ऐसे में जब आबिद नें “मेरा रंग दे बंसती चोला” गाया तो न जाने कहॉ से काशीवासियों के हाथ में तिरंगें नजर आने लगे। इस गीत पर आलम यह था कि आंखों में देश प्रेम के आंसू लिए श्रोता हाथों में पकड़े देश की आन तिरंगें को हवा में हौले-हौले लहलहाने लग गये, मंच पर से आती गीत की मधुर आवाज़ के अलावा यदि कोई आवाज़ और थी तो वह मंच के पीछे से आती गंगा की लहरों की मध्धम आवाज़ थी, शायद गंगा मॉ भी अपने देश के लाडले शहीद-ए-आजम भगत सिंह को, उसकी दी गई कुर्बानी को याद करके खुद भी रो रही थी। आबिद की आवाज़ में वो दर्द था कि पूरा मंच, वीआईपी गैलरी, मीडिया गैलरी और आमजन से भरा भैसासुर घाट अपनी नम हो चली आंखों को पोछता नजर आया।
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