अम्बेडकरनगर। समाजवादी पार्टी मंे उच्च स्तर पर चल रही उठा पटक का असर आगामी विधानसभा चुनाव पर पड़ना निश्चित माना जा रहा है। सबसे ज्यादा असंमजस में वे मतदाता देखे जा रहे है जो सपा के कट्टर समर्थक माने जाते है। अल्पसंख्यक मतदाता, जो हमेशा से समाजवादी पार्टी के साथ जुड़ा रहता आया है, वह पार्टी की इस अंदरूनी लड़ाई से पशोपेश में है।
यदि पार्टी की स्थिति में सुधार नही हुआ तो सपा का यह परंपरागत पर विखरने से कोई रोक नही पायेगा। बहुजन समाज पार्टी सपा की हालत पर अल्पसंख्यक मतदाताओं पर नजर लगाये हुए है। वह अल्पसंख्यक मतदाताओं को उनका सबसे बड़ा हितैषी होने का दावे करते भी नहीं थक रही है।
आम तौर अब तक के चुनाव में जो तस्वीर देखने को मिलती रही है उसमें अल्पसंख्यक मतदाता भाजपा के विरोध में उसी पार्टी को मतदान करता आया है जो उसे हराने में सक्षम दिखाई पड़ रही हो। इस वर्ग के मतदाताओं का केवल एक लक्ष्य रहा है और वह है भाजपा हराओ। अक्सर यह मतदाता समाजवादी पार्टी के पक्ष में ही खडे देखे गये है। इक्का दुक्का सीटो पर भी इस वर्ग के मतदाताओं ने बहुजन समाज पार्टी अथवा किसी अन्य पार्टी का समर्थन किया होगा। समाजवादी पार्टी में जिस तरह विवाद बढा है उससे इस वर्ग के मतदाताओं का चिंतित होना स्वाभाविक है। इसके साथ ही सपा के अन्य परंपरागत मतदाताओं में भी इस बात को लेकर चर्चाओं का बाजार गर्म है कि वे मुलायम का समर्थन करे अथवा अखिलेश का। हालांकि ज्यादातर लोग अखिलेश के पक्ष में ही देखे जा रहे है। इसके बावजूद यदि अखिलेश व मुलायम दोनों ने अपने-अपने प्रत्याशी विधानसभा चुनाव के दौरान मैदान में उतारा तो निश्चित रूप से समाजवादी पार्टी को इसका नुकसान होगा। दोनो के अलग रहने पर पार्टी के मतो को एक कर पाना आसान नहीं होगा। इसके साथ ही दोनो गुटो द्वारा अपने-अपने प्रत्याशियो को मैदान में उतारने का दावा कर लड़ाई को और पेचीदा बना दिया गया है। इन परिस्थितियों मंे विपक्षी दलो को लाभ होना तय माना जा रहा है।