बहराइच। गन्ना विकास विभाग की ओर से किसानों को सलाह दी गयी है कि पेडी से गन्ने की अच्छी उपज प्राप्त करने के स्वस्थ बावग फसल एवं प्रजातियों का चुनाव करें। प्रायः यह देखा जाता है कि किसान पेड़ी को एक “बोनस फसल” समझकर इसकी जरूरी देख-भाल नहीं करते, जबकि गन्ने की खेती के लिए भूमि की तैयारी व बीज गन्ना की बचत की दृष्टि से पेड़ी रखना अत्यन्त लाभदायक है। पेराई के प्रारम्भिक सत्र में मिलों में चीनी परता बढ़ाने तथा गुण व खण्डसारी इकाईयों में पेड़ी का विशेष योगदान है।
प्रदेश के गन्ना आयुक्त विपिन कुमार द्विवेदी की ओर से जारी किये गये पत्र के हवाले से जिला गन्ना अधिकारी राम किशन ने बताया कि सामान्यतः केवल एक ही पेड़ी की संस्तुति की जाती है किन्तु यदि विधिवत् देख-भाल व पर्याप्त सावधानी बरती जाय तो इसकी आवृत्ति बढ़ जाती है। पेड़ी से अच्छी उपज प्राप्त करने के लिए कृषकों को सुझाव दिया गया है कि बावग गन्ने की कटाई बसन्तकालीन (फरवरी-मार्च) की जानी चाहिए। इस समय काटे गये गन्ने में देर से निकले कल्ले नहीं छोड़ने चाहिए परन्तु विलम्ब (अप्रैल-मई) में काटी गयी बावग गन्ने की फसल में उन किल्लों को रखने से पेड़ी की उपज में वृद्धि होती है।
गन्ना किसानों को यह भी सलाह दी गयी है कि बावग गन्ने की कटाई जमीन से सटा कर करें जिससे निकलने वाले किल्ले जमीन के अन्दर ठूठ की आखों से निकलें। पौधों को जमीन के उपर से काटे जाने की स्थिति में ट्रैक्टर चालित “स्टबल शेवर” द्वारा ठूठों को काट देना चाहिए तथा सिंचाई करने के बाद ओट आने पर लाईनों के बीच हल चलाकर पुरानी जड़ों की छटाई कर देनी चाहिए। भारतीय गन्ना अनुसंधान केन्द्र लखनऊ द्वारा विकसित किये गये रैटून मैनेजमेंट डिवाइस से ठूंठों की कटाई, जड़ों की छटाई, खाद व दवा डालने जैसे कई कार्य एक साथ किये जा सकते है।
विभाग की ओर से किसानों को जानकारी दी गयी है कि एक साथ कल्ले फूटने व शुरू में जड़ों के कम सक्षम होने के कारण पेड़ी को बावग गन्ने की अपेक्षा 25 प्रतिशत नत्रजन की आवश्यकता होती है। पेडी द्वारा ली जा रही उपज के लिए नत्रजन 200 कि.ग्रा. तथा फास्फोरस व पोटाश 60-60 कि.ग्रा. प्रति हेक्टेयर की दर से उर्वरक का उपयोग करें।
नत्रजन की आधी तथा फास्फोरस एवं पोटास की पूरी मात्रा ठॅठ कटाई तथा जुताई के समय ही हल द्वारा जमीन से लगभग 10 सेंमी नीचे देना चाहिए। पेड़ी में जडे उथली होने के कारण सिंचाई 10-15 दिन के अन्तराल पर करते रहे गन्ने की दो पक्तियों के बीच सूखी पत्तिया बिछा देने से खेत में नमी बनी रहने के साथ ही साथ खर पतवार भी नष्ट हो जाते है। किसानों को यह भी सुझाव दिया गया है कि यदि पेड़ी में रिक्त स्थान 15 प्रतिशत से अधिक हो तो उन्हें पूर्व अंकुरित टुकड़ों अथवा उसी प्रजाति के ठूठों से भर देना चाहिए। काले चिकटे के प्रकोप वाले क्षेत्रों में क्लोरोपायरिफास दवा की उचित मात्रा का प्रयोग करने से फसल की कारगर सुरक्षा हो जाती है। इस प्रकार पेड़ी प्रबन्धन के विशिष्ट क्रियाकलापों के क्रियान्वयन से गन्ना उत्पादन एवं चीनी परता में उल्लेखनीय वृद्धि होगी तथा कृषक एवं चीनी मिल लाभान्वित होंगे।