अनंत कुशवाहा
ध्यान में नियम बद्ध बैठने से, सप्रबुद्धि आती है। सदा प्रभु का सुमिरन करें। ध्यान से ही परम तत्व की प्राप्ति संभव है। इसी से ज्ञान व स्वयं की वास्तविकता का आभाष होता है। इसके लिए अहंकार व समस्त कामनाओं का त्याग परम आवश्यक है। जितना आध्यात्मिक ज्ञान अंदर पचता है उतना ही प्रकाश रूपी ज्ञान अंतर को प्रकाशित करता है। विडंबना है कि मानव शरीर में समस्या ऊर्जा व स्रोत मौजूद है पर उसका समुचित उपयोग नहीं कर पाता। धर्म की शिक्षाओं को आत्मसात कर विश्वास की दृढता का भाव जाना है। आत्मोयता न परम प्रेम का विकास किये बिना आध्यात्म पर चलना संभव नहीं है। आत्म निर्माण, सुधार, आत्म संयम, सादगी, नप्रता, संस्कार रूपी सद्गुण ही आध्यात्म को सम्पन्न बनाता है। उत्कृष्ट चिंतन है आध्यात्मा निवे अपनाने पर अंतर मंे संतोष व बाहर विकास की उपलब्धि मां प्राप्त होती है। जीवन से दो बाते, सभी लौकिक काम बने, दुख न आये व दूसरा इस संसार में बार-बार न आना पड़े जिसके लिए आध्यात्म का शरण चाहती है।
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