संजय ठाकुर की कलम से।
मृत का सभी धर्मो में सम्मान किया जाता है। मृतक को सम्मान के साथ अंतिम संस्कार किया जाता है। शायद मुंशी प्रेमचन्द्र ने अपने एक कहानी में इसी संवेदना में लिखा भी था कि “जिसको पूरी ज़िन्दगी तन ढकने के लिए एक चिथड़े भी नसीब न हुवा हो, मरने के बाद उसको भी नया कफ़न चाहिए होता है।” मगर शायद इनका ज्ञान उत्तर प्रदेश पुलिस को नहीं है। सोशल मीडिया पर वायरल हुई इस तस्वीर को देख कर तो कुछ ऐसा ही समझ आता है।
आज सोशल मीडिया पर एक तस्वीर वायरल हुई जिसमें एक लाश को पैरों से एक पुलिस अधिकारी कुरेद रहा है। लाश को पैरों से कुरेदने वाले ये वर्दीधारी उत्तर प्रदेश में बस्ती के एएसपी वीरेन्द्र यादव बताये गए है। एक मासूम के शव को पैरों से कुरेदना ये शायद अपना गौरव महसूस कर रहे होंगे। मगर इनको शायद ये आभास कतई नही रहा होगा कि अगर ये किशोर जिन्दा होता तो पैर लगाने पर हो सकता, कडा विरोध करता। किसी गरीब की औलाद की मृत देह के साथ अमानवीय कृत्य करते समय अधिकारी महोदय ने अपने बेटे का ही ख्याल कर लिया होता कि अगर उसके साथ ऐसा कोई करे तो उन्हें कैसा लगता। लेकिन दुर्भाग्य ये रहा कि वो ऐसा सोच ही नहीं पाए। इन्सान का जन्म तो बहुत लोग पा लेते है मगर इन्सानियत हर किसी में नही होती। अगर इंसान का जन्म इंसानियत देता तो शायद दुनिया में कोई लादेन या मुल्ला उमर पैदा ही नहीं होता। हम केवल ईश्वर से प्रार्थना कर सकते है कि ईश्वर मृत बालक की आत्मा को शांति प्रदान करे।
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इसके विरुद्ध एक रिपोर्ट करनी चाहिए ताकि कोई दूसरा यह ना करे