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इमरान सागर की कलम से – शहीद दिवस पर भी घड़ियाली आसूॅ

इमरान सागर
तिलहर,शाहजहाॅपुरः-सन 1857 के बाद देश में अग्रेजी हुकूमत को महसूस होने लगा कि अब वह दिन दूर नही जब भारतीय पूरी तरह बगागत पर उतर आयेगें। भारत में ब्रिटिश हुकुमत के दौरान खास कर भारतीयों को उनके अधिकारो से वचिंत रखा जाता था जो यकीनन पूरी तौर पर अन्याय था। ब्रिटिश हुक्मरान भारतीयों पर विभिन्न प्रकार से जुल्म करते थे,हालांकि वह जितने जुल्म करते थे उतनी ही भारतीयों में एकजुटता भी होती जाती थी।

भारतीयों की एक जुटता से खिन्न हो कर अग्रेजी हुकुमत ने जब भारतीयों पर जुल्म की सभी हदे पार करनी आंरभ की तो भारतीयों के सब्र का बाध टूटने लगा और उन्होने अपनी शक्ति का प्रदर्शन अपनी एकजुटता कर संगठन के रूप में अग्रेजी हुकुमत के खिलफ क्रान्ति का बिगुल बजा दिया, लेकिन भारतीयों में से ही तथाकतिथो ने अपने ही भारतीय भाईयों से गद्दारी करते हुये सच्चे भारतीयों के सभी प्लानो को ब्रिटिश हुकुमरानो तक पहुंचाना चालू कर दिया। अग्रेजी हुकुमत के जुल्मो से छुटकारा पाने की जब सभी भारतीयों ने अपनी एकजुटता पर बल दिया तो उस समय समस्त देशवासी सिर्फ भारतीय ही थे न कि किसी जाति के, बल्कि सभी भारतीय आपस में भाई भाई से भी अधिक सच्चा प्रेम करते थे।
भारत भर में अग्रेजो के जुल्मोसितम से छुटकारा पाने के लिये भारतीयो ने अपने समझदार भाईयों का चयन किया और अग्रेजो से पूरी तौर पर लोहा लेने के लिये, जिसमें भारत के जनपद शाहजहाॅपुर का नाम भी बड़ी इज्जत के साथ जोड़ा गया। जनपद शाहजहाॅपुर से ठा0 रोशन सिंह, राम प्रसाद बिस्मिल, और अशफाक उल्ला खाॅ जिन्हे आज भी क्रान्तिवीर अमर शहीदो के नाम से जाना जाता हैं।
सन 1947 से पहले अग्रेजी हुकुमत से भारतीयों को आजाद कराने में हमारे देश भारत की कितनी माता और पिताओं ने अपने लाल और कितनी बेटियों ने अपने पिताओं से तथा कितनी बहनो ने अपने भाईयो को खोया इसका अन्दाजा हम आज किसी भी कीमत पर नही लगा सकते। अपने देश भारत को ब्रिटिश हुकुमत से आजाद कराने में कितना समय और कितने जीवन हलाक हो गये। इतिहास के पन्ने में जितनो का आकंलन कर लिया हम उन्हे तो शहीदो के नाम पर जान गये लेकिन देश पर मिटने वाले कितने ही एैसे हलाक जीवन होगें जिसकी कल्पना करना भी हमारे बस में शायद नही होगा। देश की राजधानी में स्थित लालकिले की प्राचीर पर जब तिरंगा लहराया गया तो पूरे देश के माहौल में दिवाली और ईद जैसा माहौल नजर आ रहा होगा। अग्रेजो से भारत को आजादी मिलने से पहले ही न कोई हिन्दु था और न ही मुसलमान क्यूंकि उस समय सबका था हिन्दुस्तान।
भारत जिसे देश की एक और भाषा में हिन्दुस्तान भी कहा जाता है, अब अग्रेजो के जुल्म से पूरी तरह आजादी पा चुका था और देश में तिरंगा लहरा रहा था। हर ओर खुशी का माहौल नजर आता था जो शहीद हो गये थे उनका ग़म भी कम नही था लेकिन उसके बाद भी हर चेहरे पर मुस्कान बिखरी नजर आ रही थी। जिस भारत को, जिस हिन्दुस्तान का, 1947 में आजादी मिली थी और जो माहौल हमारे देश में नज़र आ रहा था, उस पर थोड़ा सा गौर कर आखोॅ में सपना मात्र भी देखा जाये और आज के हमारे देश भारत से मिलान किया जाये तो अचम्भित सा लगता है कि हम आज कंहा खड़े हैं। आजादी के मतबालो ने कभी सपने में भी नही सोचा होगा कि जिस मातृभमि के लिये हम ब्रिटिश हुक्मरानो से लोहा लेकर अपनी जान गवा रहे हैं उसी मातृभमि को आने वाली नस्ले विभिन्न भ्रस्टाचार को बढ़ावा देकर एक दूसरे के खून के प्यासे हो जायेगे। उन्होने कभी नही सोचा होगा कि जिस मातृभमि के लिये अपना तन मन और जो कुछ भी था धन सब निछाबर कर रहे हैं उसी मातृभमि की कोख से जन्म लेने वाली हमारी नस्ले अपने जाति फायदे के लिये उसे गन्दा करने में एक पल का भी समय नही गवायेगे। आज हमारे देश में एैसा क्या हो रहा है जिसे देख कर आजादी के मतवालो की आत्माये हम पर यानि अपनी नस्लो पर गर्व कर सके। यह कहना तो आसान है कि एैसा कुछ भी नही हो रहा है जिससे किसी की आत्मा को जरा सी भी तकलीफ हो लेकिन सत्य कहना कितना मुश्किल है कि एैसा कुछ भी नही कर पा रहे हैं हम जिसे देख कर सच में आजादी के मतवालो की आत्माये हम गर्व करे, एैसा प्रश्न मन को आज भी कटोचता हैं उन देश भक्तो का जो आज के उजाले रूपी अन्धेरे में आजादी की किरण को खामोश गलियों में तलाश करते हैं।
आजादी के मतवालो की आत्माओं की शान्ति के लिये हम वर्ष में एक वार चन्द लमह के लिये अपने घड़ियाली आॅसू ही तो वहा पाते है और उसमें भी हमे लालच होता है अपनी पहचान बनाने का। क्या आजादी के मतवालो ने अपनी पहचान बनाने के लिये ब्रिटिश हुकुमत से लोहा लेते हुये खुद को कुर्बान कर दिया। क्या आजादी के मतवालो के परिवारो ने कभी सोचा कि देश में क्रान्ति के लिये अपने लाल को शहीद करवा कर नाम की पहचान बनानी है। नही कभी नही, उन्होने कभी नही सोचा, वह तो सिर्फ और सिर्फ अपने देश और अपनी मातृभमि भारत के वारे में सोचते थे। वह तो सिर्फ इतना ही सोच पाये कि हम खुद ही संक्षम बन सकते हैं तो हम अग्रेजो के नाइन्सफिया भरे फरमानो को मान कर क्यूं खुद पर जुल्म करे। आज जो हमारे बीच मौजूद नही है हम उनकी यादो के पथ चल कर भी यदि अपने देश की ओर देखते तो शायद आज हम सबसे अधिक शक्तिशाली बना चुके होते हैं। आज देश के सच्चे भक्तो के मन में इस प्रकार के कई प्रश्न गूंजते नजर आते हैं लेकिन मजबूर हैं कि हवाओं का रूख बदला हुआ है और उनके प्रश्नो का उत्तर मिलने की बजाय उनका ही अहित निश्चित है। वन्देमातरमः की जिस गूंज से ब्रिटिश हुक्मरानो के पसीने छूटने लगते थे आज उस मजबूत शब्द वन्देमातरमः का जातिय बटबारा सा होता नजर आने लगा जिसके कारण हम अग्रेजी हुक्मरानो से अधिक अपनो के ही गुलाम से बने नजर आने लगे।
बिरासत में मिले अधिकारो को ही छिनता हुआ देखने वाले अपने अधिकार की मांग नही कर सकते क्यूंकि हम अपनी आजादी को घुमण्ड की राह खुद ही ले जा रहे हैं। हममे सूझबूझ की क्षमताये खुद ही खत्म होती जा रही है। शहीद दिवस के नाम पर हम खुदगर्जी की मिसाल कायम करते नजर आते हैं। शहीदो की प्रतिमाये लगा कर वर्ष में मात्र एक वार ही तो माल्याअर्पण करते हैं परन्तु उसके बाद हम उधर झरकने भी नही पहुंचते कि शहीदो की मजारो और प्रतिमाओं पर भारत स्वच्छ निर्मल अभियान का प्रयोग किस प्रकार हो रहा है।
वर्ष में मात्र एक बार अपनी तलल्ली के लिये शहीद दिवस के नाम आखिर कब तक हम खुद को धोखा देते रहेगें। हमे एक फिर मंथन करने की जरूरत है कि जिन्होने अपनी नस्लो यानि हमारे लिये अपनी जाने देश पर कुर्बान कर दी उन्हे हम वर्ष में मात्र एक दिन चन्द लम हके लिये याद करते हैं जबकि पूरे वष्र न सही कम से कम एक दिन तो होना चाहिये।
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