पूर्व में भी सामने आ चुका है ग्राहको से र्दुव्यवहार का मामला
अनंत कुशवाहा.
अम्बेडकरनगर. जहांगीरगंज थाना क्षेत्र के नरियाव में स्थित मुरली फिलिंग स्टेशन पर पेट्रोल पंप कर्मियों की मनमानी व पंप संचालक का दंबग रवैया कोई नई बात नहीं है। मंगलवार को पत्रकार मनोज यादव व युवा सपा नेता जितेंद्र सिंह से पंप कर्मियों द्वारा किया गया र्दुव्यवहार प्रकरण भी कोई नया नहीं है। पंप शुरू होने के समय से ही संचालक व कर्मियों का उपभोक्ताओं के प्रति व्यवहार काफी रूखा रहता है।
मिलावटखोरी व घटतौली के लिए कुख्यात मुरली फिलिंग स्टेशन नरियाव के संचालक एवं पंप कर्मियों ने बसपा शासनकाल के दौरान वर्ष 2011 में जहांगीरगंज थाना क्षेत्र के ही सुतहरपारा गांव निवासी छात्र हरीश चौधरी की पेट्रोल पंप पर बेरहमी से पिटाई कर मरणासन्न कर दिया था। उस प्रकरण में पेट्रोल पंप संचालक एवं कर्मियों के विरुद्ध विभिन्न धाराओं में आपराधिक मामला भी पंजीकृत हुआ था। लेकिन बहुजन समाज पार्टी के सत्ता में होने के दबाव में पीड़ित हरीश चौधरी व उसके परिजनों के विरुद्ध गंभीर आपराधिक धाराओं में मामला दर्ज कर लिया गया था पुलिस प्रशासन पंप संचालक के ही पक्ष में न्याय अन्याय की अनदेखी कर खड़ा नजर आया था सभी से मनबड़ पंप संचालक एवं उसके परिजन तथा पेट्रोल पंप कर्मी उपभोक्ताओं से दुर्व्यवहार रहते हैं। बीते दिनों देवरियाबाजार निवासी पंकज तिवारी जब अपनी बाईक में तेल डलवानें पेट्रोल पंप पहुँचे थे तो उन्हें कर्मियों के बुरे व्यवहार का शिकार होना पड़ा था। मंगलवार को मुरली फिलिंग स्टेशन पर पेट्रोल डलवाने गए थाना क्षेत्र के ही सोल्हवा गांव निवासी पत्रकार मनोज यादव तथा उमरी जलाल गांव निवासी सपा नेता जितेंद्र सिंह से पंप कर्मियों ने ना सिर्फ 500 की नोट लेने से इनकार कर दिया बल्कि पंप संचालक के भाई गौरीश कुमार व अन्य पंप कर्मियों ने दोनों के साथ बदसलूकी करते हुए जान से मार डालने का प्रयास किया व धमकी दी तथा दोनों को भी बंधक बनाए रखा। गनीमत रही की थोड़ी देर बाद पुलिस मौके पर पहुंच गई तब जाकर पत्रकार व सपा नेता की जान बच पाई। बाद में पीड़ित सपा नेता की तहरीर पर पुलिस ने पेट्रोल पंप कर्मियों व संचालक के भाई के विरुद्ध मुकदमा दर्ज कर लिया फिर कार्यवाही के बाबत चुप्पी साध ली। पंप संचालक के प्रभाव में पुलिस ने पेस बंदी में बुधवार को पंप संचालक की तरफ से भी तहरीर ले ली ताकि पीड़ितों पर दबाव बनाया जा सके। दलित अत्याचार निवारण अधिनियम को लोगों के विरुद्ध फर्जी तौर पर फंसाने के लिए हथियार के तौर पर इस्तेमाल किया जा रहा है अधिकांश मामलों में देखा गया है कि पहले दलितों की ओर से ही लोगों से मारपीट व गाली गलौज की जाती है और फिर अनावश्यक रुप से फंसाने के लिए तहरीर दी जाती है ताकि दलित अत्याचार निवारण अधिनियम के भय से पीड़ित पक्ष सुलह समझौता करने को विवश हो जाए