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प्रिंट एशिया को ग्राफिक डिजाइन में किस तरह मिली सफलता आइये जानते हे संथापक सत्येन्द्र गुप्ता की जुबानी

अब्दुल रज़्ज़ाक
सभी के लिए जीवन एक समान हे जब सभी चीजे आपके विरोध में हो रही हे फिर चाहे आप इंजिनियर हो डॉक्टर हो व्यवसायी हो या एक ग्राफिक डिजाइनर हो और आप जीवन के उस मोड़ पर खड़े हो जहाँ सब कुछ गलत हो रहा हे लेकिन सही मायने में विफलता सफलता से ज्यादा मत्त्वपूर्ण होती हे ।हमारे इतिहास में जितने भी बिजनेस सांइ टिक्ट और महापुरुष हुये हे ।वो सफल होने से पहले फेल हुये हे ।जब हम बहुत सारे काम कर रहे होते हे ।तो यह जरुरी नहीं की सब कुछ सही होगा ।लेकिन इस वजह से अगर आप प्रयास करना छोड़ देगे ।तो कभी  सफल नहीं हो पायेगे ।कई बार हम अपने आप को बहुत ही निराश पाते हे।चाहे हमारे अंदर कितनी भी काबलियत हो ।हमारी काबलियत का हमें पता नहीं होता हे ।जिससे हम अपनी जिंदगी बदल सकते हे।आप गोर से देखे तो पायेगे की सभी सफल व्यक्तियो में एक चीज कॉमन होती हे।जो जितना सफल आज के समय होगा।उसने उससे कही ज्यादा अपनी जिंदगी में संघर्षपूर्ण दिनों से गुजारे होंगे ।और यही छोटी छोटी परेशानिया उसको बड़ी बड़ी परेशानियो का सामना करना सिखाती हे ।कुछ ऐसी ही कहानी प्रिंट एशिया के संस्थापक सत्येन्द्र गुप्ता की हे ।

पढाई के लिए जयपुर आए तब कुछ नहीं था पास खाने को
शाहपुरा के पास एक छोटा सा गाँव रामपुरा में सीनियर सेकंडरी कक्षा उत्तीण की।में उसके बाद अपना ग्रेजुशन फाईन आर्ट में करने के लिए बहुत ही उत्साहित था ।इसी कारण हमें गाँव छोड़कर जयपुर जेसे शहर में स्थानांतरित होना पड़ा ।जयपुर में ऐसा समय भी देखना पड़ा ।जब हमारे पास खाना  खाने के लिए भी पर्याप्त पैसे नहीं थे । ।ऐसे वक़्त में मेरे फेमिली बेकग्राउंड ने भी मुँह फेर लिया ।हम भूखे पेट रहते हुये अपनी पढाई आगे बढ़ाई।उस समय सत्येन्द्र गुप्ता की आर्थिक हालात मजबूत नहीं थी  ।हम स्टेडी के बाद  छोटी मोटी मजदूरी करने लगे ।उन  पेसो से खाना का इंतजाम हो जाया करता था ।लोगो ने हमें एकदम नकार दिया था ।सत्येन्द्र गुप्ता ने अपनी यूनिट टीम को साथ लेके कुछ करनी की ठानी
प्रिंट एशिया को ग्राफिक डिजाइन के  क्षेत्र में किस तरह की स्थापित  सत्य गुप्ता ने जीवन में कई उतार चढ़ाव देखे ।अपना बचपन गांव की गलियो में गुजारा ।न कोई प्रतिस्पर्धा ना ही किसी को पीछे छोड़ने की होड़ ।उस समय में अंग्रेजी में बात नहीं कर पाता था ।किन्तु जब मेने फाइन आर्ट में प्रवेश किया तो अंग्रेजी की इतनी आवश्यकता भी नहीं पड़ी ।ग्रेजुएशन पूरा होने के बाद जब मेने दिल्ली शिफ्ट होने का निर्णय लिया ।वह समय मेरे लिए सबसे मुश्किल व् चुनोतियो से भरा था ।दिल्ली में काम करना मेरे लिए एक अलग अनुभव रहा ।ऐसे लगा जेसे अंघेरे कमरे में अचानक रौशनी आ गई ।दिल्ली में काम करने के बाद मेने इंफोसिस के लिए काम किया ।वहा केवल एक साल के लिए काम किया ।उसके तुरंत बाद में हैदराबाद शिफ्ट हो गया ।और अपनी विज्ञापन की एजेंसी की स्थापना की ।अब मेरा लक्ष्य  प्रिंट एशिया को ग्राफिक डिजाइन के क्षेत्र में एक नामी कंपनी की तरह स्थापित करना था ।प्रिंट एशिया पाँच लोगो का स्टाफ हे ।जिसमे बैंक ऑफिस मार्केटिंग और डिजाइन एक्सपर्ट शामिल हे ।
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