नगर पंचायत की सरकारी जमीन का मालिकाना हक वाले गाटा नंबरो की बेशकीमती जमीनों का पूर्व अपर जिलाधिकारी की शह पर बैनामे रजिस्ट्री कर दिये गये। औरंगाबाद नगर पंचायत के ईओ ने इस संबध में जिला प्रशासन से सरकारी जमीन बचाने की गुहार लगाई थी। एडीएम ने पहले बैनामे पर रोक लगाई और राजस्व विभाग की समर्थित जॉच रिपोर्ट्स के बाबजूद बैनामे रजिस्ट्री करने का आदेश कर दिया। तहसील के अधिकारियो पर भी लाखो रूपये की रकम लेकर सरकारी जमीन को अमलदरामत अथार्त् हस्तान्तरण किये जाने के आरोप है। इस पूरे फर्जीवाड़े की शुरूआत निबंधन विभाग के केन्द्रीय अभिलेखागार से हुई। प्रारूप पर रजिस्टर्ड 1983 के एक बैनामे को वहाँ से निकालकर एक फर्जी बैनामा उसी फाइल में चस्पा कर दिया गया। फर्जी बैनामे में क्रेता-विक्रेता और गाँव की जमीन के गाटा संख्या बदले गये थे। चूँकि असली बैनामे के गाटा संख्या की मालियत कम थी तो फर्जी बैनामे के बढ़े हुए गाटा संख्या के मुताबिक उसकी मालियत भी बढ़ाकर लिखी गयी। लेकिन असली और फर्जी बैनामो का पंजीकरण विवरण एक ही रहा। सार्वजनिक प्रयोग की जमीन माफिया के चंगुल में- फर्जी बैनामे में लिखी हुई जमीन धारा 132 के तहत सार्वजनिक प्रयोग श्शोरश् की है। नियमानुसार इस जमीन का लेंडयूज किसी भी सूरत में बदला नही जा सकता। अभिलेखो के मुताबिक असली बैनामा बही न0-1 जिल्द नंबर-1773 के पृष्ठ-3ध्155-156 में नंबर 1570 पर दिनांक 5 मार्च 1983 को दर्ज किया गया था। इस बैनामे की जमीन बैलोठ गाँव की है। ठीक इसी रजिस्ट्री विवरण पर फर्जी बैनामे में हरचरन लाल विक्रेता और बालचंद क्रेता के रूप में दर्ज किये गये है। इस बैनामे में 5 किता गाटा संख्या की जमीन कस्बा औरंगाबाद की लिखी हुई है। फर्जी बैनामे में नटवरलाल कई त्रुटियां भी कर गया है जो तकनीकी रूप से असली और फर्जी बैनामे के बीच अंतर पैदा करती है। राजस्व विभाग से खतौनियां और रजिस्ट्री विभाग के इंडैक्स गायब- फर्जी बैनामे की अमलदरामद करीब डेढ़ साल पहले की गयी है। जबकि बैलोठ गाँव की जमीन के असली बैनामे की अमलदरामद 1983 में ही हो चुकी है। एक नियम के मुताबिक 12 बर्ष का समय बीत जाने के बाद बैनामे की अमलदरामत के लिए विशेष अनुमति की जरूरत होती है। लेकिन तहसील के अफसरो, कर्मियो ने नियमावली की औपचारिकताऐं जेबे गर्म होने पर भुला दी और आंखे मूँदकर बैनामे का दाखिल खारिज कर दिया। तहसीलदार ने यह भी नही सोचा कि जो पुरानी खतौनियो में सार्वजनिक प्रयोग श्रेणी की जमीन आखिर कैसे ट्रांसफर की जा सकती है। ज्ञातव्य है कि रजिस्ट्री विभाग में असली बैनामे की जानकारी से जुड़े इंडैक्स फाड़ दिये गये है और कुछ गायब कर दिये गये है। इसी तरह राजस्व विभाग की खतौनियां भी जॉच आख्या में गायब बताई जा रही है। भीम और बालचंद है फर्जीवाड़े के मास्टरमाइंड- भीम नाम के इस नटवरलाल की हाल ही में हत्या कर दी गयी है। बालचंद का बैनामे में पता पन्नीनगर इलाके का लिखा है लेकिन असल में वह ततारपुर गाँव में रहता है। उसका बेटा अथवा नजदीकी रिश्तेदार रजिस्ट्री विभाग में दस्तावेज लेखक है। दस्तावेज लेखको की विभाग के रिकॉर्डरूम तक बेहद आसान आमद रहती है इसीलिए ये आशंका जताई जा रही है कि इस फर्जीवाड़े में दस्तावेज लेखक की बड़ी भूमिका रही। रजिस्ट्री विभाग के प्रभारी बाबू और सब-रजिस्ट्रार की सहमति के बगैर भी यह फर्जीवाड़ा संभव नही हो सकता। कैसे खुला खेल- बालचंद ने फर्जी बैनामे के जरिये जमीनें अपने नाम में दर्ज कराई और फिर करीब डेढ़ करोड़ की डील में 10 करोड़ की बेशकीमती सरकारी जमीने दिल्ली के एक कारोबारी को बेच दी गयी। इस कारोबारी की सत्ता और प्रशासनिक अमले में खासी पैठ है। इसी के बलबूते उसने डील होने के बाद जमीनो के बैनामे और फिर दाखिल खारिज करा लिया। इस पूरे खेल में एक पूर्व अपरजिलाधिकारी की भूमिका संदिग्ध है। जानकारी मिली है कि बालचंद को डील का आधा पैसा ही भुगतान किया गया है। जिले में अब तक 100 करोड़ की सरकारी जमीने लील ली गयी- बालचंद और भीम का औरंगाबाद का कारनामा महज इसलिए पकड़ में आया कि वहाँ से जुड़ा असली बैनामा भी हासिल कर लिया गया। सिकन्द्राबाद, खुर्जा, बुलंदशहर में ऐसी बहुत सी सरकारी जमीनें है जिनके दाखिल खारिज रजिस्ट्री विभाग में बैनामे बदलकर किये गये है। प्रारूप पर दर्ज बैनामा नटवरलाल के लिए बेहद मुफीद साबित हो रहा है जो महज दो-चार पन्नो पर लिखा जाता है। जिलाधिकारी ने शुरू कराई जॉच- डीएम आञ्जनेय कुमार सिंह ने इस मामले में गंभीरता से जॉच शुरू कराई है। जमीनो पर कब्जा करने वाले कारोबारी ने अफसरो पर दबाब बनाने के लिए पुराने अफसरो और सत्ता से जुड़े कई नेताओ से फोन भी कराये है। डीएम ने बताया कि पूरी निष्पक्षता के साथ इस मामले की जॉच की जा रही है। रजिस्ट्री विभाग और तहसील से जुड़़े अफसरो की करतूतो के प्रमाण इकठ्ठा किये जा रहे है। कार्रवाई ऐसी होगी जो फर्जीवाड़ा करने वालो और भूमाफियो के लिए नजीर बन सके।
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