अपराध नियंत्रित न कर सके थानेदार साहेब तो किये पत्रकारों से अभद्रता
मंगल सिंह
कानपूर. योगी सरकार क्या बनी अपराध अपने चरम पर पहुच चूका है. अपराधी है कि नियंत्रण में नहीं है और पुलिस का जोर रोज़ ब रोज़ पत्रकारों पर ही निकल रहा है. इसको दुस्साहस कहे या फिर किसी पहुच का नतीजा कि नौबस्ता थाना परिसर के ठीक बाहर अभी एक युवक को गोली मार दिया गया है. घटना के सम्बन्ध में प्राप्त जानकारी के अनुसार सतीश नाम का यह युवक जो गोली लगने से घायल हुआ था कि मौत अस्पताल ले जाते समय रास्ते में ही हो गई. वही थाने पर तैनात सिपाहियों ने वहा मौजूद जनता और पत्रकारों के मदद से एक हमलावर को दौड़ा कर पकड़ लिया.
साहब यहाँ तक कि तो रनिंग स्टोरी है. असली कहानी में ट्विस्ट इसके बाद आता है.प्रत्यक्षदर्शियो सूत्रों के अनुसार हमलावर पकड़ लिया गया तो फिर अचानक सिंघम स्टाइल में प्रकट होते है थानेदार साहेब अशोक कुमार दुबे जी., साहेब ने आते ही पहले जनता को खूब जोर कड़े शब्दों से नवाज़ दिया और फिर हमलावर युवक को पीछे कालर से पकड़ कर थाने के अन्दर लेकर अपने कमरे में चले गए और हमलावर को कुर्सी दिलवा कर उसको बैठाला और उससे बाते करने लगे. थानेदार साहेब का गुस्सा जो थोड़ी देर पहले सातवे आसमान पर था वो काफूर हो चूका था, इसी बीच मौके पर मौजूद पत्रकारों ने अपने पत्रकारिता धर्म का पालन करते हुवे इस विशेष लम्हे को अपने कैमरे में कैद करना चाहा मगर ऐसा हो नहीं सका और थानेदार साहेब के अन्दर का थानेदार दुबारा जाग गया और वो अचानक फिर से सिंघम स्टाइल में आकर लगे पत्रकारों को ही धक्के देने लगे और कहने लगे ये सब यहाँ नहीं चलेगा पत्रकारिता कही और लेकर जाकर करो. यहाँ नहीं चलेगा ये सब और उन्होंने मौके पर मौजूद सभी पत्रकारों को धक्के देते हुवे थाने से बाहर खदेड़ दिया. इसके बाद थानेदार साहेब वापस अपने कमरे में उस तफ्तीश का हिस्सा बन गए जिसमे वह पहले बैठे थे. इस बार फर्क सिर्फ एक था कि थानेदार साहेब का कमरा अन्दर से बंद था और कमरे के बाहर स्पेशल सिपाहियों को तैनात कर दिया गया था कि कोई फोटो न लेने पाए और न ही कोई अन्दर आने का प्रयास करे.
प्रश्न यहाँ यह है कि आखिर ऐसी कौन सी तफ्तीश थी जो थानेदार साहेब पत्रकारों के आड़ में कमरे में आरोपी को कुर्सी पर बैठा कर कर रहे थे, आखिर इतना दुस्साहस कैसे हुआ हमलावर का कि थाने के ठीक बाहर ही गोली मार दिया. अगर नौबस्ता थाना अपने थाना परिसर के आस पास ही अपराध नियंत्रित नहीं कर पाया तो बकिया क्षेत्र जो थाना परिसर से दूरी पर है वह आम जन कैसे सुरक्षित है. सीधी सी बात जो समझ में आती है कि पकड़ा गया हमलावर या तो दुस्साहसिक है और उसको कोई डर नहीं लगता या फिर किसी का ऐसा वरदहस्त है जो उसके दिमाग में है कि कोई मेरा कुछ नहीं कर सकता है.