यशपाल सिह
उलेमा कौंसिल यूपी चुनाव 2017 में एक ऐसा दाव चलने जा रही है जो बड़े से बड़े से बडे सूरमा को चित्त कर सकता है। खास तौर पर सपा में मचे सियासी तूफान और अन्य राजनीतिक दलों के पास मुद्दों के आभाव का पूरा फायादा इस दल को मिल सकता है। उलेमा कौंसिल के मुखिया मौलाना आमिर रशादी भी इस चुनाव में खास रणनीति और मुद्दों के साथ मैदान में उतर रहे हैं। पार्टी उन छोटे दलों का साथ ले रही है जिनके पास बड़ा वोट बैंक तो है लेकिन अब तक वे उपेक्षा का शिकार रही है।
बता दें कि यूपी का चुनाव पिछले दो दशक से जाति और धर्म के नाम पर होता रहा है। मतदातओं के ध्रुवीकरण का फायदा भाजपा, बसपा और सपा उठाती रही है। चुनाव में आम आदमी से जुड़े मुददे गौण हो जाते है। इस बार चुनाव से ठीक पहले सपा में मचे सियासी तुफान ने आम आदमी का ध्यान पूरी तरह मूल भूत समस्याओं की तरफ से भटका दिया है। वहीं बसपा ने जातिगत आधार पर टिकट का बटवारा कर लोगों को एक बार फिर जाति और धर्म के आधार पर बांटने और वोट हासिल करने का प्रयास किया है। ऐसे में उलेमा कौंसिल का दाव सपा बसपा ही नहीं बल्कि भाजपा और कांग्रेस पर भी भारी पड़ता दिख रहा है।
प्लान
उलेमा कौंसिल ने इस चुनाव में करीब डेढ़ दर्जन राजनीतिक दलों के साथ राजनीतिक परिवर्तन महांसघ का गठन किया है। इसमें अबतक 18 छोटे दल शामिल हो चुके हैं। कुछ और दलों के गठबंधन में शामिल होने की संभावना है। अहम बात है कि इस महासंघ में जो दल शामिल है वे किसी एक जाति अथवा धर्म के नहीं है बल्कि वे छोटी-छोटी पार्टियां है जों अपने समाज के हक के लिए लड़ती रही हैं।
पीस पार्टी भी होगी शामिल
उलेमा के इस महासंघ में पीस पार्टी के भी शामिल होने की पूरी संभावना है। माना जा रहा है कि एक दो दिन में इसकी घोषणा हो सकती है। बता दें कि उलेमा कौंसिल की तरह ही पीस पार्टी का पश्चिम में ठीक ठाक जनाधार है
विपक्ष के लिए मुद्दे बनेंगे परेशानी
उलेमा कौंसिल का गठबंधन चुनाव में सामाजिक न्याय को तो मुद्दा बना ही रहा है लेकिन इनका प्रमुख फोकस गरीबी, और उन समस्याओं पर होगा जिसपर आजतक किसी सरकार का ध्यान नहीं गया है। इसके अलावा पार्टी आरक्षण की समीक्षा और गरीब सवर्णो के लिए आरक्षण का मुद्दा भी उठायेगी। इन सब के बीच अल्पसंख्यक युवाओं के साथ सरकार और पुलिस द्वारा आतंकवाद के नाम पर की गई नाइंसाफी एंव न्यायिक जांच जैसे मुद्दे भी इनके एजेंडे में शामिल होगे।
अति पिछड़े हो सकते है साथ
चुकि पार्टी निषाद पार्टी सहित कई ऐसे दलों के साथ समझौते कर रही है जिनके अपने समाज की तमाम समस्याएं है और सरकार द्वारा इसपर कभी ध्यान नहीं दिया जाता है। यदि यह गठबंधन उन मुद्दों को लेकर आगे बढ़ता है तो निश्चित तौर पर सपा, बसपा, भाजपा और कांग्रेस का नुकसान होगा। कारण कि अदर बैकवर्ड हमेंसा से इन्हीं दलों में बंटे रहे हैं। मंच मिलने पर उनके एकजुट होने की पूरी संभावना है