(कब रुकेगा रेत मिट्टी का भट्टों पर अवैध खनन-भट्टों मलिकों के द्वारा जेसीबी से कराया जा रहा खनन) इमरान सागर
अल्लागंज,शाहजहाँपुर:- सुप्रीम कोर्ट के आदेश को दोहराते हुए राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण ने देश की किसी नदी में लाइसेंस या पर्यावरण मंजूरी के बिना रेत व मिट्टी के खनन पर रोक लगा दी है। सवाल है कि नदियों को बचाने के लिए जनहित याचिकाओं और उस पर दिए गए अदालती फैसले से शुरू हुआ अभियान क्या खनन माफिया के फावड़े रोक पायेगा? न्यायाधिकरण अपने आदेश को लागू करने के लिए उन्हीं अफसरों पर निर्भर है जिनमें कुछ तो भ्रष्ट हैं और जो मुरैना के आइपीएस अफसर नरेन्द्र कुमार की तरह तनकर खड़े होते हैं, उन्हे कुचलकर मार दिया जाता है या दुर्गाशक्ति नागपाल की तरह निलंबित कर दिया जाता है।
राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण ने हाल ही में अपने एक महत्वपूर्ण फैसले में देश की किसी भी नदी में बिना किसी लाइसेंस या पर्यावरण मंजूरी के रेत व मिट्टी खनन करने पर रोक लगा दी। अपने आदेश में उसने देश के सभी राज्यों के खनन अधिकारियों और पुलिस से इसे सख्ती से लागू करने को कहा है। राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण (एनजीटी) की जस्टिस स्वतंत्र कुमार की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि किसी भी नदी से रेत निकालने के लिए पहले इजाजत लेना जरूरी होगा। हालांकि जिन इलाकों में नदियों से रेत निकाली जाती है, या मिट्टी खनन उनमें ज्यादातर में पहले से इजाजत लेना जरूरी है, लेकिन ताजा आदेश ने पूरे देश में अब इसे जरूरी बना दिया है।
खनन की कैसे मिलती है अनुमति-
राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण देश भर में किसी भी नदी से रेत की खुदाई करने या निकालने से पहले केन्द्रीय वन और पर्यावरण मंत्रालय या संबंधित राज्य के पर्यावरण प्रभाव आकलन प्राधिकरण से इजाजत लेना जरूरी होगा। एक तरह से देखा जाए तो नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल का यह आदेश, फरवरी 2012 में आए सुप्रीम कोर्ट के आदेश का ही दोहराव भर है। सर्वोच्च न्यायालय के साफ-साफ आदेश के बाद भी देश में रेत व मिट्टी के अवैध खनन में कोई कमी नहीं आई। अदालत का आदेश निष्प्रभावी ही रहा। यही वजह है कि राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण को भी अब इसमें अपना हस्तक्षेप करना पड़ा है।
हर साल लाखों टन बालू और मिट्टी का अवैध खनन होता है और इससे राजकोष को लाखों-करोड़ों रुपये का नुकसान हो रहा है। उत्तर प्रदेश में अवैध खनन की खराब स्थिति के मद्देनजर इलाहाबाद हाई कोर्ट ने गुरुवार को सीबीआई को समूचे राज्य में मामले की जांच का निर्देश दिया और छह सप्ताह के भीतर रिपोर्ट सौंपने को कहा। जांच के दायरे में सरकारी अधिकारियों की भूमिका को भी शामिल करने को कहा गया है। यह आदेश कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश वी के शुक्ला और न्यायमूर्ति एम सी त्रिपाठी की पीठ ने विजय कुमार द्विवेदी और कुछ अन्य की ओर से दायर एक जनहित याचिका पर दिया।
वहीं अल्हागंज क्षेत्र में बालू और मिट्टी खनन चालू है। बीते दिनों जिलाधिकारी रामगणेश ने भी अधीनस्थ अधिकारियों को कड़े शब्दों में खनन पर रोक लगाने का फरमान सुनाया था। लेकिन अभी तक ऐसा कहीं से भी नही लग रहा है कि अल्हागंज प्रशासन बालू अथवा मिट्टी खनन रोकने के लिये कोई प्रभावी कदम उठा रहा हो।
क्षेत्र में स्थित सभी भट्टों के द्वारा कुछ ट्रालियों की परमीशन एसडीएम के द्वारा ली जाती है लेकिन परमीशन मिलने के बाद दो दो हजार ट्रालियां खुदावाई जाती हैं और भट्टों पर जमा की जाती हैं। ग्राम धर्मपुर पिडरिया और चिलौआ गांव के पास पडने वाली नहर व रामगंगा नदी से से रातों रात मिट्टी व बालू का खनन होता है। जेसीबी रात भर चलती हैं। भट्टों पर मिट्टी के पहाड़ खड़े हो गए हैं। लेकिन न कोई अधिकारी इसे देखने वाला है न ही सुनने वाला है। भट्टों पर चलने वाली टैक्टर ट्राली का आरटीओ में रजिस्ट्रेशन भी नहीं है। टैक्टर चालकों के ड्राइविंग लाइसेंस भी नहीं हैं। भट्टों पर जो मजदूर काम करते है उन सब का श्रम विभाग में रजिस्ट्रेशन भी न के बराबर है। वहीं भट्टों पर मासूम बचपन जल रहा है। 14 वर्ष की आयु से कम उम्र के बच्चे ईट भट्टों पर काम कर रहे हैं।
एसडीएम जलालाबाद की गाड़ी अल्हागंज क्षेत्र में आती है और भट्टों पर बने मिट्टी के पहाड़ों को देखकर चली जाती है। अधिकारियों पर अवैध खनन, बाल मजदूरी, पर्यावरण प्रदूषण का कोई प्रभाव नहीं पड़ रहा है। आखिर जलालाबाद अल्हागंज पुलिस प्रशासन इस ओर ध्यान क्यों नहीं दे रहें हैं। नाम न छापने पर एक समाजसेवी ने बताया है कि क्षेत्र में हो रहे अवैध खनन की समस्या की एक चिट्ठी उन्होंने सीबीआई आफिस दिल्ली के लिए लिखी है। अब देखने वाली बात यह है कि अब सीबीआई और जिला प्रशासन क्या करता है।
क्या कहता है कानून
ऐसा ही एक मामला कानपुर का है जिसमें इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ पीठ ने अमेठी के मोचवा गांव से 200 मीटर दूर स्थित ईट भट्टे को तत्काल बंद किये जाने का आदेश दिया है। साथ ही भट्ठा मालिक व प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड पर पांच लाख रूपये का हर्जाना ठोंका है।
परंपरागत ईट भट्टों से उत्सर्जित होने वाली हानिकारक गैस और धुआं पर्यावरण को बड़े पैमाने पर प्रदूषित कर रहे हैं। ईट भट्टों के आसपास रहने वाले लोगों में सांस से जुड़ी बीमारियों में इजाफा होने से जब टीबी और अस्थमा के मरीजों की तादाद बढ़ी तो नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने इस पर खासी आपत्ति जताई। साथ ही राज्य सरकार को प्रदूषण पर लगाम कसने के लिए ईट भट्टों के बाबत नीति निर्धारित करने के आदेश जारी कर डाले। इन आदेशों की पालना करते हुए राजस्थान सरकार की तरह उ. प्र राज्य में ईको फ्रेंडली ईट भट्टे लगाने का फैसला किया है। बनारस के ईट भट्टा क्लस्टर को रोल मॉडल मानकर सरकार नई नीति तय करने में जुटी है।
मिट्टी खनन के नियम
शासन ने जेसीबी से खनन पर पूर्ण प्रतिबंध लगा दिया है। ईट-भट्टा व्यवसाई अब दो मीटर से ज्यादा खनन नहीं करा सकेंगे। यदि वे ऐसा करते हैं तो खनन अधिनियम में फंस जाएंगे। वहीं दो मीटर का खनन भी मजदूरों के द्वारा कराया जाएगा। लेकिन यहां तो कहानी ही दूसरी है भट्टा मलिक. दो मीटर के बजाये पचासों मीटर तक गहरी खुदाई जेसीबी मशीन से कराते है जिससे कानून का पालन भी नहीं. हो रहा है। और मजदूरों का भी लाखों में घाटा. हो रहा है और बच्चे भी शिक्षा से दूर हैं।