निलोफर बानो
मुस्लिम विवाह विच्छेद अधिनियम 1939 के तहत नौ आधारों पर पत्नी विवाह भंग हेतु कोर्ट में वाद प्रस्तुत कर सकती है इसमें पत्नी को पति से तलाक प्राप्त करने का अधिकार है। जिसमें पति का कारावासित होना, भरण पोषण में विफलता, पति का लापता होना, वैवाहिक दायित्वों के निर्वहन में विफलता, पति का पागल, कुष्ठरोगी, नपुंसक होना, क्रूरता,जारता आदि आधार हैं। फिर भी मुस्लिम समाज को कुछ विशेष लोगो द्वारा तीन तलाक के मुद्दे पर न्यायालय में खड़ा करके इस पुरे रस्म को कटघरे में खड़ा कर दिया गया है. इसके मुद्दे को हवा देने में ख़ास तौर से वही लोग दिखाई दे रहे है जिनको मुस्लिम धर्म के नियमो का कोई पता नहीं है और इसके संस्कारों से कोई सरोकार नहीं है.
तीन तलाक को लेकर अचानक विवाद गहराता जा रहा है. जहा कुछ मुस्लिम महिलाये इस तीन तलाक मुद्दे पर न्यायालय के शरण में है वही दूसरी तरफ काफी मुस्लिम महिलाये इस कानून के पक्ष में आकर सडको तक पर उतर गई है. आइये जानते है मुस्लिम कानून के तहत तलाक कितने प्रकार के होते हैं.
तलाक उन सुन्नत- यह सुन्ना पर आधारित होता है ।तलाक का अनुमोदित रूप है ।तत्काल प्रभावी नहीं होता ।पुनर्विचार की संभावना बनी रहती है ।यह दो प्रकार का होता है –
तलाक अहसन –
तलाक का सर्वाधिक सर्वाधिक उचित ढंग ।तलाक शब्द का एक बार उच्चारण किया जाता है उच्चारण के पश्चात तीन चंद्रमास तक इद्दत का पालन करना होता है ।इस बीच समझौता होने पर तलाक निरस्त हो सकता है ।समझौता न होने पर तीसरे माह के समापन पर तलाक प्रभावी होता है ।
तलाक हसन-
इसमें तलाक शब्द का तीन बार उच्चारण करना होता है जो विभिन्न समय अंतराल में किया जाता है इसमें भी बीच में समझौते का पर्याप्त अवसर रहता है ।तीसरी घोषणा के बाद तलाक प्रभावी हो जाता है यह भी तलाक का अनुमोदित रूप है ।दो घोषणाओं के बीच काफी दिनों का अन्तर रहता है ।
तलाक उल बिद्दत(तिहरा तलाक)
यह तत्काल प्रभावी होता है मोहम्मद साहब ने इसका अनुमोदन नहीं किया है। तीन घोषणाए एक साथ की जाती है एक ही वाक्य या तीन वाक्य में। घोषणा के साथ ही तत्काल तलाक द्वारा निकाह का अंत हो जाता है। यही तलाक विवाद का मुख्य कारण है जिससे पीड़ित मुस्लिम महिलायें सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की हैं जो लंबित है ।यह मुस्लिम महिलाओं के लिए कष्टकारी है।
इला—
इसमें पति शपथ लेता है कि वह चार माह या इससे अधिक समय तक पत्नी के साथ संबंध नहीं बनाएगा तो चार माह बाद कोर्ट से आज्ञप्ति प्राप्त होने पर निकाह का अंत हो जाता है इस बीच 4 माह पूर्व समझौता होने पर तलाक का अन्त किया जा सकता है।
जिहार –
इसमें पति अपनी-पत्नी की तुलना ऐसी महिला से कर दे जिससे विवाह पूर्णत:प्रतिषिद्ध है ।ऐसी घोषणा के 4 माह बाद कोर्ट से आज्ञप्ति प्राप्त कर निकाह का अंत किया जा सकता है। इस बीच समझौते का पर्याप्त अवसर रहता है ।
तलाक ए तफवीज़ –
इसमें पति पत्नी को तलाक का अपना अधिकार प्रत्यायोजित कर देता है जिसमें किसी घटना के घटने के बाद पत्नी पति से तलाक ले सकती है। जैसे -पति द्वारा दूसरा निकाह करने पर पत्नी पति से तलाक ले सकती है।
खुला-
इसमें पति की सहमति से पत्नी अपने पति से निकाह का अंत कर सकती है खुला में पत्नी वैवाहिक बंधन से मुक्त की पहल करती है ।दोनों का वयस्क व स्वस्थचित्तहोना आवश्यक है ।
मुबारत
इसमें दोनों पक्ष समान रुप से तलाक के इच्छुक होते हैं ।पारस्परिक समझौते द्वारा विवाहभंग का शुद्ध रूप है ।