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हाल-ए-शिक्षा विभाग मऊ, साहेब अगर ये पढ़ेगा इंडिया तो कैसे बढ़ेगा इंडिया।

मऊ बेसिक् शिक्षा की पोल खोलती संजय ठाकुर की रिपोर्ट।
देश में शिक्षा के प्रति जागरूकता लाने के लिए सरकार ने अपना प्रयास तो बहुत किया है। मगर नतीजा सिफर ही रहा है। भले जितनी भी बहस कर ली जाय मगर प्रदेश में सरकारी विद्यालयों में शिक्षा का स्तर कम कहने वालों को शायद यह रिपोर्ट यह साबित कर देगी कि शिक्षा का स्तर कम नहीं बल्कि निम्नतम या फिर कहे धरातल पर है। सरकारी विद्यालयों में देश का भविष्य सवारने वालो की खुद की जानकारी कितनी है इसका अंदाजा भी लगाना मुश्किल है।
आपने एक कहावत सुनी होगी, “कही धुप तो कहीं छाया” ये कहावत आज उ0प्र0 सरकार में शिक्षा विभाग पर आज पूरी तरह से लागू  है, ऐसी कोई भी जगह  खाली नहीं है शिक्षा से खेल खेलने वालो की। कहतें है जब घर का मुखिया ही निक्कमा निकल जाए तो कैसे चलेगा वो घर। ठीक ऐसा ही वाक्या आजकल शिक्षा विभाग का है, यूँ कहा जाय तो घोर लापरवाही बच्चों के भविष्य से की जा रही है। पिछले पखवारे बिहार में मुख्यमंत्री के सामने एक सभा को संबोधित करते हुए 7 साल के बच्चे ने जो बात कही सबके होश उड़ गए। बच्चे ने भाषण में कहा था की “अगर मैं बड़ा होकर प्रधानमन्त्री बनुगा तो सबसे पहले प्राइवेट स्कूलों को बंद करवाऊंगा, जिससे कोई भी बच्चा चाहे वो इंजिनियर का हो या नेता का, अध्यापक का हो या डॉक्टर का, वकील का हो या किसी सरकारी कर्मचारी का सब के सब सरकारी स्कूलों में ही पढने जाए जिससे सब अमिर या गरीब के बच्चों को सामान्य शिक्षा मिले, मैं देखता हूँ कि अपने भारत में दो प्रकार के स्कूल चलते है एक अमीरो के बच्चों के लिए और एक गरीबो के बच्चे के लिए जिसके कारण गरीब के बच्चों को वो शिक्षा नही मिल पाती जो अमीर के बच्चों को मिलती है ऐसे में गरीब के बच्चे हीन भावना का शिकार होते जा रहे है” इस बच्चे की जज्बात को देख हैरान होना लाज़मी है।
आज स्थिति यह है कि जिसको सामान्य ज्ञान के साथ साथ अंग्रेजी महीनो व दिनों के अंग्रेजी नाम की स्पेलिंग ढंग से न पता हो वह अध्यापक बना सरकारी स्कूल में पढ़ा रहा है। इस प्रकार के समाचार आप समय समय पर पढ़ते और देखते रहे है। अब यक्ष प्रश्न के तौर पर एक सवाल है कि ऐसे लोगों को अध्यापक पद पर नियुक्त किसने किया ये एक सवाल बनता है सोचने का, क्या इसके पीछे सिस्टम का खराब होना वजह है या फिर जान बूझकर ऐसे लोगों को नियुक्त किया जाता है ताकि ये अमीर गरीब का गैप बना रहे। आज आप निजी शिक्षण संस्थानो को देखिये जहा अध्यन कार्य में लगे युवक युवतियों का वेतन हमारे सरकारी शिक्षकों के आधे या फिर उससे भी कम होता है मगर वो शिक्षक शिक्षिकाएं रोज़ स्वयं अध्यन कार्य करके दूसरे दिन बच्चों को पढ़ाते है। मगर सरकारी विद्यालयों में एक पैटर्न फिक्स है जो अब शायद बाबा आदम के ज़माने का हो चुका है। शायद यही कारण है कि जहाँ निजी शिक्षण संस्थान का कक्षा 1 का बच्चा भी सरकारी विद्यालयों के कक्षा 5 के बच्चों से अधिक जानकारी रखता है।
एक मिनी सर्वे के तहत जब हमारी PNN24 न्यूज़ टीम ने मऊ जनपद के फतहपुर मंडाव के एक प्राथमिक विद्यालय का जायज़ा लिया तो वहां पर नियुक्त अध्यापिका को जुलाई महीने की अंग्रेजी नहीं पता थी। उन्होंने जुलाई की अंग्रेजी कुछ इस प्रकार लिखी थी “JULAEY”  इस सन्दर्भ में जब हमने उनसे पूछा मैडम प्रदेश के राज्यपाल का नाम क्या है तो वह राज्यपाल का नाम तक नहीं जानती थी, हमने जानना चाहा कि देश के उपराष्ट्रपति का क्या नाम है तो उनके दिमाग में नाम नहीं चढ़ रहा था, हमारे साथ गए एक अन्य वरिष्ठ पत्रकार अंजनी राय ने प्रश्न कर दिया कि मैडम आप बच्चों को पढ़ाती क्या है ? तो उन्होंने तत्काल अपने महंगे पर्स से एक महंगा सा मोबाइल निकाल कर वीडियो बनाने लगी और कहा कि आप पत्रकारों के पास और कोई काम धाम है कि नहीं बस जब देखिये सवाल पूछते रहते है। इस सवाल के उत्तर में विरिष्ठ पत्रकार अंजनी राय ने कहा कि नहीं मैडम और कोई काम नहीं है हम लोगो के पास बस सवाल पूछना आता था इसीलिए हम सवाल पूछते हुवे पत्रकार बन गए।
हमने जब इस संबंध में क्षेत्रीय सम्बंधित अधिकारी से बात की तो उन्होंने रटा रटाया बयान दिया की मैं इस प्रकरण में जल्द से जल्द कार्यवाही करूँगा और ऐसे अध्यापको के ऊपर विभागीय कार्यवाही की मांग करूँगा। मै बहुत जल्द स्वयं उस स्कूल का दौरा करूँगा और ऐसे अध्यापको पर कठोर कार्यवाही करूँगा, वगैरह वगैरह। हम यह नहीं समझ पाए की आखिर “साहेब” अभी तक क्यों नहीं दौरा किये या फिर दौरा कागज़ पर ही हो गया। अब इसका समाधान ढूंढने के मद्देनजर एक काम हो सकता है कि सभी अध्यापको की प्रतिवर्ष लिखित परीक्षा हो और फेल होने वाले अध्यापको को हटा कर नवजवानों को मौका दिया जाय और उनको अगले वर्ष दुबारा परीक्षा ली जाय। या फिर सभी सरकारी अधिकारियों के बच्चों को सरकारी स्कूलों में शिक्षा लेना अनिवार्य कर दिया जाय ताकि शिक्षा का स्तर इन स्कूलों में सुधार पर आये।
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