अनंत कुशवाहा अम्बेडकरनगर. जिले के आलापुर तहसील का एक ऐसा प्रकरण संज्ञान में आया है जिसने सोचने और निर्णय करने की शक्ति को ही लगभग समाप्त कर दिया है. प्रकरण में समझ नहीं आ रहा है कि आखिर आरोपी/अपराधी कौन है दो बच्चो की वह माँ जो जेल के अन्दर है या फिर उसकी वह दूधमुही बच्ची जो माँ के गोद और दूध को बाहर अपने बाप के गोद में तरस रही है. आखिर इसका ज़िम्मेदार कौन है. वह पुलिस जिसने उसको गिरफ्तार किया, या फिर वह SDM जिसने ज़मानत नहीं दिया या फिर वह किसान यूनियन जिसने किसानो की लड़ाई में किसान की जगह उसकी पत्नी से प्रतिनिधित्व करवाया और नियमो को ताख पर रख कर महापंचायत जुटाने का प्रयास किया.
घटना कुछ इस प्रकार है कि विगत शनिवार को आलापुर तहसील क्षेत्र में किसान यूनियन ने एक महापंचायत बुलाया था. कई दिनों से धरनारत किसान यूनियन ने सरकार द्वारा राष्ट्रीय राज्यमार्ग 233 हेतु अधिग्रहित की गई किसानो की संपत्ति के अधिक (उचित) मुआवज़े की मांग कर रहा है. इसी मांग को लेकर कई दिनों से यह किसान यूनियन धरनारत है. इसी कड़ी में किसान यूनियन ने शनिवार को धरना स्थल पर किसान महापंचायत बुलाई थी. प्राप्त जानकारी के अनुसार किसान यूनियन को इस महापंचायत की जिला प्रशासन ने अनुमति नहीं दिया था.
अब नियमो के तहत यह आवश्यक था कि जिला प्रशासन इस महापंचायत को होने से रोके. इसके लिए SDM आलापुर पुलिस बल के साथ मौके पर पहुचे और पुलिस कर्मियों ने किसान यूनियन के कार्यकर्ताओ को किसान महापंचायत से रोका या फिर कालमिया भाषा में कहा जाये तो खदेड़ा. इसी जद्दोजहद में कुछ किसान यूनियन के कार्यकर्ताओ की पुलिस से झड़प हो गई. पुलिस द्वारा मौके से किसान यूनियन के कई कार्यकर्ताओ को गिरफ्तार कर शांतिभंग में बुक कर दिया गया. इस कार्यवाही की ज़द में 23-24 वर्षीय महिला मीरा और उसकी सास भी आ गई. अब अगर आरोपों पर ध्यान दे तो किसान यूनियन के कार्यकर्ताओ और गिरफ्तार लोगो के परिजनों का आरोप है कि पुलिस की कार्यवाही आस पास के घरो में रह रहे बाशिंदों पर भी हुई है और मीरा उस प्रकार से ही गिरफ्तार हुई है.
खैर, जो भी रहा हो पुलिस ने आरोपियों को SDM न्यायलय में पेश कर अपनी कार्यवाही पूरी कर ली. अब प्रत्यक्षदर्शियों और चर्चो की माने तो अदालत में मीरा रोती रही कि उसके बच्चे उसके बिना मर जायेगे मगर न्याय की पुकार उसकी सिसकियो से ज्यादा थी और SDM ने उसको जेल भेज दिया. इसी दौरान उसकी 5 महीने की दूधमुही बच्ची बीमार हो गई जिसको दिखने के लिए उसका पति CHC बसखारी लाया जहा चिकित्सक ने उसको दवाए मुहैया करवाया और बच्ची को माँ का दूध पिलाने की सलाह दिया है. अब एक व्यक्ति इसी में परेशान है कि अपने बीमार 5 महीने की बच्ची को देखे या दो साल के बेटे को देखे या फिर जेल में बंद अपनी माँ और पत्नी की ज़मानत करवाए.
घटना तो सिर्फ इतनी है मगर सवाल कई अधूरे है. आरोप जो भी लगे वह लगते रहते है. हम नहीं कहते है कि पुलिस ने महिला के घर के अन्दर घुस कर शांति भंग की कार्यवाही की होगी. हम इसको आधार मानते है कि उस महापंचायत में उक्त महिला भी आई होगी और पुलिस झड़प के दौरान कार्यवाही उसपर भी हो गई होगी, कार्यवाही के समय बच्चे महिला के पास नहीं रहे होंगे. अब बड़ा सवाल किसान यूनियन पर उठता है कि वह दो मासूम बच्चो की माँ अपने बच्चो को छोड़ कर आखिर महापंचायत में क्यों और कैसे तथा किसके कहने से आई क्योकि किसान तो उसका पति होगा. अब जो किसान वास्तव में है वह नहीं आया और अपनी जगह अपने प्रतिनिधित्व करने को अपनी माँ और पत्नी को भेज दिया यह बात कुछ हज़म नहीं हो रही है दूसरा सवाल क्या किसान यूनियन खुद को सभी से ऊपर समझती है ? जब इस महापंचायत की अनुमति नहीं मिली तो फिर उसके बावजूद ये महापंचायत बुलाकर क्या साबित करना चाहता था किसान यूनियन. आखिर अब असली आरोपी कौन है वो सास बहु, पुलिस, SDM या फिर नियमो को ताख पर रख कर महापंचायत करने वाली किसान यूनियन