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बसेरो की तलाश में भटकती,भूखी बेजुबान गााय।

इमरान  सागरः-
तिलहर,शाहजहाॅपुरः-धर्म और राजनीत का शिकार हुई बेजुबान और मासूम गाय भीषण सर्दी में ठिठुरती घने कोहरे में एक पल ठहरने को बेताब गौशालाओं की तलाश मे भटक रही है। पल पल राजनीत की रोटियो पर सेका गया यह बुजुबान और मासूम गाय जहाॅ एक ओर अपने पेट की भूख शान्त करने के लिये झुण्ड के रूप में घने कोहरो को चीरती हुई भीषण सर्दी के थपेडो को सहन करके नगर के बाहर निकल कर खेतो की ओर रूख करने लगी है तो वहीं इनके चेहरो पर मजबूर किसान की लाठियों का शिकार होने का भय भी नजर आ रहा है।

घने कोहरे और भीषण सर्दी में नगर से बाहर आबादी से कोसो दूर हाईवे किनारे खेतो में सीधी साधी गाय के झुण्डो को देख कर उनकी मायूसी का अन्दाजा सहज ही लगाया जा सकता है। झूण्ड के करीब पहुचंते ही लगता है कि बे कोहरे के बीच सर्दी से कपकपा रही है और भूख की बेचैनी उसके मासूम चेहरो पर साफ झलकती नजर आती है। राजनीत की आग में मासूम गाय वर्ग जगंलो में भटकते हुये आज भी एक गौशाला की उम्मीद का सपना सजोय दिखाई पड़ता है हालांकि कहने को तो नगर में दो दो गौशालाये स्थापित है लेकिन क्षेत्र पर नजर दौड़ाने के बाद सहज ही अन्दाजा लगाया जा सकता है कि नगर में मौजूद गौशालायें भी राजनीत का शिकार होने से खुद को बचा नही पाई जहाॅ मासूम गायों के लिये रहने की जगह ही नही बल्कि खाने को कोई खुराक भी नही है। गाय को माता कह कर उस पर सैकड़ो बखान करके उसके मूत्र तक की लाखो की कीमत लगाने वाले चन्द मासूम और बेजुबान गायों के रहने लिये नगर में गौशाला तक का निर्माण कराने से कतराते नजर आ रहे है। समय बदला नही मुद्दा बदल गया लगता है क्यूंकि गाय भी वहीं और मानव भी वही परन्तु हर रोज गौमूत्र और गोबर का महंगा प्रचार करने वालो की निगाह अब इस भटकते मासूम गायो के झुण्ड पर नही प़ड़ती या फिर नुकसान का ममला समझ कर उसे जानबूझ कर भटकने के लिये छोड़ दिया गया लगता है। आबादी से दूर खेतो में पेट की भूख शान्त करने को भटकता गाय का झुण्ड बक्त से बरबाद हुये किसान के खेतो में लहलहाती फसलो में मुंह डालने से भी घबराता नजर आता है। उनके चेहरो से लगता है कि पेट की भूख शान्त करने के लिये फसल की ओर मुंह डालने पर किसान की लाठियो का सामना करने से बेहतर है घने कोहरे में खामोश खड़े सर्दी में ठिठुरते रहंे।
सूत्र बताते हैं कि गाय माता के नाम पर हाय तौबा करने वाले नगर भर में एक गौशाला का निर्माण कराने में संक्षम दिखाई नही पड़ते जबकि गौमाता के नाम पर राजनीत की रोटिया सेकने वाले मीडिया में चमकने का कोई अवसर खेना नही चहते। वहीं दूसरी ओर इसके बिपरीत आबादी से घने कोहरे के बीच भीषण सर्दी में अपने पेट की भूख शान्त करने के लिये खेतो की ओर किसान की लाठी का खौॅफ अपने चेहरो पर लिये भटकती नजर आ रही है। उनके चेहरो पर मायूसी साफ झलकती दिखाई पड़ती है कि हाय रे मानव मेरी मुक्ती भी कराई तो कम से कम एक बसेरा भी कर दिया होता मेरा, परन्तु सत्य तो यह है कि मानव मानव की भावना को ही नही समझ पा रहा है तो इन मासूम बेजुबानो की भावनाओ को क्या समझेगा।

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