करिश्मा अग्रवाल
सऊदी अरब की निरंतर विफलताओं और यमन के थका देने वाले युद्ध से पता चलता है कि सऊदी अरब इस स्थिति को रोकने और युद्ध समाप्त कराने के लिए ईरान से संबंध बेहतर बनाना चाह रहा है और इसके लिए मध्यस्थ खोज रहा है। अलअख़बार समाचार पत्र ने अपने एक लेख में लिखा है कि सऊदी अरब की राजनैतिक व आर्थिक विफलताओं ने, जिनके चलते अरब व इस्लामी देशों पर रियाज़ का प्रभाव समाप्त होता जा रहा है, उसे ईरान के साथ सुलह के लिए कुवैत व ओमान से आग्रह करने पर विवश किया है।
यमन युद्ध में सऊदी अरब की भारी आर्थिक व मानवीय क्षति
यमन में युद्ध आरंभ हुए दो साल से भी अधिक का समय हो चुका है और सऊदी अरब अपने दृष्टिगत लक्ष्यों में से एक भी हासिल नहीं कर सका है बल्कि यमन के दलदल में धंसता ही चला जा रहा है। इस युद्ध के भारी ख़र्चे के चलते सऊदी अरब की आर्थिक स्थिति बहुत ख़राब हो गई है और उसका बजट घाटे में चला गया हैै। सरकारी रिपोर्टों के अनुसार सऊदी अरब को अपने बजट में सौ अरब डाॅलर के घाटे का सामना है। इसी के चलते सऊदी अरब ने हज़ारों विदेशी कर्मचारियों को नौकरी से निकाल दिया है।
अरब व इस्लामी जगत पर सऊदी अरब के प्रभाव में कमी
यमन की लड़ाई जितना खिंचती जा रही है उतना ही अरब व इस्लामी देशों पर सऊदी अरब का प्रभाव कम होता जा रहा है। रोचक बात यह है कि इसी समय में सीरिया की सरकार, आतंकियों के मुक़ाबले में विजयी होती जा रही है जबकि सऊदी अरब, तुर्की, अमरीका और कई अन्य पश्चिमी व अरब देश आतंकियों की हर संभव मदद भी कर रहे हैं। सीरिया में आतंकियों की आर्थिक मदद का बीड़ा भी सऊदी अरब ने ही उठा रखा है। इस प्रकार सऊदी अरब को चारों तरफ़ से पराजय और नुक़सान का ही इन सब बातों को देखते हुए सऊदी अरब यमन के दलदल से निकलने के लिए ईरान को ही एकमात्र सहारा समझ रहा है लेकिन ईरान के साथ उसने ख़ुद ही संबंध समाप्त कर लिए थे। इस लिए अब उसने कुवैत व ओमान जैसे ईरान के मित्र देशों से अपील की है कि वे मध्यस्थता करके ईरान से उसके संबंधों को बेहतर बनाएं। इसी तरह चीन के विदेश मंत्री ने भी कहा है कि उनका देश तेहरान व रियाज़ के बीच मध्यस्थता के लिए तैयार है। स्पष्ट सी बात है कि सऊदी अरब के आग्रह के बिना उन्होंने यह बात नहीं कही है। कुल मिला कर यह कि सऊदी अरब, यमन में निश्चित पराजय की ओर बढ़ रहा है और इससे सऊदी अरब का आंतरिक संकट और अधिक जटिल होगा और इस देश की जनता को आले सऊद की ग़लत नीतियों का ख़मियाज़ा भुगतना पड़ेगा।