आफताब फारुकी
लखनऊ / इलाहाबाद। एक तरफ जहा सपा पारिवारिक कलह से नहीं उबर पा रही है. गली नुक्कड़ो तक सपा का अंतर्कलह उजागर होता जा रहा है वही दूसरी तरफ आज सरकार को इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ ने भी तगड़ा झटका लगा दिया। अदालत ने डेंगू से हो रही मौतों के मद्देनजर सरकारी प्रयासों को नाकाफी मानते हुए सरकार से पूछा कि क्यों न प्रदेश में राष्ट्रपति शासन लगाने की सिफारिश कर दी जाए। मुख्य सचिव राहुल भटनागर को गुरुवार को तलब करते हुए अदालत ने कहा कि नौकरशाही सरकार के काबू में नहीं है। डेंगू नियंत्रण में प्रशासनिक विफलता की सुनवाई करते हुए न्यायमूर्ति एपी शाही और न्यायमूर्ति डीके उपाध्याय की खंडपीठ ने कहा कि राज्य सरकार का तंत्र स्थिति को संभालने में पूरी तरह विफल रहा है।
जनता डेंगू से मर रही है और नौकरशाह कागज़ी घोड़े दौड़ा रहे है
उच्च न्यायालय ने सरकार को कड़ी फटकार लगाते हुवे कहा है कि सरकार नागरिकों को स्वास्थ्य व सफाई उपलब्ध कराने के अपने दायित्वों को पूरा करने में विफल रही है। न्यायालय ने मुख्य सचिव को स्पष्ट करने को कहा है कि बताये इस स्थिति को तत्काल कैसे ठीक कर सकते हैं अन्यथा कानून व शासन के समुचित प्रशासन के लिए न्यायालय संविधान के संबंधित प्रावधानों को लागू कर सकता है।
उच्च न्यायालय ने कहा – राज्य में आपात स्थिति जैसे हालात
डेंगू से हो रही मौतों से नाराज हाईकोर्ट ने कहा कि यह दशा स्पष्ट इशारा करती है कि राज्य में आपात स्थिति जैसे हालात है और राज्य सरकार की मशीनरी पूरी तरह विफल है। न्यायालय ने कहा कि हमारी असंतुष्टि का कारण राज्य सरकार की ओर से दाखिल किए गए हलफनामे और रिपोर्ट हैं। हमें अब तक एक भी सकारात्मक कार्य नहीं दिखा है।
मर रहा है आम आदमी
उच्च न्यायालय ने फटकार लगाते हुवे कहा कि पिछले कई सालों से राज्य के स्वास्थ्य प्रशासन की विफलता का मुद्दा जनहित याचिकाओं में उठाया जा रहा है। इतनी बार आदेश दिए गए व अधिकारियों को तलब किया गया कि वस्तुत: यह न्यायालय लोक प्रशासन अदालत बन गया। अधिकारी मात्र कागजी खानापूरी कर अपने कर्तव्यों की इतिश्री करने में मशगूल हैं। आम आदमी मर रहा है लेकिन अधिकारियों के कान पर जूं नही रेंग रही है। न्यायालय ने कहा कि यह सब कहने को हम अब बाध्य हैं।
हलफनामा है केवल जुबानी जमा खर्च
न्यायालय ने सरकार की ओर से पेश हलफनामों को पढ़कर कहा कि हलफनामों से ही स्पष्ट है कि मेडिकल सुविधाओं में कितनी कमियां हैं। आखिर बार-बार आदेश जारी करने के बावजूद नौकरशाह कोई ठोस कार्रवाई क्यों नही कर रहे हैं। सरकार जुबानी जमा खर्च में मस्त है। बार-बार सफाई दी जा रही है लेकिन अब तक किसी भी सुनवाई पर सरकार की ओर से कोई ठोस कार्ययोजना पेश नहीं की गई।
यह लापरवाही आपराधिक है
सरकारी नाकामी से हुई मौतों पर न्यायालय ने अफसोस जाहिर करते हुए कहा कि यह तो आपराधिक लापरवाही (क्रिमिनल नेग्लिजेंस) है। अदालत ने नाकाम अफसरों पर कोई कारवाई न करने पर भी सरकार को लताड़ लगाई। न्यायालय ने पूछा कि आखिर सरकार नाकाम अफसरों पर कार्रवाई से हिचक क्यों रही है।
अगर डाक्टर पर्याप्त नहीं है तो फिर हटा दो पीएससी के चैरमैन को
लगभग दो घंटे चली सुनवाई के दौरान न्यायालय की उस समय त्यौरियां चढ़ गयीं जब अपर महाधिवक्ता बुलबुल गोडियाल ने डॉक्टरों व संसाधनों की कमी की दुहाई दी। न्यायालय ने कहा कि इस तर्क से सरकार लोगों की जान की हिफाजत करने की अपनी जिम्मेदारी से बच नहीं सकती। यदि डॉक्टर पर्याप्त मात्रा में नियुक्त नहीं किए जा रहे तो पब्लिक सर्विस कमीशन (पीएससी) के चेयरमैन को क्यों नहीं हटा देते?