इब्ने हसन ज़ैदी।
कानपुर। मुग़ल शासक अकबर के ज़माने से हिन्दू -मुस्लिम एकता और गंगा जमुनी तहजीब की कई मिसाले इतिहास अपने आगोश में समेटे हुए है। अकबर के महल में उनकी रानी जोधाबाई श्री कृष्ण जन्माष्टमी मनाया करती थी, उस ज़माने में भी कट्टरपंथी हुआ करते थे और शायद आज के समय से ज्यादा वे कट्टर थे , पर अकबर बादशाह के चलते उनकी दाल नहीं गल पाती थी । उसी गंगा – जमुनी तहजीब की जिंदा मिसाल हैं कानपुर के डा. एस. अहमद मियां जो पिछले कई सालों से अपने परिवार के साथ मिलजुल कर जन्माष्टमी का त्यौहार बिलकुल उसी तरह मनाते हैं जिस तरह कोई हिन्दू मनाता है। कानपुर के बर्रा निवासी डा.एस. अहमद मियाँ के घर में गूंजती घंटियों की आवाज और उसके साथ “ॐ जय जगदीश हरे ..” आरती का गान यह मंजर देख कर बड़े से बड़े सैययाद की आँखों में भी पानी आ जायेगा जो पानी में शक्कर की तरह घुल चुकी इस संस्क्रति को तोड़ने का सपना संजो लेते हैं।
बाराबंकी की एक मज़ार जहाँ हिन्दू और मुस्लिम एक साथ इबादत करते हैं वहीं से प्रेरणा लेकर डा.एस. अहमद बड़े धूम से और श्रद्धा से श्री कृष्ण जन्माष्टमी मनाते हैं, डा. अहमद का मानना है कि जब देश के महापुरषों का जन्म दिन हिन्दू और मुस्लिम एक साथ मना सकते हैं तो श्री कृष्ण का जन्म दिन मनाने में क्या परहेज़. हालाँकि बहुत से कट्टरपंथियों ने डा. एस अहमद का विरोध भी किया पर उन्हें इस बात से कोई भी परहेज़ नहीं है और पिछले 26 सालों से वे लगातार श्री कृष्ण जन्माष्टमी अपने घर में , अपने पारिवार के साथ मनाते आ रहे हैं और बड़े फक्र से यह भी कहते हैं कि मेरे द्वारा सजाई गई झांकी में श्री कृष्ण के इतने रूप होते हैं जो शायद और किसी के घर में देखने को ना मिलें । यही नहीं डा. एस. अहमद के सभी पडोसी उनकी इस श्रद्धा और ज़ज्बे का एहतराम करते हैं और उनके साथ पूरी श्रद्धा के साथ श्री कृष्ण का जन्मोत्सव मनाते हैं । डा. अहमद भी बड़े मनोयोग से श्री कृष्ण की मूर्तियों को किसी बच्चे की तरह सहेज कर रखते हैं । जिस देश में दो संस्कृतियों में इतने प्यारे और गहरे सम्बन्ध स्थापित हो चुके हों वहां अलगाववादी ताकतों को हारना ही पड़ेगा इसे खुदा का रहमत कहें या फिर भगवान का आशीर्वाद।