शनिवार तक कांग्रेस और सपा नेता दावा कर रहे थे कि ये गठबंधन कतई नहीं होगा, लेकिन रिपोर्टों के मुताबिक आखिरी वक्त में कांग्रेस हाइकमान हरकत में आईं और फिर समझौते पर हामी भरी गई। वरिष्ठ पत्रकार अंबिकानंद सहाय कहते हैं, “कांग्रेस का अकड़पन कि हम आज भी इतिहास में ज़िंदा है, उसकी जगह अब समझदारी ने ली है. अब उन्हें ज़मीन पर अपनी हैसियत का एहसास हुआ है। दोनों दलों के समर्थक यही कामना कर रहे थे कि अगर उन्हें जीतना है तो साथ आना होगा. मेरा मानना है कि दोनों दलों को इस गठबंधन से ज़बरदस्त लाभ होगा। अखिलेश के बगावती तेवर के बाद ऊंची जाति का वोट भी उनकी ओर मुड़ रहा था. कांग्रेस के आने से उसमें और तेज़ी आ जाएगी. मुसलमानों का रुझान अलायंस की ओर बढ़ेगा।
लेखक और पत्रकार रशीद किदवई के मुताबिक़ राहुल गांधी और कांग्रेस के लिए महत्वपूर्ण था कि वो बिहार के बाद उत्तर प्रदेश में भाजपा को धूल चटाएं। वो कहते हैं, “कांग्रेस और राहुल गांधी अपनी लीडरशिप को जमाने के लिए उत्तर प्रदेश में भाजपा को हराना बहुत ज़रूरी समझते हैं. राहुल गांधी चाहते हैं कि बिहार की तरह उत्तर प्रदेश भी एक मॉडल बन जाए, चार पांच मंत्री बन जाएं. उत्तर प्रदेश में भाजपा को हराना उनके लिए बहुत बड़ी उपलब्धि होगी। रशीद किदवई कहते हैं, “राजनीतिक दल के सामने ये चुनौती होती है कि वो राजनीतिक अस्तित्व बचाए या फिर सांप्रदायिक ताकतों को रोकने के लिए कुर्बानी दे. कांग्रेस ने दूसरा व्यवहारिक मॉडल अपनाया है। देखना होगा कि क्या पिछड़ी जातियों के वोट कांग्रेस को मिलेंगे, क्या वोट ट्रांसफ़र होगा? माइनॉरिटी वोटरों पर भी निगाह होगी कि वो कैसे वोट करते हैं। हालांकि उनके मुताबिक ऐसा भी हो सकता कि बसपा और कांग्रेस-सपा के बीच वोट बंट जाएं और इसका लाभ भाजपा को हो।
कांग्रेस के लिए गठबंधन समझ में आता है, लेकिन अखिलेश के लिए ये गठबंधन महत्वपूर्ण क्यों है, खासकर ऐसे वक्त जब वो पार्टी की राजनीतिक कलह में विजयी बनकर उभरे हैं? अबिंकानंद सहाय के अनुसार विद्रोह के बाद अखिलेश यादव में नॉवेल्टी फ़ैक्टर आया है और वो नए तेवरों के साथ मैदान में उतरे हैं और कांग्रेस गठबंधन को वो वोटरों में भुना सकते हैं। “चुनाव में नॉवेल्टी फैक्टर बहुत महत्वपूर्ण होता है. जयललिता को याद कीजिए कि कैसे वो नॉवेल्टी फ़ैक्टर के साथ चुनाव में आईं. चंद्रबाबू नायडू ने बगावत की और पार्टी को अपने कब्ज़े में किया. आज वैसी ही स्थिति अखिलेश की है। नोटबंदी के बाद भाजपा के ब्राह्मण और बनिया वोट अखिलेश की ओऱ मुड़ने लगे थे. कांग्रेस के साथ आने से उसमें तेज़ी आएगी। लेकिन इतिहास देखें तो कांग्रेस और सपा के संबंध कलह से भरे रहे हैं. इसके बावजूद ये दोनो दल साथ आए हैं, आखिर क्यों?
रशीद किदवई के अनुसार, “यूपी में कांग्रेस जन मानते हैं कि आज जो कांग्रेस का हाल है, उसका कारण सपा का उदय है. कांग्रेस बसपा से भी जुड़ कर देख चुकी है. कांग्रेसजन चाहे जीत न पाएं लेकिन पार्टी उम्मीदवारों को 10 से 15 हज़ार वोट मिलते हैं और जब उम्मीदवार नहीं होता है तो उम्मीद होती है कि ये वोट दूसरी पार्टी की ओर खिसक जाए. कांग्रेस ने ये गठबंधन करके बड़ा रिस्क लिया है। उधर क्या ये चुनाव प्रियंका गांधी के राजनीतिक सफ़र का रुख भी तय कर सकते हैं। किदवई के मुताबिक, “जिस तरह अहमद पटेल ने उनका नाम लेकर ट्वीट किया है, ये साफ़ ज़ाहिर है कि प्रियंका विधिवत रूप से सक्रिय राजनीति में आ चुकी हैं। अंबिकानंद सहाय के मुताबिक 2019 लोकसभा की लड़ाई शुरू हो गई है. आने वाले दिनों में और भी राजनीतिक गठबंधन नज़र आएंगे। वो कहते हैं, “बिहार चुनाव से कांग्रेस को समझ में आ गया कि महागठबंधन विनिंग फ़ॉर्मूला है।