अन्जनी राय
बलिया. 500 और 1000 की नोट बंद हो जाने के बाद पूरा देश बैंकों और एटीएम पर उमड़ पड़ा है पर रुपयों की किल्लत ने आम आदमी की परेशानी बढ़ा दी है। सबसे ज्यादा दिक्कत उनलोंगो को हो रही है जिनके परिजन का देहांत हुआ है और उन्हें शव को जलाने के लिए लकड़ी देने वाले 500 और 1000 की नोट लेने को तैयार नहीं है।
ग़मों का पहाड़ क्या होता है यह उन लोंगों से पूछिये जिनके घर में किसी की मृत्यू हुई है और रूपये रहते हुए भी अंतेष्टी के लिए लोग लकड़ियां नहीं खरीद पा रहे हों। बतो दें कि बलिया का महावीर घाट जहां से लगभग एक कीलोमीटर दूर बहने वाली गंगा नदी पर लोग अपने मृतक परिजन की अंतेष्टी के लिए धूप की लकड़ियां खरीदते हैं। मृतकों के परिजनों का आरोप है की धूप की लकड़िया बेचने वाले 500 और 1000 की नोट नहीं ले रहे हैं। ऐसे में लोग करें तो क्या, किसी की मृत्यु के बाद वो एटीम और बैंक पर रुपए निकालने के लिए घण्टों लाइन में खड़े रहें या फिर शव का जल्द से जल्द अंतिम संस्कार करें। नोटों की कमी से मचे हाहाकार में आम लोंगों का दर्द भी जायज है ।
बताते चलें कि पर बलिया के गंगा नदी के किनारे 40 से 50 शव प्रतिदिन अंत्येष्टी के लिए आते हैं। हालांकी सरकार ने सरकारी सवदाह गृहों पर पुराने नोटों को चलाने की अनुमति तो दी है पर बलिया जैसे छोटे जनपदों में ऐसा कोई सरकारी शवदाह स्थल नहीं है। ऐसे में घाटों पर कर्मकांड कराने वाले पंडा भी मानते है की रुपयों की कमी से लोंगों को काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है।