जावेद अंसारी
सपा-कॉंग्रेस गठबंधन बहुमत में आया तब तो यह साफ है कि अखिलेश यादव ही मुख्यमंत्री की कुर्सी संभालेंगे। सपा और कॉंग्रेस दोनों सरकार में रहेंगे। बसपा आई तो भी तय है कि मायावती मुख्यमंत्री होंगी। पर, मायावती इस समय राज्यसभा की सदस्य हैं।
जाहिर है कि बसपा को बहुमत मिलने पर मुख्यमंत्री बनने के लिए उन्हें राज्यसभा की सदस्यता से त्यागपत्र देना होगा। साथ ही छह महीने के भीतर विधानसभा या विधान परिषद की सदस्यता लेनी होगी। देखने वाली होगी कि इसके लिए वह विधान परिषद का रास्ता तलाशेंगी या पार्टी के किसी नवनिर्वाचित विधायक से त्यागपत्र दिलाकर उसकी सीट से उपचुनाव लड़कर विधानसभा सदस्य के रास्ते से सूबे की सरकार की बागडोर संभालना पसंद करेंगी। वैसे मायावती ने 2007 में विधान परिषद की सदस्यता का ही विकल्प चुना था। भाजपा गठबंधन की सरकार बनी तो मुख्यमंत्री कौन बनेगा? यह अभी स्पष्ट नहीं है। पर, जैसा कि केशव प्रसाद मौर्य या मनोज सिन्हा के नाम चर्चा में हैं तो ऐसा होने पर इन्हें भी लोकसभा की सदस्यता से त्यागपत्र देना होगा।
ऐसी स्थिति में भी यह देखना दिलचस्प होगा कि अखिलेश व मायावती की तरह भाजपा के ये नेता भी विधान परिषद का रास्ता चुनते हैं या पार्टी के किसी विधायक का त्यागपत्र दिलाकर उसकी सीट से चुनाव लड़कर सदन में आते हैं। या फिर भाजपा, विधायकों में से ही किसी को मुख्यमंत्री बनाती है। अगर भाजपा गठबंधन की सरकार बनती है और सपा-कॉंग्रेस गठबंधन मुख्य विपक्षी दल होता है तो यह देखना भी दिलचस्प होगा कि मौजूदा मुख्यमंत्री अखिलेश यादव क्या भूमिका पसंद करते हैं।
वह विधान परिषद सदस्य ही बने रहते हैं या फिर पार्टी के किसी सदस्य त्यागपत्र दिलाकर उसकी सीट से चुनाव लड़कर विधानसभा में भाजपा सरकार से मोर्चा लेना पसंद करते हैं। रही बात बसपा की तो उसके मुख्य विपक्षी दल बनने पर लगभग यह तय माना जा रहा है कि वह राज्यसभा में ही रहेंगी। यहां पार्टी का कोई दूसरा नेता विपक्ष के नेता की भूमिका निभाएगा।