इन सबके बीच जैसे ही बंधा टूटा,लगा सुनामी आ गया। चहुंओर चीख-पुकार मच गयी। 2014 व 2015 में बाढ़ की विभिषिका ऐसी न थी,लिहाजा प्रशासनिक दावे सच साबित हुए। लेकिन बंधा चरमरा अवश्य गया था। हर साल की भांति इस साल भी प्रशासन से लगायत तमाम खद्दरधारियों ने जमकर शिगूफेबाजी की। किसी किसी ने तो यहां तक कह डाला था कि बंधे को बचाने के लिए पानी की तरह पैसा प्रदेश सरकार बहा रही है। किसी भी कीमत पर बंधा टूटने नहीं दिया जायेगा। अगस्त 2016 में जैसे-जैसे बाढ़ का प्रकोप बढ़ता गया, वैसे-वैसे खद्दरधारी पर्दे के पीछे होते चले गये और ग्रामीणों के हलक सूखने लगे, क्योंकि उनके सामने इतिहास बतौर उदाहरण खड़ा था। इन सबके बावजूद ग्रामीणों ने पूरे हौंसले व जज्बे के साथ डीएम गोविन्द राजू एनएस व एसपी प्रभाकर चौधरी की कर्त्तव्य परायणता को देखकर बंधे को बचाने के लिए कमर कस लिया। दिन-रात एक कर बंधा को बचाने का अनवरत प्रयास होता रहा। कमोवेश, हर किसी ने इसमें सहयोग किया, लेकिन अंतत: प्रकृति के स्वभाव के साथ खिलवाड़ कर अपनी जेबे मोटी करने वाले तथाकथित और सिंचाई विभाग की मां गंगा ने कलई खोल दी। सूत्रों की माने तो बाढ़ की विभीषिका से पहले ही शासन स्तर से इस बंधे को बचाने के लिए करोड़ों रुपये अवमुक्त किया गया था। सवाल यह है कि आखिर उन करोड़ों रुपयों का हुआ क्या? नि:संदेह यदि उसका सदुपयोग हुआ होता तो 15 गांव आज जलमग्न नहीं होते। यह सवाल आज हर किसी की जुबां पर तैर रहा है।
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