जावेद अंसारी/अनुपम खान/ यासमीन खाॅन
राजनीतिक विश्लेषक यह मान रहे हैं राहुल गांधी जो नहीं कर पाए वही करने के लिए तो प्रियंका को यह जिम्मेदारी दी गई है. अमेठी में प्रियंका गांधी के साथ काम कर चुके योगेंद्र मिश्रा कहते हैं कि वह चुनाव के दौरान औसतन 16 घंटे तक काम करती हैं.
सुबह 9-10 बजे से रात को 9-10 बजे तक जनता के बीच रहती हैं. फिर दो-तीन घंटे तक पदाधिकारियों से रणनीति पर बातचीत करना नहीं भूलतीं.मिश्रा कहते हैं कि प्रियंका गांधी जिस कार्यकर्ता से एक बार दो मिनट बात कर लें उससे साल भर बाद मिलेंगी तो भी हाल-चाल पूछ लेंगी. संगठन के लोगों से लगातार संवाद करती हैं.
रायबरेली में कांग्रेस के जिलाध्यक्ष वीके शुक्ला कहते हैं कि उन्होंने इंदिरा गांधी और प्रियंका गांधी दोनों के साथ काम किया है. दोनों में कई समानताएं हैं. रैलियों की जगह रोड शो और नुक्कड़ सभाओं पर उनका जोर रहता है. एक दिन में औसतन 15 नुक्कड़ सभाएं कर देती हैं. उन्हें कोई भी बात तर्क के साथ समझानी पड़ती है. उस पर वह जो निर्णय लेती हैं उसे फिर नहीं बदलतीं. इंदिरा गांधी में भी बनावटीपन नहीं था, प्रियंका गांधी में भी नहीं है. सादगी पसंद हैं. आमतौर पर अपने विरोधियों का नाम लेने से परहेज करती हैं. भाषणों में कभी किसी के लिए अनर्गल बात नहीं कहती हैं.
सेंटर फॉर द स्टडी ऑफ सोसायटी एंड पॉलिटिक्स के निदेशक प्रोफेसर एके वर्मा कहते हैं कि राहुल गांधी के मुकाबले प्रियंका गांधी बहुत अच्छी नेता हैं. वह अच्छी वक्ता हैं, उनका अच्छा व्यक्तित्व है, उनमें एक आकर्षण है. संवाद करने की अच्छी क्षमता है. वह गंभीर रहती हैं. इसलिए वह कांग्रेस, उसके कार्यकर्ताओं और काफी हद तक जनता की पसंद हैं.
जबकि राहुल गांधी हमेशा मसखरी करते हैं. बार-बार जुमलेबाजी और चुटकुलेबाजी की वजह से जनता उन्हें गंभीरता से नहीं लेती. प्रियंका गांधी उसके उलट हैं. कांग्रेस को यह चिंता सताती रही है कि प्रियंका के राजनीति में उतरने से राहुल गांधी का पत्ता साफ हो जाएगा. इसलिए वह लोग इन्हें अमेठी, रायबरेली से बाहर नहीं जाने देना चाहते थे. अब कांग्रेस डूबने लगी है तो उबारने का प्रयोग शुरू हो गया है.