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मोरबतिया – अब श्रीमती जी के बचत के पैसा का का होई गुरु ?

(तारिक आज़मी की कलम से)

(समस्त घटनाये व पात्र काल्पनिक है,किसी के जीवन से मिलना इसका एक संयोग मात्र ही है)

हमारे प्रदेश की एक कहावत हमारे काका कहते रहे है अक्सर कि बतिया है कर्तुतिया नाही, ता भैया हम भी बस बतिया करेगे अब का करे बतिया करने से समस्याएं भी हल हो जाती है मगर हम कैसे हल कर देंगे समस्या जब विकराल हो। तो भैया हम तो पहले ही कह देते है कि हम साफ़ साफ़ कहते है और खाली बतियाते है, अब किसी को अगर इ बतिया से बुरा लगे तो न पढ़े भाई हम कोई जोर जबरदस्ती तो कर नहीं रहे है कि पढ़बे करो साहेब। तो साहेब बतिया शुरू करते है और बतिया की खटिया बिछा लेते है

ता भैया हम ठहरली बाबा विश्वनाथ का नगरी काशी का मूल निवासी. बाबा का नगरी अइसन जइसन नगीना, रहे लोग आवेलन दो चार दिन रह जालन महिन्ना. ता हमारे नगरिया के सांसद जी जब प्रधानमंत्री भईलन ता हमके अईसन अनुभूति भयल रहल जैसे हमही प्रधानमंत्री बन गयल हई. बस फिर का कऊनो का हिम्मत नाही गुरु के कुछो बोल दे प्रधानमंत्री के विरोध में. अरे दाल ससुर लोग कहेलन दू सो रुपईया किलो हो गयल ता का भयल खावत हउवन न. चला है कुल ता राज काज बा लोग सबके अइसने कहेलन. मगर देखा गुरु का गजब का काम भयल. कुल बड़का बड़का लोगन पईसवा दबाये रहिलन मगर गुरु देखा मोदी जी के. कुल बड़का नोटे बंद कर देहलन. ला रजा रखा ठेठ में दबा के. अब ता निकलबा नाही ता भयल गुरु कुल रद्दी. मजा आ गयल गुरु सुन के. बस का हमहू राती 2 बजे तक अड़ी लगा के खुबे मजा लेहली विरोधियन का.
राती के आवे के बाद सूत गईली गुरु. सुबहिया बड़ा सुहाना रहल. मेहरारू खुदे जगा के चाय ला के देहलिन चहिया पिए के बाद गुरु नहां निपट के तैयार भइली आज कौनो काम धाम न रहल बस गुरु विरोधियन के तपावे के रहल तब्बे श्रीमती जी बड़का मुहवा लटका के कहलीं अरे गुडिया के बाऊ तनी तरकारी (सब्जी) ला देई. इ सुने के बाद एकदम्मे माथा ख़राब हो गयल पुछली का हो गुडिया का माई कल्ले ता देहले रहली 5 हजार उ का एक्के दिना में ख़तम हो गयल. ता श्रीमती जी बड़ा सकुचा के कहलिन की ए जी तनी सुना उ कुल ता रखल बा मगर कुल ता हजारा वाला नोटवा बा अब कऊनो लेबे न करत हउवन ता का करी बतावा. एक गो बतिया अऊरो कहे के रहल की जो आप खर्चा बदे देवत रहिला उमना से हम तनी तनी करी के बचावत रहली. कुल पन्सौवा गाँधी जी बाला. सोचले रहली की गुडिया के बिहा बदे काम आई. कुल 65 हजार भयल रहल. अब ओकरा का का होई. हई मोदी जी बदलिहन की नाही.
इ सुने के बाद हमके गुरु अपना श्रीमती जी पर गर्व होवे लगल मगर तनि सा अफ्सोसो भयल की बतावा केतना मेहनत से बचत करे के बादो इ स्थिति भयल. का बताई श्रीमती जी भी तनिक भावुक हो गई गुरु. तो हम उनका समझाया कि काहे चिंता करत हु हम हई न, देखा भगेलुआ का लईका बेंक में नोकरी करत हओ उकरा से कह देब कुल बदला जाई. अब रहल दुई चार दिना का खर्चा का बात ता अभहीं के लिए इ देखा हमरे पास दू सो बीस रुपईया हओ ला दू सो में तरकारी नून तेल लकड़ी मंगवा ला बकिया अभहीं निकलत है. संझा के घुप्पा पाडे से ले लेब दू हजार उनके जब बदल जाई ता दू चार दिन में दे देब. तू चिन्ता मत करा
गुरु सच बताता हु कि निकल ता गईली घरे से श्रीमती जी के संतावना देके मगर गुरु धड़कन ता हमरो बढ़ गयल. इहे टेंशन में सीधा कल्लू के चाय का चुस्की लेवे का मन कर गयल. कल्लू के चाय बोल के हमार नजर पप्पू तिवारी और उनका साथ बैठे रहमत मिया पर पद गयी. अब देखा सब बड़ा चिंता मगन है. ता हम खुदे छेड़ देहली का भाई लोगन बड़ा शांत हऊआ का हुआ. चाय पीबा का. अब आज भी काशी में गुरु 5 रुपया में मस्त चाय मिलेला. दिमाग में रहल गुरु पूरा हिसाब फिट के 20 रुपया में चार चाय हो जायेगी. बस कल्लू के चार चाय बढ़ावे बदे कह देहली. और बतकुच्चन के लिए बैठ गए हम भी. पहले चाय की पहली चुस्की में पूछ लिया का गुरु कोई गंभीर बार है क्या बड़ा चिंतित हो. तब पप्पू गुरु बताये तो चिंता तो हमको भी हुई. पप्पू गुरु बताये की कल लक्षमण शर्मा के बिटिया का शादी है. कुल तय्यारी हो चुकी है. अब बस फुटकरिया काम का सामान बचा है. लगभग 25 हजार का. सब सामानों नगदी नगदा वाला है और लक्षमण के पल्ले सब पैसा पञ्चसऊआ और हजारा है. हम लोगो के पास भी सब मिला कर तीने हज़ार निकलत बा. उकरा के देके फूल माला वाले के ईहा भेजली हई.अब चिंता इ बा की बकिया सामान कहा से आई.
बतिया सुन के हम कह दिया बड़ा घोर चिंता का विषय है गुरु. एकदम्मे विषम संकट की बेला है. अभी हम बोलते रहे कि सामने से लक्ष्मण शर्मा का आगमन हो गया. सब बताये की गुरु फुल का ता जुगाड़ हो गया है. अब बचा है बर्तन और लाली पाउडर साथ में कुछ कपड़ा. अभी लक्ष्मण गुरु कहले रहलन की हमार टप्प से खोपडिया काम कर गई. हम कहा अरे गुरु का चिंता करत हो देखा लाली पाऊडर का दुकान शाहिद मिया का है अरे उहे शाहिद मिया जो बड़ी बाजार में रहते है अकसरे ता चाय पान लड़ाते है साथे में, और कपड़ा का दुकान है सलीम मिया का. उहे सलीम कोईला बाजार वाले हो. और रहल साडी का बात ता ओके बदे आफताब मिया का गद्दी मदनपुरा में हईये है. बस का चिंता. अरे इ लोगन सब मित्र मंडली है ता का तनी तुना पञ्च सौवा हजारा न लेंगे. चला गुरु दालमंडी देखल जाय कैसे न होला.
इतना सुनते ही लक्ष्मण बाबु के आँख चमके लगा. तुरंते तावे ताव में हम लोग भी पहुच गए दालमंडी. सबसे पहले सलीम मिया की दूकान पर. एकदम्मे खाली बैठे सलीम मिया ने हम लोगो को देख कर प्रसन्नता जताई. और चाय पान की व्यवस्था करवाई. अब स्वागत में गुरु चाय के बाद पान न मिला तो ऐसा ही लगता है कि बिहाये के बाद बिदाई नहीं मिली गुरु. और पान ऊ भी दालमंडी के बाबु मिया का. भाई बात साफ़ बाबु मिया का साँची पान (सौफिया पान) का कोई तोड़ नहीं है. पान पत्ता के बाद हम आये मुद्दे की बात पर और अपनी समस्या बताया अभी बाते कर रहे थे कि उहा साबिर भाई भी आ गए. मतलब चित्रा का जमावड़ा आज संझा के सलीम भाई के दुकाने पर लग गया. सब लोग समस्या जान कर चिंतित हुवे. फिर सलीम मिया ने बताया. क्या बताऊ पंडित जी. कल रात में इ आर्डर का आया कि आज सुबह से बोहनी तक नहीं हुई. सबकी समस्या है गुरु की सब लोग बड़ी नोट रखना पसंद करते है. सुबह से सन्नाटा है पूरी मंडी. सबकी यही हाल है कि पास में पैसा होते हुवे भी कंगाल की स्थिति है. मगर आप फिकर न करो अमा कितना सामान चाहिए सब यही आ जायेगा आखिर किस काम की दोस्ती हम लोगो की. और पैसा का जब सब बैंक खुले शादी बियाह बीत जाय ता पंहुचा देना, कहा भागा जा रहा है पैसा.
बस फिर का गुरु तुरंते कुल लिस्ट पर का सामान सलीम मिया और सबीर मिया टपटपा के मंगवा दिए जो उनकी दुकान का था उ निकलवाए और जो दुसरे दुकान में मिलता था उहो अपने व्यवहार पर मंगवा दिए. लक्ष्मण बाबु का चेहरा ता खिल के बतासा हो गया रहा. उकरा पाहिले अईसन लग रहा था जैसे सुबहिये सुबहिये संडास गए हो और लोटा चोरी हो गया हो. अभी कुल सामन पैक हो रहा था कि तब तलक भगेलुआ का लईका आ धमका उहा. सब लोगन के देख के गोडलगिया किया और बैठ गया. तब पता चला कि उ सलीम मिया के लईका का मित्र है और इ सभन्ने का बैठकी अलगे होती है. उहे बताईस कि आज दोपहरे में घुप्पा पाडे मुते गयल रहलन तब्बे निकलत समय गोड फिसल गयल और उनकर कुल्हा में चोट आ गयल और उ भरती हउवन. इ खबरिया सुन के गुरु अइसन लगल की केहू जोर का झटका धीरे से दे देहलस. ईहा सलीम मिया हमार भौकाल एकदम्मे टाईट कर देहले रहलन उहा अब श्रीमती जी के राती के पईसा न देहली ता बवाल कट जाई. हम तनी संकुचावत भगेलू के लईका के कहली बेटवा एक काम रहल तोहसे. पुछ्लस का चच्चा बतावा. ता हम बतईली के ए बाबु तोहार चाची कुछ बचाय के पञ्च सौवा और हजार रखले हई कुल 65 हजार बा ओकरा के बदले बदे कऊनो ब्यबस्था बतावा. ता कहलस चाचा तनिको परेसान न होवा. देखा सुक्करबार के बैंकवा खुली मगर बड़ा भीड़ रही. ओकरे बाद मंगर के खुली तू लेके आ जहिया अब एतना भौकाल बनल हैओ तोहार इ बेटवा का कि दस्से मिनट में बदलवा देंब. बस चिंता न करा,
अब गुरु उ लईका को का बताऊ कि कल तरकारियो बने बदे घरे में पैसा न बा. हमरे चेहरा पर चिंता की लकीर आ गयल गुरु. हमके लगत हैओ की सबीर मिया हमार चिंता देख लेहलन. जब चले लगली कुल समनवा लेके और जयरम्मी सलाम दुआ हो गयल ता साबिर मिया कहिलन अरे पंडित जी तुहे याद है की नाई एक दाई हम तु हमके अढाई हजार रूपया दिए रहे और कहे रहे कि बढ़िया सा भौजी बदे एक बनारसी साडी मंगवा देना. तो गुरु भौजी जो पसंद किहिन उ खाली 5 सो वाली साडी रहे. इ अपना बकिया का दू हजार रुपया ले लो गुरु इ कहकर उ हमको सो सो का बीस नोट थमा दिए. हम समझ रहे थे कि इ केवल एक सहायता है. काहे कि गुरु कब्बो हम देले न रहली. चलत समय सब कोई गले लगल एक दुसरे के. हम साबिर भाई के गले विशेष रूप से मिले और उनके कान में कहा भाई आज आपका अहसान है जैसे बदल जायेगा वैसे पंहुचा दूना. इतनी इज्जत रखने का बहुत बहुत धन्यवाद. तो साबिर मिया बनावटी गुस्सा होते हुवे जोर से बोले. काहे का धन्यवाद उ बिटिया का खाली लक्ष्मण जी का है हम लोगो की बिटिया नहीं है का. चलो अब बहुत काम बाकि होगा शादी का निपटाओ. और कऊनो काम हम लोगो के लायक हो तो बताना.
हम लोग वह से चलते उसके पहले ही लक्षमण बाबु हाथ जोड़ के नम्र भाव में बोले. भाई लोग हमको माफ़ करना शादी की भाग दौड़ में हम आप लोगो को न्योता देना भूल गए थे. कल आप लोगो की बिटिया की शादी है आप सबको आकर आशीर्वाद देना है. इसपर सलीम मिया ने कहा क्या लक्ष्मण भाई दिल तोड़ रहे है, अरे आप नहीं भी कहते तो हम लोग ज़रूर आते. अरे अपनों को कोई दावत देता है क्या.
हम लोग वहा से चल चुके थे. दालमंडी से औरंगाबाद बहुत दूर नहीं है मगर आज जैसे लग रहा है कि रास्ता बहुत बड़ा हो गया था. शायद एक अहसास का बोझ कंधो पर था. एक ओछी राजनीती के शिकार होकर हम आपस में कैसे लड़ते है झगड़ते है. मगर आज समझ में आया की काशी की असली सुन्दरता तो यहाँ बसे गंगा जमना तहजीब की मेल मोहब्बत है. अरे धरती का कौन सा ऐसा देश है जो इस सुन्दरता की बराबरी करे जब एक तरफ सुबह अल्लाह हो अकबर कर के अज़ान होती है तो उसी समय गिरजाघर के बायबल के शब्द फिज़ाओ में रहते है और उसी समय गुरुद्वारा से आती गुरुवाणी तो साथ ही वेदों के श्लोक जब यह तीनो एक साथ समाहित होते है तो उस सुन्दरता की कोई बराबरी नहीं कर सकता था. ये है गुरु असली काशी जो आज मुझको दिखाई दी. जय हो काशी.विजय हो काशी.
साहेब देखे हम तो कहा रहा की हम खाली बतियाते है. उ काका कहते रहे न कि बतिया है कर्तुतिया नाही. मतलब बात है खाली काम नहीं है. तो भैया हम तो बतिया चुके अब का करे बतियाने के सिवा कुछो करहु न सकते है. अब बतियाना बंद करते है.
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