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नक़ल विहीन परीक्षा का एक उदहारण |
संजय ठाकुर
मऊ : गुरुवार से बोर्ड परीक्षाओं का दौर शुरू हो चुका है। इसी के साथ एक बार फिर से एक माह तक नकल कराने के मेले का शुरुआत हो चुका है। हालांकि सपा सरकार के जाने व भाजपा सरकार आने के बाद कयास लगाई जा रही थी कि अब नकल व सुविधा शुल्क पर रोक लगेगी। लेकिन अब तक भाजपा की सरकार के शपथ न ग्रहण किए जाने के कारण स्थिति पूर्व की सरकार की तरह ही देखने को मिल रही है। देखने में आया कि अधिकांश निजी विद्यालयों पर धड़ल्ले के साथ नकल हो रही है। केंद्र संचालक अपनी जेबें भरने के चक्कर में छात्रों से सुविधा शुल्क लेकर धड़ल्ले से नकल करा रहे हैं।
हालांकि प्रशासन कुछ हद तक सख्ती दिखा रहा है। बावजूद इसके नकल के साथ परीक्षा पास करने की लत लगा चुके छात्र व रूपए ऐंठने के लिए नकल कराने के आदी हो चुके केंद्र संचालक प्रशासन को ठेंगा दिखा रहे हैं।परीक्षा प्रारम्भ होने से पहले शिक्षा सचिव से लेकर जिला विद्यालय निरीक्षक तक दावा करते थे की इस बार नकल विहीन परीक्षा सम्पन्न कराई जायेगी लेकिन पहले दिन ही जनपद के लगभग सभी विद्यालयों में जम कर नकल हुई यहाँ तक की कई सहायता प्राप्त विद्यालयों में भी खुलेआम नकल हुई। आगे की परीक्षा में सुचारू रूप से नकल कराने के लिये 2500 से 3000 रुपये की मांग की गई। जब इस विषय में एक सहायता प्राप्त स्कूल के एक कर्मचारी से पूछा गया तो उसने नाम न छापने के शर्त पर बताया कि हमारे प्रबंधक जी का आदेश है कि विद्यालय पर नकल करा कर सुविधा शुल्क वसूला जाय। जब इस विषय में गहनता से जांच की गयी तो क्षेत्रीय लोगों ने बिस्तृत जानकारी दिया कि इस क्षेत्र में सहायता प्राप्त विद्यालयों में नकल कराने का खेल विगत कई वर्षों से हो रहा है। अब सवाल यह उठता है कि शिक्षा माफिया तो वित्त विहीन विद्यालयों को कहा जाता था लेकिन अब सहायता प्राप्त विद्यालयों को किस शब्द से नवाजा जाय।