अन्जनी राय/बलिया
बलिया : 16 दिसम्बर 2012 की स्याह रात को याद कर आज भी न सिर्फ रूह कांप जाती है, बल्कि ऐसे अमानवीय कृत्य करने वालो के खिलाफ गुब्बार फुट पड़ता है। इन चार वर्षों के जद्दोजहद के बाद भी गैंगरेप जैसे घिनौने कार्य को अंजाम देने वाले अभी भी पीड़िता परिवार को मुह चिढ़ा रहे है।
जनपद के नरही थाना क्षेत्र अंतर्गत एक गांव की ‘निर्भया’ को हवस में पागल दरिन्दों ने देश की राजधानी में न सिर्फ चलती बस में गैंगरेप किया, बल्कि उसे बस से बाहर भी फेंक दिया। यह घटना जैसे ही लोगों के संज्ञान में आयी इन बहशियों के खिलाफ गुस्सा फुट पड़ा और लोगबाग सड़कों पर उतर आये। आंदोलन हुए, संसद तक आवाज पहुंची और एक नया कानून भी बना, लेकिन आंकड़ों पर नजर डालें तो नतीजा अब तक सिफर ही नजर आता है।
कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक और असम से लेकर गुजरात तक चहुंओर इस घटना की निंदा करने के साथ-साथ उन वहशियों को मृत्यु दण्ड देने की मांग भी उठी। घटना से जहां पूरा देश मर्मांहत था, वहीं जनपद वासियों का गुस्सा भी उबाल मार रहा था। इस बीच 13 दिनों की शारीरिक यातना के बाद 29 दिसम्बर 2012 को निर्भया के दम तोड़ने के साथ ही लोगों का विरोध प्रदर्शन और उग्र हो उठा, लेकिन भारतीय संवैधानिक पहलूओं के चलते चार साल बाद भी न्याय की टकटकी लगानी पड़ रही है। हालांकि अगर इस पूरे घटनाक्रम पर दृष्टिपात करें तो दिल्ली हाईकोर्ट ने 13 मार्च 2014 को ही सभी गुनाहगारों के खिलाफ सजा सुना दिया था, लेकिन माननीय सर्वोच्च न्यायालय में अपील के कारण अब तक विचाराधीन है, जिसकी अगली पेशी 2 जनवरी को है। बात निर्भया के साथ की गई गैंगरेप की घटना से नहीं, बल्कि उन परिस्थितियों पर गौर करने की है जिन स्थितियों में इस वहशी कारनामे को अंजाम दिया गया। साथ ही इससे भी इंकार नहीं किया जा सकता कि इतने घिनौने और अमानवीय कार्य के विरोध में जिस कदर लोगों ने अपना गुस्सा जाहिर किया, वह धीरे-धीरे वक्त के थपेड़े के साथ कुंद होता चला गया। यदि ऐसा नहीं होता तो आये दिन अखबारों में गैंगरेप एवं बलात्कार की घटनाएं देखने को नहीं मिलती। शायद भारतीय न्याय प्रणाली की लेट लतीफी भी इसकी एक बड़ी वजह है। निर्भया के परिजनों की भी सबसे बड़ी चिंता यही है कि जैसे-जैसे साल बीतते जा रहे हैं इस समस्या के प्रति सरकार और समाज का रवैया टालने वाला होता गया है। भारतीय समाज में महिलाओं की स्थिति और उनके खिलाफ बढ़ रहे अपराधों को लेकर पीड़ित परिवार चिंतित है। उनका कहना है कि निर्भया के साथ हुई अमानवीय घटना के बाद युवाओं में जो गुस्सा दिखाई दिया था और जिस तरह कानून बनकर तैयार हुआ उससे काफी उम्मीदें जगी थीं। अदालत तो अपना काम कर रही है लेकिन ये पूरी प्रक्रिया इतनी धीमी है कि अभी तक चारों दोषियों को सजा नहीं मिल पाई है।