इब्ने हसन जैदी.
कानपुर. अभी कुछ दिनों पूर्व ही एक तस्वीर वायरल हुई थी जिसमे दिखाया गया कि किस प्रकार सरकारी सुविधा न मिलने से एक मजबूर पति को अपनी पत्नी की लाश अपने कंधो पर उठा कर 10 किलोमीटर लेकर जाना पड़ा. उस तस्वीर के वायरल होने के बाद सरकारी तंत्र पर जहा उंगलिया उठी वही नेताओ के कुछ चमचो ने उस निर्भीक पत्रकार पर उंगली उठानी शुरू कर दी थी कि उसने अपनी गाडी में क्यों न बैठा लिया उस पीड़ित को. एक कहावत है कि सावन के अंधे को हर तरफ हरियाली दिखाई देती है. उन चाटुकारों को शायद ये भी नहीं पता की बहुत छोटे से वेतन पर अपनी आजीविका चलने वाले पत्रकार के पास कार नहीं होती है. खैर साहेब ये तो दुनिया का दस्तूर है कि हम जैसे होते है वैसी ही दुनिया नज़र आती है. इसको छोड़ कर आज आपको एक ऐसी घटना से अवगत करवा रहे है जिसको सुनकर हर एक इंसानियत की रूह काप जाएगी.
हर बाप का दिल रो पड़ेगा. हर इन्सान के इंसानियत को धक्का पहुचेगा क्योकि दुनिया में सबसे बड़ा बोझ होता है बाप के कंधे पर बेटे का जनाजा वो भी अगर एक बाप अपने बीमार बेटे को कंधे पर उठा कर अस्पताल में इलाज हेतु चक्कर काटता रहे और उसकी वह औलाद उसके कंधे पर ही दम तोड़ दे तो उस एक लम्हे में इंसानियत की रूह से भी आंसू निकल पड़ेगा.
हम आपको बताने जा रहे है वह कुछ जिसको आप खुद जानकर चौंक जाएंगे घटना कुछ इस प्रकार है कि कानपुर के फज़ल गंज इलाके के रहने वाले सुनील के 12 वर्षीय बेटे अंश को बुखार था इल्सज के लिए सुनील ने एम्बुलेंस 108 की मदद लेनी चाही लेकिन समय पर मदद न मिलने पर वह अपने निजी साधन से हैलट अस्पताल गया यहाँ इसको जब स्ट्रेचर नही मिला तो वह हैलट में अपने बेटे अंश को अपने कंधे पर लेकर डाक्टरों के पास भटकता रहा। तभी बुखार से पीड़ित अंश ने अपने पिता सुनील के कंधे पर दम तोड़ दिया।
अब सवाल यह है कि प्रदेश सरकार ने मेडीकल की कितनी सुविधाएं जनता को दी हैं मगर कार्यपालको द्वारा उन सुविधाओ को कैसे जनता तक नहीं पहुचने दिया जा रहा है. सरकार के इस दावे के बाद जनता को व्यवहारिक रूप से क्या मिलता है। कहाँ गई प्रदेश सरकार की 108 एम्बुलेंस और कहाँ गए अस्पताल के स्ट्रेचर। स्ट्रेचर न मिलने पर एक बेटे ने बाप के कंधे पर ही दम तोड़ दिया और दुखी बाप अपने बेटे को कंधे पर लादे इलाज के लिए इधर से उधर भटकता रहा.