तारिक़ आज़मी के कलम से
वाराणसी.बाबा जय गुरदेव का समागम समाप्त हुआ कल की दुर्घटना के बाद दर्द से करहा रहे घायल अपना इलाज करवाते को खो कर गम में चूर हो कर उनका अंतिम संस्कार कर रहे है .इन सब के बीच वाराणसी शहर के कज्जाक पुरा स्थित रामबाग का एक ऐसा भी घर है जिसका बाबा जय गुरदेव अथवा इस कार्यक्रम से कोई लेना देना भी नहीं था मगर उस घटना में उस परिवार में आज बेटी कि शादी के तिलक की शहनाई की जगह मौत के मातम में तब्दील कर दिया
शहर के कज्जाकपुरा के रामबाग स्थित अशोक कुमार कि पड़ाव क्षेत्र में सीट मेकिंग की दुकान है. घर में 5 बेटे और २ बेटी का भरा पूरा परिवार है, सीट मेकिंग से घर का पूरा खर्च चलता है. अशोक ने बेटियों को नाजो से पाला और पढाया लिखाया. बेटी का उचित रिश्ता तय किया और कल बेटी के तिलक की तैयारी कर रहा था, कल सुबह घर से पैसे लेकर दुकान गए अशोक ने मन में बेटी कि शादी के सभी सपने सजोये थे, घर से लेकर गए पैसे और दुकान से आने वाले पैसो से वापसी में कल के समारोह के लिए सामान खरीदने की सोच कर अशोक दुकान पहुच गए. घर के अन्य सदस्य शादी की तैयारी में व्यस्त थे. दोपहर में अशोक अपनी दुकान का काम जल्दी निपटाकर घर निकलना चाह रहा था. दोपहर में काम ख़त्म करके अशोक अपने घर को चला कि जल्दी जाकर घर पर सामान ला दू. इसी बीच वहा मची भगदड़ के चपेट में अशोक भी आ गया. विधाता को कुछ और ही मंज़ूर था. अशोक इस भगदड़ की चपेट में आकर इस दुनिया को अलविदा कह कर मुर्दा घर में एक अज्ञात लाश की तरह पड़ा था.
इधर जब शाम ढल गई और अशोक घर वापस नहीं आये तो पारिवारिक जनों को चिंता हुई और वो अशोक को फोन करने लगे मगर फोन स्वीच आफ था. फिर बड़ा बेटा घर से दूकान जाकर पता किया. वहा से जब पता चला की अशोक भगदड़ के कुछ देर पहले ही घर के लिए निकल चुके है. अब किसी अनिष्ट की शंका में परिजन शहर का कोना कोना छानने लगे. पहले रिश्तेदारों नातेदारो फिर दोस्तों फिर आस पड़ोस के परिचितों से पता किया मगर अशोक का कुछ पता न चला. अनिष्ट की शंका और बलवती होती गई, घर में ख़ुशी का माहोल सन्नाटे में बदल चूका था. घर के सभी लोग बेचैन थे और भगवान से अशोक की कुशलता की कामना कर रहे थे, बड़े बेटे ने पुरे शहर में हर जगह दुर्घटना में घायलों में जाकर अशोक को तलाश किया. मगर अशोक का कोई पता नहीं चला.
आखिर में दिल मजबूत कर अशोक का बेटा मृतकों में अपने पिता को तलाशने पंहुचा. एक बेटे के दिल की धड़कन हर उस एक लाश के पास बढ़ जाती होगी कि कही ये मेरे बाप की लाश तो नहीं. लगभग 15 लाशो की चादर उठा कर दिखाया गया. अंततः एक वो बेड आ ही गई जिसकी लाश पर चादर उठाने के बाद उसकी चीख निकल पड़ी. बाप का मुर्दा जिस्म एक बेटे के सामने पड़ा था.घर पर खबर दी गई. शादी के तिलक की बजने वाली शहनाई अचानक रोने के आवाज़ में बदल गई. घर तो घर अडोस पड़ोस के आंखे भी अश्क गिरा रही थी, 55 वर्ष का स्वस्थ अशोक कुमार अब इस दुनिया में नहीं रहा.
शायद मौत भी एक बार उस बाप के प्राण पखेरू उड़ाने में तड़प गई होगी जिसकी जवान बेटी का एक दिन बाद तिलक था. मगर क्या कर सकता है इन्सान जब मौत अपनी बाहे फैलाती है तो उसके आगोश में जाना ही पड़ता है. अशोक का घर मातम में डूब चूका था. आज अशोक का अंतिम संस्कार हुआ. बड़े बेटे ने मुखाग्नि दी. इन सबके बीच अशोक की मौत पर एक सवाल ज़रूर उठा शायद सभी के मन में उठा होगा कि जो घटना कल हुई जिस आयोजन से अशोक का कोई लेना देना भी नहीं था उसकी बलि अशोक चढ़ गया. आखिर कौन ज़िम्मेदार है इस दुर्घटना का.