◆आज तक न दर्ज हुई पीड़िता की शिकायत पर FIR
◆प्राचार्य डॉ अरविन्द पाण्डेय कहते है कि “मैं सब मैनेज कर लेता हु।”
◆सुल्तानपुर के सांसद वरुण गांधी के प्रतिनिधि ओम प्रकाश पाण्डेय है इस महाविद्यालय के अध्यक्ष।
◆सांसद प्रतिनिधि के कालेज में कितना सुरक्षित है महिलाये उनके संसदीय क्षेत्र की।
◆ क्षेत्राधिकारी कादीपुर की जांच क्या एक बार फिर दे देगी प्राचार्य अरविन्द पाण्डेय को क्लीन चिट।
सुल्तानपुर। कादीपुर के बरवारीपुर स्थित संत तुलसीदास पीजी कालेज (सम्बद्ध अवध विश्वविद्यालय) आज का अपने प्राचार्य अरविन्द पाण्डेय के कृत्यों से पुनः चर्चा का केंद्र बिंदु बना हुवा है। प्राचार्य के ऊपर एक शिक्षिका ने एक बार फिर छेड़छाड़ का और शारीरिक शोषण के प्रयास का आरोप लगाया है। शिक्षिका ने इसकी शिकायत जब प्रबंध समिति से की तो उसको महाविद्यालय से निकाल दिया गया। न्याय की आस न देख शिक्षिका ने ज़िला अधिकारी सुल्तानपुर को इसकी शिकायत की और मुख्यमंत्री को भी मेल किया। जिलाधिकारी सुल्तानपुर ने महिला थानाध्यक्ष को पत्र अग्रसारित कर दिया। वही दुसरी तरफ महिला थाने ने इस सम्बन्ध में अभी तक शिकायत पंजीकृत नहीं की है।
शिक्षिका का आरोप है कि प्राचार्य अरविन्द पाण्डेय और उनके दाहिने हाथ के रूप महाविद्यालय परिसर में प्रसिद्ध अर्थशास्त्र के शिक्षक रविन्द्र मिश्रा उसके साथ छेड़छाड़ करते थे, एवं उसका शारीरिक शोषण करना चाहते थे जिसकी शिकायत जब उसने प्रबंध समिति से किया तो प्रबंध समिति ने प्राचार्य के विरुद्ध कोई कार्यवाही नहीं की उलटे उसको ही महाविद्यालय की नौकरी से निकाल दिया गया। उसके बाद इस प्रकरण की शिकायत जब ज़िलाधिकारी से की है इसके उपरांत भी आज तक महिला थाने ने अपराध पंजीकृत नहीं किया है।
इस प्रकरण की जांच क्षेत्राधिकारी कादीपुर द्वारा भी किया जा रहा है जिस सम्बन्ध में पीड़िता का बयान महाविद्यालय परिसर में लिया गया है। वही सूत्रो की माने तो इस प्रकरण में प्राचार्य द्वारा अपने अधिनास्तो को कहा जा रहा है कि क्षेत्राधिकारी का पद उनसे छोटा पद है जाँच वो मैनेज हो चुकी है।
प्रकरण की सत्यता जो भी हो, परंतु डॉ अरविन्द पाण्डेय और उनके दाहिने हाथ के तौर पर क्षेत्र में चर्चित डॉ रविन्द्र मिश्रा पर यह पहला आरोप नहीं है। इस प्रकार के कई आरोप लगे है परंतु डॉ अरविन्द पाण्डेय के खिलाफ कोई जांच अपने चरम पर नहीं पहुच पाती है। यदि चर्चाओ को आधार माना जाय तो डॉ पाण्डेय धनबल और बाहुबल के आधार पर सब कुछ मैनेज कर लेते है।
इसी प्रकार के एक प्रकरण में महाविद्यालय प्रबंध कमेटी की एक बैठक में एक समाचार का संज्ञान लेते हुवे वर्ष 2012 के जनवरी माह में एक जांच समिति का गठन हुवा जो आरोपो की जांच करने वाली थी। मगर मानना पड़ेगा डॉ अरविन्द पाण्डेय की पकड़ को। जांच समिति आज तक काम नहीं शुरू की है और प्राचार्य का यह साम्राज्य आज भी जारी है। बात सिर्फ यही खत्म नहीं होती है। एक महिला प्रवक्ता ने भी प्राचार्य पर गंभीर आरोप लगाये मगर आज 5 वर्ष के लगभग होने को आया आज तक उस महिला को न्याय नहीं मिला।
अगर चर्चाओ को आधार माना जाय तो एक जाति विशेष के लोगो पर प्राचार्य की यह गाज गिरती है। आइये कुछ प्रचार्य के उत्पीड़न के शिकार लोगो की फेहरिस्त बनाते है। कालेज में चर्चा है कि वर्ष 2009, जब से प्राचार्य डां.अरविन्द पाण्डेय ने कानपुर से आकर इस महाविद्यालय में कार्यभार ग्रहण किया है, तब से इस प्रकार का खेल किया जा रहा है। पीडितो के आरोप रहते है कि प्रबन्धक सौरभ त्रिपाठी, प्राचार्य डां.अरविन्द पाण्डेय एवं शिक्षक डां.रवीन्द्र मिश्रा की तिकड़ी का ही परिणाम हैकि बर्ष 2009 से जाति विशेष का शोषण,उत्पीड़न एवं निष्कासन निरन्तर जारी है।
★ 2009 में गृहविज्ञान की एक महिला प्रोफ़ेसर का उत्पीड़न का मामला चर्चा में आया था, मामला विश्वविद्यालय एवं पुलिस अधिक्षक तक गया। नतीजा सिफर ही रहा और यहाँ से अरविन्द पाण्डेय का वर्चस्व कायम हुवा। उक्त महिला के प्रकरण में कहा जाता है की हर जांच को अरविन्द पाण्डेय ने मैनेज किया था।
★ 2011 में हिन्दी की एक महिला प्रोफ़ेसर उत्पीड़न का बहु चर्चित मामला प्रकाश में आया था जहा प्रोफ़ेसर ने आरोप लगाया था कि प्राचार्य डॉ अरविन्द पाण्डेय ने उनसे अभद्रता की है। प्रकरण में महिला प्रोफ़ेसर द्वारा कड़ा विरोध किया गया था जिससे कुंठित होकर प्राचार्य और मैनेजर ने महिला प्रोफ़ेसर को कालेज से निकाल दिया है। मामला मा.हाईकोर्ट में विचाराधीन। परंतु इस प्रकरण में विश्वविद्यालय द्वारा जांच का आदेश दिया गया मगर जांच आज तक न हो पाई है। स्थानीय थाना तो लगभग मूकदर्शक बना रहा जब शिकायत के बाद भी कोई अपराध पंजीकृत नहीं किया गया था।
★2011 में ही हिन्दी की एक अन्य महिला शिक्षिका का शोषण का प्रयास हुवा, सफलता न प्राप्त होने पर निस्कासन की कार्यवाही की गई। मामला यह भी विश्वविद्यालय के संज्ञान में रहा। नतीजा आज भी सिफर है।
★2012 में गृहविज्ञान की एक अन्य शिक्षिका का उत्पीड़न का प्रयास हुवा असफल होने पर निष्कासन हुआ
★2013 में डां.धनन्जय सिंह, संस्कृत का निस्कासन,मामला आज भी जिलाधिकारी से लेकर पी.एम.ओ.दिल्ली तक लम्बित है। गज़ब की जुझारू प्रवित्ति का यह शिक्षक आज भी लड़ाई लड़ रहा है।
★2014 में भूगोल की एक महिला शिक्षिका का निस्कासन, आरोप पुनः वही उत्पीड़न की शिकायत रहा। नतीजा आज भी ज़ीरो है। इसको इतेफाक कहा जाय या फिर कोई साजिश कि ये सभी शिक्षिकाएं एक ही जाति से सम्बंधित है।
और अब 2015-16 में जाति विशेष की महिला शिक्षिका के प्रति तो उक्त तीनों की तिकड़ी ने तो विद्या के मन्दिर में ही सारे सामाजिक मर्यादाओं को ही तार तार कर दिया। मामला जिलाधिकारी,पुलिस अधीक्षक,महिला आयोग,मुख्यमंत्री एवं राज्यपाल के संज्ञान में।
क्या है मुख्य शक्ति अरविन्द पाण्डेय की-
कहा जाता है कि इस महाविद्यालय में आने के पुर्व डॉ अरविन्द पाण्डेय कानपुर में बड़ी ही चर्चित शख्सियत रहे है। बातो के माहिर डॉ अरविन्द पाण्डेय को यहाँ अपनी चाटुकारिता के लिए डॉ रविन्द्र मिश्रा का साथ मिला। डॉ रविन्द्र मिश्रा पुर्व प्राचार्य के सॉफ्ट टारगेट पर थे और नौकरी लगभग खोने के कगार पर थे। उसी दरमियान संगठन का नाम प्रयोग करके रविन्द्र मिश्रा ने लाखो का घोटाला किया था। इसका बवाल 2009 में बढ़ने वाला था कि महाविद्यालय में आगमन डॉ अरविन्द पाण्डेय का हो गया। कहा जाता है कि डॉ अरविन्द पाण्डेय ने रविन्द्र मिश्रा से डील के तहत इस केस को दबवा दिया और रविन्द्र मिश्रा बन गए फिर डॉ अरविंद पाण्डेय के खासम खास। यहाँ से शुरू होता है डॉ अरविन्द पाण्डेय का खरीद फरोख्त का खेल।
★ अगले लेख में जानिये खामिया जो प्रबंध समिति और जाँच अधिकारी को नहीं दिखती है।★
इस सम्बन्ध में हमारी बात जब डॉ धनञ्जय सिंह से हुई तो उन्होंने बेसाख्ता कहा कि “ताज्जुब इस बात का है कि इस प्रकार के बढते जातीय उत्पीड़न को सुनकर व देखकर पुरजोर आवाज़ उठाने के बजाय क्षत्रिय समाज के लोग प्राचार्य द्वारा फेकें गये चन्द सिक्को की चमक,लालच व व्यक्तिगत स्वार्थ में अपने स्वाभिमान को भी गिरवी रख चुके हैं, जिसके कारण उक्त तिकड़ी का मनोबल जाति विशेष के प्रति दिन प्रति दिन बढ़ता ही जा रहा है। अब तो आशंका इस बात
है कि कादीपुर क्षेत्र की बहू बेटियां महाविद्यालय परिसर में ऐसे दुराचारी व व्यभिचारी प्राचार्य व शिक्षक के संरक्षण में स्वयं को सुरक्षित व संरक्षित रख भी पायेगी या नहीं ?”
क्रमशः
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