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जाने क्या है असली सच इस झूठ का,

वैलेंटाइन-डे के जश्न में कुछ विद्वानों ने आजादी की दिवानगी में फांसी पर झूले सपूतों की शहादत तिथि ही बदल डाली। 14 फरवरी की सुबह से ही सोशल मीडिया पर अमर शहीद भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को शहादत दिवस पर नमन किया जा रहा है, जो सीधे तौर पर इतिहास के साथ छेड़छाड़ जैसा है। इससे मेधावी दिग्भ्रमित होंगे, क्योंकि भारत मां के इन सपूतों की शहादत दिवस 23 मार्च है।

इतिहास पर नजर डाले तो आजादी के दिवाने भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव जी के खिलाफ 07 मई 1929 को मुकदमा दर्ज हुआ। 06 जून 1929 को भगत सिंह जी ने जज के सामने न सिर्फ अपना विचार रखा, बल्कि आजादी के लिए क्रांति की आवश्यकता पर प्रकाश भी डाला। करीब एक साल बाद 26 मई 1930 को गोरों ने इन्हें दोषी करार दिया तथा 07 अक्टूबर 1930 को तीनों योद्धा को मृत्यु दंड की सजा सुनाई गयी। यही नहीं प्रिवी परिषद ने 10 जनवरी 1931 को इनकी अपील भी खारिज कर दी। 24 मार्च 1931 को इन जाब़ाजों को फांसी दी जानी थी, लेकिन एक दिन पहले (23 मार्च) को ही अंग्रेजों ने इन देशभक्तों को फांसी दे दी। ये है असली देश भक्तो की शहादत का असली सच.
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