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मोबाइल लेकर परीक्षा केन्द्र में घूम रहा कक्ष निरीक्षक |
नकल विहीन परीक्षा करा पाना कड़ी चुनौती
अम्बेडकरनगर। जिले के 174 परीक्षा केन्द्रो पर माध्यमिक शिक्षा परिषद द्वारा संचालित बोर्ड परीक्षा गुरूवार से प्रारम्भ हो गयी। परीक्षा को नकल विहीन सम्पन्न कराने के सरकारी दावों पर पहले दिन से ही सवाल उठने शुरू हो गये। नकल रोकने के प्रति प्रशासन ने जिस प्रकार की लापरवाही पूर्ण कार्य प्रणाली अपनायी उससे साफ है कि जिले में नकल विहीन परीक्षा सम्पन्न करा पाना आसान नहीं है। लोगों का मानना है कि प्रशासन के ढुलमुल रवैये से नकल माफियाओं की चांदी होना तय माना जा रहा है।
बीते दो वर्षो के बोर्ड परीक्षा पर नजर डाले तो तत्कालीन जिलाधिकारी विवेक ने नकल विहीन परीक्षा सम्पन्न कराने के उद्देश्य से जबरदस्त बैठके की थी। यहीं नहीं, उन्होने सभी परीक्षा केन्द्रों पर केन्द्र व्यवस्थापकों के अलावां अलग से एक-एक स्टेटिक मजिस्टेªट तैनात किया था। तत्कालीन जिलाधिकारी स्वयं परीक्षा की हर गतिविधि पर नजर रखते थे। केन्द्र व्यवस्थापकों के अलावां उन्होने स्टेटिक मजिस्टेªटों की भी कई बैठके आयोजित कर उन्हे कड़े दिशा निर्देश दिये थे। यहां तक की, वे सचल दलों की कार्य प्रणाली पर भी नजर रखते थे। इस बार हो रही बोर्ड परीक्षा में जिला प्रशासन ने पूर्व की व्यवस्था को पूरी तरह से दर किनार कर दिया। जिले के अनेक दागी विद्यालय जहां परीक्षा केन्द्र बना दिये गये वहीं ऐसे केन्द्रों पर नकल रोकने की कोई समुचित व्यवस्था भी नहीं की गयी। हद तो तब हो गयी जब एक तुगलकी फरमान के तहत जिला विद्यालय निरीक्षक ने मीडिया को परीक्षा केन्द्रांे में प्रवेश करने से प्रतिबंधित कर दिया। जिला विद्यालय निरीक्षक के इस फरमान से मीडिया की स्वतंत्रता पर अंकुश लगाया जा रहा है। प्रश्न यह है कि क्या मीडिया का प्रवेश प्रतिबंधित कर जिला प्रशासन व जिला विद्यालय निरीक्षक नकल विहीन परीक्षा सम्पन्न करा लेने का दावा कर सकते है। साफ है कि परीक्षा केन्द्रों के आवंटन में जिस प्रकार की मनमानी बरती गयी है उससे जिला विद्यालय निरीक्षक व उनका कार्यालय खुद ही सवालो के घेरे में आ गया है। निजी विद्यालयों पर जिला विद्यालय निरीक्षक ने जिस प्रकार का रहम दिखाया है उससे स्पष्ट है कि सरकारी अमला नकल रोकने के प्रति कतई संवेदनशील नहीं है। मीडिया को रोक कर वह नकल के काले खेल को सार्वजनिक होने से रोकने का कुत्सित प्रयास ही कर रहा है। आखिर मौजूदा जिला प्रशासन ने पूर्व की व्यवस्था को लागू कर पाने में असमर्थता क्यो जता दी। ऐसा करके वह क्या संदेश देना चाहता है। फिलहाल मौजूदा व्यवस्था में प्रतिभावान परीक्षार्थियों का हक मारा जाना निश्चित माना जा रहा है।