों के बीच केंद्रीय खाद्य मंत्री रामविलास पासवान के एक बयान ने एक नई राजनीति शुरू कर दी है. रामविलास पासवान ने कहा कि “दाल की कीमत बढ़ने पर राज्य सरकार को पकड़ना चाहिए क्योंकि केंद्र सरकार अरहर दाल को 66 रुपये प्रति किलो में दे रही है. राज्य हमसे लेकर 120 रुपये किलो तक बेच सकते हैं लेकिन इससे ज्यादा नहीं”. यानी केंद्र सरकार कह रही है कि वो राज्यों को सस्ते में दाल देने को तैयार हैं लेकिन शर्त सिर्फ इतनी है कि राज्य सरकारें भी दाल की कीमतों पर लगाम लगाएं. लेकिन राज्यों का कहना है कि ऐसा करना उनके लिए मुश्किल हैं क्योंकि सरकार 66 रुपए में जो दाल मुहैया कराने की बात कर रही है वो साबुत होती है यानी उसे बिना प्रोसेस किए खाया नहीं जा सकता और दाल को खाने लायक बनाने में जो खर्च आता है उसे मिलाकर कीमत 120 से ऊपर चली जाती है.
66 रुपये की दाल के दाम लोगों तक पहुंचते पहुंचते दोगुने से भी ज्यादा हो जाते हैं. ऐसा इसलिए होता है क्योंकि-
केंद्र सरकार विदेशों से साबुत दाल आयात करती है और इस दाल को वो राज्यों को 66 रुपये किलो में देती है. लेकिन राज्यों को ये दाल बंदरगाह से उठानी होती है. उसके बाद उस साबुत दाल को खाने लायक बनाने के लिए राज्यों को उसे मिलों में भेजना होता है. बंदरगाह से मिल तक लाने का खर्च करीब 10 रुपये किलो बैठता है. इस तरह मिल तक पहुंचने में ही दाल की लागत 76 रुपये किलो हो जाती है. मिल में प्रोसेसिंग के बाद 100 किलो साबुत दाल में से करीब 66 किलो दाल ही खाने लायक निकलती है. यानी लगभग एक तिहाई दाल बेकार हो जाती है इस वजह से उस दाल की लागत 25 से 30 रुपये किलो बढ़ जाती है. इस वजह से मिल से निकलने तक दाल की लागत 100 से 105 रुपये किलो हो जाती है. इसके बाद उस दाल को पूरे राज्य में पहुंचाने यानी वितरण के लिए राज्य सरकारों को खर्च करना पड़ता है. इस खर्च को मिलाकर दाल की लागत करीब करीब 120 रुपये किलो पर पहुंच जाती है.
यही वजह है कि ज्यादातर राज्य केंद्र सरकार से दाल खरीदने को तैयार नहीं हैं. और इस वजह से दाल की कीमतें और बढ़ रही है. हालांकि केंद्र का कहना है कि दाल के दाम को काबू में करने के लिए राज्यों को भी अपनी जिम्मेदारी निभानी होगी.
उपभोक्ता मामलों के सचिव एम पांडे का कहना है कि हम जो 66 में दे रहे हैं उसे हम 90 से 100 रुपये में खरीदते हैं और फिर राज्य सरकारों को १२० रुपये प्रति किलो में बेचने को कहते हैं. केंद्र सरकार के मुताबिक अभी तक आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, तमिलनाडु, महाराष्ट्र और दिल्ली जैसे राज्यों ने 66 रुपये किलो की दर से उड़द दाल और 82 रुपये किलो की दर से अरहर दाल की मांग की है. जबकि देश के कई बड़े राज्यों की तरफ से कोई मांग नहीं रखी गई.
इस बारे में मीडिया ने उत्तर प्रदेश के खाद्य मंत्री कमाल अख़्तर से सवाल किया तो उन्होंनें कहा कि केंद्र सरकार अपनी जिम्मेदारी से बच रही हैं. उत्तर प्रदेश ने 500 मीट्रिक टन मांगी है और जैसे ही वो आ जाएगी वैसे ही इसका वितरण शुरू कर दिया जाएगा. वहीं राजस्थान के मंत्री ने बयान दिया कि राज्य ने पत्र लिखा दिया है जल्द ही सही दाम पर दाल मिलेगी. वहीं बिहार के मंत्रियों का कहना है कि बिहार के अंदर जन वितरण विक्रेता के अलावा कोई संस्था नहीं है. लेकिन बिहार सरकार सस्ती दाल दिलाने के लिए सारा खर्च वहन करने के लिए तैयार हैं.
इस बीच केंद्र सरकार ने फैसला किया है कि दालों का बफर स्टॉक 1.5 लाख टन से बढ़ाकर 8 लाख टन तक किया जाएगा. यानी दाल की बढ़ती कीमतों पर काबू करने के लिए सरकार और दाल आयात करेगी इसके अलावा जमाखोरों के खिलाफ भी सख्त कदम उठाए जाएंगे. इस तरह इन सब कदमों को देखते हुए उम्मीद की जा सकती है कि जल्द ही देश की जनता को सस्ती दाल मिलने लगेगी लेकिन इसके लिए थोड़ा इंतजार और करना पड़ सकता है
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