शबाब ख़ान
सरकार ऐसी नीति लाने की बात कर रही है जिसके तहत उम्र पूरी कर चुकी गाड़ियों को कबाड़खाने भेज दिया जाएगा। क्या ऐसा करना हमारे देश में इतना ही आसान है? खबर है कि बहुत जल्द ही ऐसा हो सकता है कि जब आपकी गाड़ी की उम्र पूरी हो जाए तो सरकार इसे जब्त करके कबाड़खाने में भेज दे। बताया जाता है कि सरकार व्हीकल सनसेट पॉलिसी के नाम से एक नीति लागू करने वाली है।
इसके तहत अगर आपकी गाड़ी में कोई ऐसी खराबी आ गई है जो ठीक नहीं हो सकती या फिर यह प्रदूषण के मानकों को पूरा न करने के चलते सड़क पर चलने लायक नहीं रह गई है तो इसका रजिस्ट्रेशन रद्द करके इसे जब्त कर लिया जाएगा। सरकार ऐसी गाड़ियों के लिए अलग से दो कबाड़खाने बनाने की भी सोच रही है। कुछ दिन पहले केंद्रीय सड़क परिवहन मंत्री नितिन गडकरी ने कहा था कि ये चेन्नई और कांदला बंदरगाह के करीब बनाए जा सकते हैं। सरकार ऐसी गाड़ियों के लिए अलग से दो कबाड़खाने बनाने की भी सोच रही है। ये चेन्नई और कांदला बंदरगाह के करीब बनाए जा सकते हैं।
खबरों के मुताबिक सरकार चाहती है कि किसी भी वाहन का रजिस्ट्रेशन तभी तक रहे जब तक कि वह फिटनेस के तय मापदंडों पर खरा उतरता हो। गाड़ी की उम्र से इसका कोई संबंध नहीं होना चाहिए। राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण (एनजीटी) ने पिछले महीने दिल्ली में 10 साल से ज्यादा पुराने डीजल वाहनों पर प्रतिबंध लगा दिया था। इस आदेश के खिलाफ केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में अपील की थी। अदालत में उसने कहा कि वह प्रदूषण फैलाने वाले वाहनों को लेकर एक नई नीति तैयार कर रही है, लेकिन इसके लिए कुछ समय चाहिए। इसके बाद एनजीटी ने 10 साल से पुराने वाहनों पर प्रतिबंध लगाने के लिए तय की गई समयसीमा पर फिलहाल रोक लगा दी है।
बीते नवंबर में एनजीटी ने दिल्ली में 15 साल से ज्यादा पुराने पेट्रोल वाहनों पर रोक लगाने का आदेश दिया था। इस आदेश के खिलाफ भी सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में अपील की थी। उसने कहा था कि यह समस्या का हल नहीं है। सरकार ने कहा था कि प्रतिबंध की बजाय प्रदूषण संबंधी नियमों को और सख्त बनाकर समस्या से निपटा जा सकता है। सरकार ने वाहनों की सख्ती से चेकिंग पर भी जोर दिया था।
… यह योजना मंदी से जूझ रहे ऑटो उद्योग और अर्थव्यवस्था के लिए फायदेमंद साबित हो सकती है। लेकिन इसका लागू होना या इसकी सफलता इस बात पर निर्भर करेगी कि किसी की कार लेने के एवज में सरकार उसको कुछ मुआवजा भी देती है या नहीं …
पर्यावरण और अर्थव्यवस्था, दोनों को फायदा
हमारे यहां कई गाड़ियां अपनी उम्र पूरी करने के बाद भी या तो किसी जोड़-तोड़ से धुआं उड़ाती हुई चलती रहती हैं या फिर इधर-उधर पड़ी सड़ती रहती हैं। जबकि अमेरिका सहित कई विकसित देशों में पुरानी गाड़ियों को स्क्रेपयार्ड में भेजना एक आम बात है। इससे न केवल प्रदूषण की समस्या कम होती है बल्कि इस कबाड़ को फिर से इस्तेमाल करने से ऊर्जा और प्राकृतिक संसाधनों की बचत भी होती है। एक सामान्य यात्री कार के वजन में करीब 65 फीसदी लोहा और इस्पात यानी स्टील होता है। ऐसे एक टन स्टील को फिर से इस्तेमाल करने से करीब सवा टन लौह अयस्क और सात सौ किलो कोयले की बचत होती है।
करीब छह साल पहले अमेरिकी सरकार ने अपने यहां कैश फॉर क्लंकर्स नाम की एक योजना लागू की थी। इसके तहत अगर कोई तेल पीने वाली पुरानी कार देकर अच्छा माइलेज देने वाली नई कार खरीदता था तो सरकार उसे 4500 डॉलर तक की नकद रकम देती थी। इस रकम का इस्तेमाल वह नई कार खरीदने में कर सकता था। जानकारों के मुताबिक प्रदूषण घटाने के अलावा इस योजना ने अर्थव्यवस्था की दशा सुधारने में भी अहम भूमिका निभाई थी।
हमारे देश में भी यह योजना मंदी से जूझ रहे ऑटो उद्योग और अर्थव्यवस्था के लिए फायदेमंद साबित हो सकती है। लेकिन जानकारों के मुताबिक इसका लागू होना या इसकी सफलता इस बात पर निर्भर करेगी कि किसी की कार लेने के एवज में सरकार उसको कुछ मुआवजा भी देती है या नहीं। अगर देती है तो वह कितना और कैसे होगा। केंद्र सरकार पर पहले से ही उद्योग जगत के इशारे पर काम करने के आरोप लगते रहे हैं। ऐसे में वह कार मालिकों में सबसे नीचे की पायदान वालों की कारें यदि उन्हें सही कीमत दिए बिना कबाड़खाने भेज देती है तो इसकी उसे बड़ी राजनीतिक कीमत चुकानी पड़ सकती है। इसके बाद भी अगर मान लें कि इस योजना को लागू कर दिया जाता है तो इसकी सफलता इस बात पर भी निर्भर करेगी कि गाड़ियों को फिटनेस सर्टिफिकेट देने की प्रक्रिया का कितनी ईमानदारी से पालन किया जाता है। और यह दूसरी समस्या पहली से जरा भी कम मुश्किल नहीं है।