Categories: Crime

पूर्वांचल के अवाम की ये समस्याएं, जो नेताओं की जुबां पर अब तक नहीं आ सकी

जावेद अंसारी,
गोरखपुर में एन्सेफेलाइटिस जैसी घातक बीमारी से मुक्ति की कोई हुंकार इस चुनाव में नहीं दिख रही है. गोरखपुर का बाबा राघवदास मेडिकल कॉलेज इस घातक बीमारी से सूनी हुई हजारों मां की गोद का गवाह है. इस बीमारी ने अब तक 40 हजार से भी ज्यादा बच्चों की जान ले ली है. पिछले एक साल में ही इस मेडिकल कॉलेज में 600 से ज्यादा मौतें हो चुकी हैं. लेकिन सियासत में इसकी कोई गणना नहीं हुई. एन्सेफेलाइटिस उन्मूलन के चीफ कैंपेनर डॉ आरएन सिंह कहते हैं कि इसके रोक-थाम पर जो काम जनवरी माह में होना चाहिए था, वो चुनाव की वजह से नहीं हो पा रहा हैं. सभी चुनाव में व्यस्त हो गए हैं. इस साल लगता है कि मौत का आंकड़ा और बढ़ेगा.

वहीं बाढ़ के कहर से पूर्वांचल के कई जिले हर साल बुरी तरह प्रभावित होते हैं. सरकारें तमाम तटबंधों आदि पर खर्च करने का दावा करती आई है लेकिन यहां समस्या जस की तस बनी हुई है. हर साल गोरखपुर, देवरिया, मऊ, आजमगढ़, बलिया और गाजीपुर जिले के 5000 से ज्यादा गांव बाढ़ की विभीषिका झेलते हैं. हर साल पलायन का संकट और भुखमरी तक की नौबत आ जाती है.
गन्ना किसानों को लेकर भाजपा से लेकर सपा और बसपा के नेता तमाम वादे कर रहे हैं लेकिन पूर्वांचल में बंद चीनी मिलों को दोबारा खुलवाने का कोई रोडमैप अभी तक पेश नहीं कर सका है. पूर्वांचल के बड़े किसान लंबे समय से मेहनत के बाद भी गन्ने की मिठास हासिल नहीं कर पा रहे हैं.
पूर्वांचल की 31 में से 21 चीनी मिलें बंद हैं, जो 10 चीनी मिलें चल भी रही हैं उन पर गन्ने के बकाए की देरी ने किसानों को बड़ा दर्द दिया है. सिर्फ बलिया की रसड़ा और गाजीपुर की नंदगंज चीनी मिल की ही बात कर लें, तो ये बड़ी चीनी मिलें अरसे से बंद हैं. इनका असर गाजीपुर और बलिया की करीब 68 लाख की आबादी पर पड़ रहा है.
मुबारकपुर और मऊ का साड़ी उद्योग बनारसी साड़ी के लिए पूरी दुनिया में मशहूर है. मुबारकपुर कस्बे में लगभग सभी घरों में लूम यानी साड़ी बुनने की घरेलू मशीनें लगी हैं, जिनमें कारीगर साड़ियों की बुनाई करते हैं. साल 2000 में शिया-सुन्नी समुदाय के बीच हुए दंगों की आग में यहां का साड़ी उद्योग बुरी तरह से प्रभावित हुआ. जिसके बाद साड़ी की बिक्री का स्थानीय बाजार पूरी तरह बंद हो गया.मुबारकपुर में ज्यादातर बुनकर हाथ से ही बुनाई करते हैं जबकि मऊ के बुनकर पॉवरलूम यानी मशीन से बुनाई करते हैं. मशीन से बुनी साड़ियों में नायलॉन का इस्तेमाल होता है और ये सस्ती होती हैं जबकि हाथ से बुनी साड़ियों में रेशम के धागे इस्तेमाल होते हैं और ये बहुत महंगे होते हैं.साड़ियों की बिक्री के लिए यहां तमाम सोसायटी बनी हुई हैं. लेकिन बुनकरों का कहना है कि सरकारी मदद और योजनाएं भी इन्हीं सोसायटी के माध्यम से आती हैं और अक्सर बुनकरों को उनका लाभ नहीं मिल पाता.
pnn24.in

Recent Posts

गजब बेइज्जती भाई…..! फरार अपराधी पर पुलिस ने घोषित किया ‘चवन्नी’ का ईनाम, अभियुक्त भी सोचे कि ‘चवन्नी’ लायक है क्या …!

फारुख हुसैन डेस्क: बड़े बड़े इनामिया अपराधी देखा होगा। कई ऐसे होते है कि गर्व…

12 hours ago

कांग्रेस ने पत्र लिख चुनाव आयोग से किया शिकायत कि झारखण्ड के गोड्डा में राहुल गाँधी का हेलीकाप्टर रोका गया

ईदुल अमीन डेस्क: कांग्रेस सांसद राहुल गांधी के हेलीकॉप्टर को झारखंड के गोड्डा मेंएक चुनावी सभा…

13 hours ago

स्पेन: केयर होम में आग लगने से 10 की मौत

आफताब फारुकी डेस्क: स्पेन के उत्तर पूर्वी इलाके के ज़ारागोज़ा के नज़दीक एक केयर होम…

17 hours ago

उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग ने जारी किया पीसीएस प्री के परीक्षा की नई तारीख

अबरार अहमद डेस्क: उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग (यूपीपीएससी) ने बताया है कि पीसीएस-प्री की…

17 hours ago

एसडीएम को थप्पड़ मारने वाले निर्दल प्रत्याशी नरेश मीणा पर हत्या के प्रयास जैसी गंभीर धाराओं में मुकदमा हुआ दर्ज

आदिल अहमद डेस्क: राजस्थान विधानसभा उपचुनाव में निर्दलीय प्रत्याशी नरेश मीणा की गिरफ़्तारी के बाद…

18 hours ago