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इस बार नवरात्र होंगे १० दिन के – जाने कैसे करे इस नवरात्र में पूजा

माँ के नव रात्र शुरू हो गए है इस बार ये 01 अक्टूबर से प्रारम्भ होकर 10 अक्टूबर तक रहेंगे। इस बार प्रतिपदा तिथि दो दिन होने के कारण नवरात्र नौ दिन की बजाय 10 दिन रहेंगे। नवरात्र के नौ दिन देवी दुर्गा के विभिन्न रूपों की पूजा करने का विधान है। यह समय सभी साधको के लिए बहुत ही ज्यादा महत्वपूर्ण होता है क्योंकि इस काल में की गयी उपासना का विशेष फल प्राप्त होता है।

नवरात्र के नौ दिन प्रातः और संध्या के समय मॉ दुर्गा का पूजन व आरती करनी चाहिए। जो जातक पूरे नौ दिन व्रत नहीं रह सकते है, वह अष्टमी या नवमी के दिन उपवास रखकर हवन व कन्या पूजन कर मॉ भगवती को प्रसन्न करना चाहिए। जो लोग अभी तक किसी कारण से कोई अनुष्ठान अथवा पुरश्चरण नहीं कर सके हैं उन्हें कल से वह अवश्य शरू कर देना चाहिए।

यह जरुरी नहीं है कि नवरात्र में केवल माँ दुर्गा की ही उपासना की जाती है बल्कि इस समय आप किसी भी इष्ट देवता के मंत्रो का अनुष्ठान कर सकते हैं। नवरात्र के पहले दिन अपने गुरु देव से मंत्र दीक्षा लेकर, उसका अनुष्ठान करना चाहिए। कुछ साधको के मन में एक प्रश्न रहता है कि क्या नवरात्र में शरू किया गया अनुष्ठान नवरात्र में ही पूर्ण करना जरुरी है , नहीं ऐसा बिल्कुल नहीं है। ये अनुष्ठान आप २१ अथवा ४० दिन में भी पूर्ण कर सकते हैं लेकिन यदि हो सके तो अंतिम नवरात्र तक पूर्ण कर लेना चाहिए। यदि किसी कारण से अनुष्ठान करना सम्भव नहीं है तो नवरात्र में जितना अधिक जप हो सके उतना ही अच्छा है।
—क्या है शुभ मुहूर्त —

पहला दिन-01 अक्टूबर, 2016 इस दिन घटस्थापना शुभ मुहूर्त सुबह 06 बजकर 20 मिनट से लेकर 07 बजकर 30 मिनट तक का है। प्रथम नवरात्र को देवी शैलपुत्री रूप का पूजन किया जाता है।
-दूसरा दिन02 अक्टूबर 2016 इस बावत पंडित आयुष मिश्र ने बताया की इस वर्ष प्रतिपदा तिथि दो दिन होने की वजह से आज भी देवी शैलपुत्री की पूजा की जाएगी।

-तीसरा दिन-03 अक्टूबर 2016 नवरात्र की द्वितीया तिथि को देवी ब्रह्मचारिणी की पूजा की जाती है।
-चौथा दिन-04 अक्टूबर 2016 तृतीया तिथि को देवी दुर्गा के चन्द्रघंटा रूप की आराधना की जाती है

-पांचवा दिन05 अक्टूबर 2016 नवरात्र पर्व की चतुर्थी तिथि को मां भगवती के देवी कूष्मांडा स्वरूप की उपासना की जाती है।

-छठा दिन-06 अक्टूबर 2016 पंचमी तिथि को भगवान कार्तिकेय की माता स्कंदमाता की पूजा की जाती है।
-सातवॉ दिन07 अक्टूबर 2016 नारदपुराण के अनुसार आश्विन शुक्ल षष्ठी को मां कात्यायनी की पूजा करनी चाहिए।
-आठवॉ दिन08 अक्टूबर 2016 नवरात्र पर्व की सप्तमी तिथि को मां कालरात्रि की पूजा का विधान है। अष्टमी तिथि को मां महागौरी की पूजा की जाती है। इस दिन कई लोग कन्या पूजन भी करते हैं।
-दशवॉ दिन10 अक्टूबर 2016 नवरात्र पर्व की नवमी तिथि को देवी सिद्धदात्री स्वरूप का पूजन किया जाता है। सिद्धिदात्री की पूजा से नवरात्र में नवदुर्गा पूजा का अनुष्ठान पूर्ण हो जाता है।

11 अक्टूबर 2016 बंगाल, कोलकाता आदि जगहों पर जहां काली पूजा या दुर्गा पूजा की जाती है वहां दसवें दिन दुर्गा जी की मूर्ति का विसर्जन किया जाता है।

—-कैसे लगाएं -माँ दुर्गा की चौकी —
नवरात्री के प्रथम दिन एक लकड़ी की चौकी की स्थापना करनी चाहिए। इसको गंगाजल से पवित्र करके इसके ऊपर सुन्दर लाल वस्त्र बिछाना चाहिए। इसको कलश के दायीं और रखना चाहिए। उसके बाद माँ भगवती की धातु की मूर्ति अथवा नवदुर्गा का फ्रेम किया हुआ फोटो स्थापित करना चाहिए। मूर्ति के अभाव में नवार्णमन्त्र युक्त यन्त्र को स्थापित करें। माँ दुर्गा को लाल चुनरी उड़ानी चाहिए। माँ दुर्गा से प्रार्थना करें कि माँ दुर्गा आप नौ दिन के लिए इस चौकी में विराजिये। उसके बाद सबसे पहले माँ को दीपक दिखाइए। उसके बाद धूप, फूलमाला, इत्र समर्पित करें। फल, मिठाई अर्पित करें।

अपने इष्ट देव का भी करे नवरात्र में जप —

इस बावत पंडित हर्ष मिश्र (नक्षत्र ज्योतिषाचार्य ) ने बताया की नवरात्र में अपने इष्ट देव  का भी सहस्रनाम से अर्चन जपना / करना चाहिए।सहस्त्रनाम में देवी/देवता के एक हजार नाम होते हैं। इसमें उनके गुण व कार्य के अनुसार नाम दिए गए हैं। सर्व कल्याण व कामना पूर्ति हेतु इन नामों से अर्चन करने का प्रयोग अत्यधिक प्रभावशाली है। जिसे सहस्त्रार्चन के नाम से जाना जाता है।  सहस्र नामावली के एक-एक नाम का उच्चारण करके देवी की प्रतिमा पर, उनके चित्र पर, उनके यंत्र पर या देवी का आह्वान किसी सुपारी पर करके प्रत्येक नाम के उच्चारण के पश्चात नमः बोलकर देवी की प्रिय वस्तु चढ़ाना चाहिए। जिस वस्तु से अर्चन करना हो वह शुद्ध, पवित्र, दोष रहित व एक हजार से अधिक संख्या में होनी चाहिए।अर्चन में बिल्वपत्र, हल्दी, केसर या कुंकुम से रंग चावल, इलायची, लौंग, काजू, पिस्ता, बादाम, गुलाब के फूल की पंखुड़ी, मोगरे का फूल, चारौली, किसमिस, सिक्का आदि का प्रयोग शुभ व देवी को प्रिय है। यदि अर्चन एक से अधिक व्यक्ति एक साथ करें तो नाम का उच्चारण एक व्यक्ति को तथा अन्य व्यक्तियों को नमः का उच्चारण अवश्य करना चाहिए।सहस्त्रनाम के पाठ करने का फल भी महत्वपूर्ण है। अर्चन की सामग्री प्रत्येक नाम के पश्चात, प्रत्येक व्यक्ति को अर्पित करनी चाहिए। अर्चन के पूर्व पुष्प, धूप, दीपक व नैवेद्य देवी/देवता को अर्पित करना चाहिए। दीपक पूरी अर्चन प्रक्रिया तक प्रज्वलित रहना चाहिए।
पूजन सामग्री-

1-जौ बोने के लिए मिट्टी का पात्र। 2-जौ बोने के लिए शुद्ध साफ की हुई मिटटी। 3-पात्र में बोने के लिए जौ। 4-कलश में भरने के लिए शुद्ध जल, गंगाजल 5-मोली। 6-इत्र। 7-साबुत सुपारी। 8-दूर्वा। 9-कलश में रखने के लिए कुछ सिक्के। 10-पंचरत्न। 11-अशोक या आम के 5 पत्ते। 12-कलश ढकने के लिए मिटट् का दीया। 13-ढक्कन में रखने के लिए बिना टूटे चावल। 14-पानी वाला नारियल। 15-नारियल पर लपेटने के लिए लाल कपडा।

—कैसे करे कलश स्थापना —

धर्मशास्त्रों के अनुसार कलश को सुख-समृद्धि, वैभव और मंगल कामनाओं का प्रतीक माना गया है। कलश के मुख में विष्णुजी का निवास, कंठ में रुद्र तथा मूल में ब्रह्मा स्थित हैं और कलश के मध्य में दैवीय मातृशक्तियां निवास करती हैं। कलश के चारों ओर गीली मिट्टी लगाकर उसमें जौ बोना चाहिए। जौ चारों तरफ बिछाएं ताकि जौ कलश के नीचे न दबे। इसके ऊपर फिर मिट्टी की एक परत बिछाएं। अब कलश के कंठ पर मोली बाँध दें तत्पश्चात कलश में शुद्ध जल, गंगाजल कंठ तक भर दें। कलश में साबुत सुपारी, दूर्वा, फूल डालें। कलश में थोडा सा इत्र दाल दें। कलश में पंचरत्न डालें। कलश में कुछ सिक्के डाल दें। कलश में अशोक या आम के पांच पत्ते रख दें। अब कलश का मुख मिट्टी/स्टील की कटोरी से बंद कर दें और उस कटोरी में चावल भर दें।

कलश पर नारियल का मुख साधक किस तरफ रक्खे ?

नारियल पर लाल कपडा लपेट कर मोली लपेट दें। अब नारियल को कलश पर रख दें। नारियल का मुख उस सिरे पर होता है, जिस तरफ से वह पेड़ की टहनी से जुड़ा होता है। इस बावत पंडित आयुष मिश्र ने बताया की शास्त्रों में उल्लेख मिलता है कि नारियल का मुख नीचे की तरफ रखने से शत्रु में वृद्धि होती है। नारियल का मुख ऊपर की तरफ रखने से रोग बढ़ते हैं, जबकि पूर्व की तरफ नारियल का मुख रखने से धन का विनाश होता है। इसलिए नारियल की स्थापना सदैव इस प्रकार करनी चाहिए कि उसका मुख साधक की तरफ रहे।
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