सी.पी.सिंह विसेन
साथियों,
किसान किसानी भगवान के सहारे और अपने खून पसीने की ताकत से रातदिन लगकर करता है।अंधेरी रात में जब वह पानी लगाने के लिये खेत की मेड़ पर पाँव रखता है तो सिर्फ़ भगवान के सहारे रखता है और वह साँप बिच्छू की परवाह नहीं करता है।किसान की फसल जब तक कटकर घर के अंदर तक नहीं पहुँच जाती है तबतक उसका कोई सहारा नहीं होता है।कभी तो पकी तैयार खड़ी फसल खेत में ही ओला पत्थर गिरने बरसात होने और आग लग जाने से नष्ट हो जाती हैं।किसानी को छोड़कर अन्य हर बीमित चींच का नुकसान होने पर पूरा पैसा बीमा से मिल जाता है तो बीमा बकवास बन जाता है।इस समय किसानी करना भी आसान नहीं रह गया है क्योंकि इसमें भी अच्छी भली रकम लगने लगी है।जुताई अब हल बैल से नहीं बल्कि निजी या किराये के टैक्ट्रर से होती है और दो बांह एक बीघा खेत जुताई कराने के लिये कम से कम तीन सौ साढ़े तीन सौ रूपये खर्च करने पड़ते हैं।बुआई के लिये कम से कम दो बार जुताई करनी पड़ती है।इसके बाद अब हर साल नया बीज खरीदना पड़ता है क्योंकि पहले की तरह हाई ब्रिड बीज से दूबारा बुआई नहीं की जा सकती है।इसके बाद दवा पानी खाद निकाई कटाई सब कुछ पैसे के सहारे होती है।जबसे मनरेगा योजना चल गयी है तबसे मजदूरों की किल्लत हो गयी है तथा मजदूरी के रेट आसमान छूने लगा है।जिस किसान के घर नौकरी व्यवसाय से आमदनी का जरिया नहीं होता है उसे खेती के सहारे जिन्दा रह पाना मुश्किल हो जाता है।यहीं कारण है कि किसान जल्दी अपने कर्जा की अदायगी नहीं कर पाता है और अंत में आत्महत्या कर लेना पड़ता है।
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