विशेष रूप से संथाली स्त्रियों के बारे में उन्होंने कहा कि आज भी आदिवासी समाज के कानून के विरूद्ध काम करने वाली स्त्रियों को ‘डायन’ करार दिया जाता है। वे हल नहीं छू सकती, छप्पर नहीं डाल सकती। भले कुछ भी नुकसान हो जाये। इससे बढ़कर उन्होंने यह भी कहा कि वन-विभाग और प्रशासनिक लोगों ने आदिवासियों की संस्कृति को नष्ट किया है। उनका राजनीतिकरण किया है। निर्मला जी ने अपनी प्रसिद्ध कविता पढ़ी- ‘बाबा मत ब्याहना मुझे उस देश’ और ‘‘पता है बस्ती की नाक बचाने खातिर तब बैल बनाकर हल में जोता था। जालिमों ने तुम्हें खूंटे में बांधकर खिलाया था भूसा’’
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