सुहैल अख्तर
जब बाजार ज्यादा रोशनी से जगमगा उठें। हर घर में साफ-सफाई और शॉपिंग शुरू हो जाए, तो समझिए रमजान की शरुआत होने वाली है। रमजान के पाक महीने की शुरुआत होते ही चारों ओर खुशी का माहौल होता है। इस्लामिक कैलेन्डर के मुताबिक ये महीना त्याग, समर्पण, सेवा और आस्था का प्रतीक माना जाता है। एक महीने तक इस्लाम में आस्था रखने वाले लोग पूरी शिद्दत से खुदा की इबादत करते हैं।
रहमतों और बरकतों का ये महीना अच्छे कामों का सबब देने वाला होता है। इसी वजह से इस महीने को नेकियों का महीना भी कहा जाता है। इस पवित्र महीने को कुरान शरीफ में नाजिल का महीना भी कहा गया है। इस भीषण गर्मी में रोजा किसी इम्तेहान से कम नहीं होता है।
कुरान शरीफ में रोजे का अर्थ होता है ‘तकवा‘, यानि बुराइयों से बचना और भलाई को अपनाना। सिर्फ भूखे-प्यासे रहने का नाम रोजा नहीं होता है। माना जाता हैं कि इस महीने में साफ नियत से जरूरतमंदों की मदद करनी चाहिए। कहते हैं कि रमजान के पाक महीने में जन्नत के द्वार खोल दिए जाते हैं, जो भी शख्स साफ नीयत और दिल से रोजा रख कर, खुदा की इबादत करता है, उसे जन्नत नसीब होती है। ये महीना प्रेम और संयम का प्रतीक है। इसीलिए कुरान शरीफ में हर मुस्लिम को रोजा रखने की सलाह दी गई है। मासिक धर्म के दौरान महिलाओं को रोजा रखने पर पबांदी है। अगर कोई भी शख्स रमजान के महीने में जानबूझ कर रमजान के रोजे के अलावा किसी और नियत से करता है तो वो रोजा कुबूल नहीं होता है
रमजान के दौरान पान, तंबाकू और शराब का सेवन नहीं करना चाहिए। इस दौरान हर मुस्लिम को जकात देना होता है। जकात अपनी आमदनी से कुछ पैसे निकालकर जरूरतमंदों को देकर उनकी मदद करना होता है। रमजान के पाक महीने में खुदा से अपने सभी बुरे कर्मों के लिए माफी भी मांगी जाती है। महीने भर तौबा के साथ इबादतें की जाती हैं। माना जाता है कि ऐसा करने से इंसान के सारे गुनाह माफ कर दिए जाते हैं। पवित्र महीने में सिर्फ खाने-पीने की ही बंदिश नहीं हैं। बल्कि इस दौरान बुरी चीजों और दूसरों की बुराई ना करने की सलाह भी दी गई है।
अन्न, जल त्यागने का नाम रोजा नहीं होता है। बल्कि अपने आपको शुद्ध और व्यवस्थित करने का नाम रोजा है। अगर कोई मुसलमान एक रोजा भी बगैर किसी कारण छोड़ दे। तो वो पूरी जिंदगी रोजा रख कर भी उस एक रोजे की भरपाई नहीं कर सकता है। माना जाता है कि पाक रमजान के महीने में अदा की गई नमाजों का शबाब 70 गुना बढ़ जाता है। इस दौरान किसी भी शख्स को महिलाओं को बुरी नजर से नहीं देखना चाहिए। ना ही घर-परिवार में गाली-गलौज करनी चाहिए। छोटे बच्चों, गर्भवती महिलाओं, बीमार और बुज़ुर्गों को रोजे से छूट है। रमजान के दौरान लोगों के साथ जितना अच्छा करेंगे और सोचेंगे, अल्लाह उतना ही आप पर मेहरबान होगा। रमजान के पाक महीने में रोजेदार को खुद भी खुश रहना चाहिए और दूसरों को भी खुश रखना चाहिए। इससे घर में बरकत होती है।
रोजा रखने के फायदे
रोजा रखने का सबसे पहला और अच्छा फायदा ये है कि इस दौरान आप अच्छाई के मार्ग पर चलना सीखते हैं।नशीलें पदार्थों की लत से छुटकारा पा सकते हैं। भूखे रहने से शुगर लेवल कंट्रोल में रहता है। आत्मविश्वास और नियंत्रण की सीख मिलती है। रमजान की बहुत सारी बातें इंसान को इंसान बने रहने की सलाह देती हैं। सिर्फ रमजान में नहीं बल्कि पूरे साल बुराईयों से दूर रहिए और जरूरतमंदों की मदद करिए। यही कुरान और इस्लाम की असल सीख है।