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रेलवे कैटरिंग में बड़ा घोटाला – सौ ग्राम दही 927 रूपए, 1241 रु में 1 लीटर रिफांईन्ड तेल खरीद रही है रेलवे

शबाब ख़ान
जी हा सेंट्रल रेलवे के कैटरिंग विभाग में ऐसा ही हुआ है. इस बड़े स्तर पर हो रहे घोटाले का खुलासा हुआ है। ‘न खाऊँगा, न खाने दूँगा’ की दुहाई देने वाले हमारे प्रधानमंत्री को जानकर आश्चर्य होगा, साथ ही   रेल मंत्री सुरेश प्रभु का भी लगता है बुरा वक्त आ गया है, क्योकि यह पता चल चुका है कि सेंट्रल रेलवे का कैटरिंग विभाग आखिर हमेशा करोड़ों के नुकसान मे कैसे रहता है।किसी ने सही कहा है सत्ता में बैठ कर काम और विपक्ष में बैठ कर सत्ता कि बुराई करना दो अलग अलग बात है. यही अगर 2014 में यह स्कैम खुला होता तो शायद रेल मंत्री के साथ प्रधानमंत्री तक से इस्तीफा माँगा जा रहा होता. चतुर्दिक इसकी निंदा हो रही होती मगर आज ऐसा नहीं है.आज इसके उलट कोई सांस भी नहीं ले रहा है. सब खामोश है. २०१३-14 में प्रधानमंत्री और गृहमंत्री पर शब्दों के तीर छोड़ने वाली पार्टी आज खामोश है. आज बाबा रामदेव भी कोई आन्दोलन करते नहीं दिखाई दे रहे है. अन्ना हजारे भी शायद शांत बैठे देख रहे है.

आरटीआई कार्यकर्ता अजय बोस नें जब अखबारों में पढ़ा कि रेलवे का कैटरिंग विभाग करोड़ों के नुकसान मे चल रहा है तो उन्होने जुलाई 2016 में आरटीआई अधिनियम के तहत रेलवे को जानकारी उपलब्ध कराने के लिए एक आवेदन भेजा, जिसका जवाब उनको नही मिला। इससे उनका संदेह बढ़ गया कि दाल में कुछ काला है। समयसीमा बीत जाने के बाद बोस नें जानकारी के लिए प्रथम अपील फाइल किया, बावजूद इसके उन्हे जानकारी उपलब्ध नही कराई गई।
बोस का शक यकीन में बदल गया कि कैटरिंग सेवा मे कुछ बड़ा कारनामा चल रहा है। सो उन्होने दूसरी अपील भी फाईल कर दी। इस बार रेलवे की कैटरिंग सेवा नें विस्तार से बोस को जानकरी उपलब्ध करा दी। रेलवे द्वारा दिए गये उत्तर से एक बहुत बड़े घोटाले का राज फाश हो गया।
बोस को दी गई जानकारी मे बताया गया कि कैटरिंग विभाग ने सौ ग्राम दही 972 रूपए में खरीदी, मतलब एक किलोग्राम दही की कीमत हुई 9720 रूपए। क्या आपने कभी सुना है कि दही दस हजार रूपए प्रति एक किग्रा खरीद कर 250 रू प्रति किलो रेल यात्रियों को बेटा जाता हो? यह हुआ है सुरेश प्रभु के रेल मंत्री काल और ‘न खाऊंगा न खाने दूंगा’ वाले नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्रित्व काल में।
सिर्फ दही ही नहीं बल्कि रिफाइंड ऑयल 1253 रूपए में एक लीटर खरीदा गया। कहां का तेल था भाई?
इसके अलावा रेलवे ने चिकन, तुर दाल, मूंग दाल, बेसन और टिश्यू पेपर को भी बाजार भाव से काफी अधिक दर पर खरीदा। 570 किलो तूर दाल 89,610 रुपये ने खरीदा गया (157 रुपये प्रति किलो), 650 किलो चिकन 1,51,586 रूपए में (233 रुपये प्रति किलो), 148.5 किलो मूंग दाल 89610 रुपये मे खरीदा (157 रुपये प्रति किलो) और 178 पानी-कोल्ड ड्रिंक्स के बॉक्स (एक बॉक्स में 10 बोतलें) 106031 रुपये (59 रुपये प्रति बोतल) की दर से खरीदे गए।
रेलवे द्वारा दिए गये जवाब मे और जिन खाद्य सामाग्री के खरीद दाम के बारे मे जानकरी दी गई वो इस प्रकार है। मार्च 2016 में 58 लीटर रिफाइंड ऑयल 72,032 रूपए में खरीदा गया, यानि 1241 रूपए प्रति किलो की दर पर, 150 पैकेट टाटा नमक मात्र 2670 रूपए मे, यानि 49 रूपए प्रति किलो जबकि बाजार भाव 15रूपए प्रति किलो है। पानी की एक बोतल और कोल्ड ड्रिंक्स का खरीद मुल्य 59 रूपए प्रति युनिट बताया गया। हॉ, आलू, प्याज और समोसे के भाव वाजिब बताये गए है।
बोस बताते है कि मैने पूरे एक साल मे हुई खरीद-बिक्री की रिपोर्ट मांगा था लेकिन जानकरी केवल कुछ महीनों की ही उपलब्ध कराई गयी। जिन महीनों की जानकारी नही दी गई संभवता उन महीनें में दही शायद 30,000 रूपए प्रति किलो की दर से खरीदी गई होगी।
बोस ने स्टॉक से संबधित जानकारी भी मॉगी थी, और जो जानकरी रेलवे ने दिया उससे आप स्वंय अनुमान लगा सकते है कि कितना बड़ा गोरखधंधा चल रहा सुरेश प्रभु की नाक के नीचे।
स्टॉक से संबधित जो जानकरी दी गई  उसके अनुसार 250 किलो आटा खरीदा गया, जिसका कीमत थी 7680रूपए। रेलवे बताता है कि 250 किले आटा 7680 रूपए में खरीदकर 450 किलो वितरित किया (90 किलो बेस किचन को और 360 किलो आईआरसीटीसी द्वारा चलाए जाने वाले ‘जन आहार कैंण्टीन’ को)… कमाल की गणित है। 250 किलो खरीदा और 450 किलो वितरित किया, वाह। सिर्फ आटा ही नही बल्कि मैदा भी 35 किलो वितरित किया गया जबकि खरीदा 20 किलो गया था। उसी तरह 255 किलो बासमती चावल खरीद कर 745 किलो बेस किचन और कुर्ला-हजरत निजामउद्दीन एक्सप्रेस में वितरित किया गया। ऐसा कौन सा फार्मूला रेलवे इस्तमाल करता है जिससे कम खरीद करके अधिक वितरित करने का बराबर हिसाब बैठ जाए हमारी समझ से परे है।
बोस कहते है कि, “बताया जाता है कि रेलवे कैटरिंग सेवा नुकसान में चल रही है, लेकिन आरटीआई द्वारा हासिल जानकरी ने तस्वीर साफ कर दिया।
सेंट्रल रेलवे के फारमर जनरल मैनेजर सुबोध जान कहते है कि “यह सारे खाद्य सामाग्री एक बने बनाये चैनल से ही खरीदा जा सकता है। और, हम खाद्य सामाग्री का खरीद और बिक्री भाव एक कमेटी तय करती है।” जबकि सेंट्रल रेलवे के साथ काम कर चुके दिल्ली के एक वरिष्ठ रेलवे अधिकारी अपना नाम गुप्त रखने की शर्त पर बताते है कि मुंबई सीएसटी की कैटरिंग सेवा पर पहले भी ऐसे आरोप लगाये जा चुके हैं लेकिन कुछ हुआ नही। यह एक बड़ा स्कैनडल है जिसकी हाई लेविल जांच होना चाहिए।
एक तरफ ट्रेन टाइम पर नहीं आती, बुलेट ट्रेन का कुछ पता नहीं है, हर बजट के बाद किराया बढ़ा देते हैं वहीं दूसरी तरफ एक किलोग्रॉम दही खरीदी जा रही है नौ हजार सात सौ बीस रूपए में। कहां की गाय है? इमानदारी की बीन बजाने बाली सरकार भी घोटालेबाज़ निकली। लेकिन इस घोटाले के बारे में आपको ख़बर सुनने को मिली क्या? नहीं मिलेगी। क्योंकि सारे चैनल अंबानी ने खरीद लिए हैं और अंबानी, प्रधानमंत्री जी के मित्र हैं। बाकी बोलना अब सुरेश प्रभु को है।
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